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सर गुरुदासकी कट्टरता  [Moral Story]
Hindi Story - Story To Read (हिन्दी कहानी)

कलकत्ता हाईकोर्ट के जज स्वर्गीय श्रीगुरुदास बनर्जी अपने आचार-विचार, खान-पानमें बड़े कट्टर थे। 'माडर्न रिव्यू' के पुराने एक अङ्कमें श्रीअमल होमने इस सम्बन्धमें उनके जीवनकी एक घटनाका उल्लेख किया था। लार्ड कर्जनके समय जो 'कलकत्ता विश्वविद्यालय कमीशन' नियुक्त हुआ था, उसके गुरुदास भी एक सदस्य थे। उसका कार्य समाप्त होनेपर शिमलासे वे। वाइसरायके साथ उनकी स्पेशलमें कलकत्ते जा रहे थे। कानपुर में वाइसरायने उन्हें अपने डिब्बेमें बुला भेजा। दोनोंमें बहुत देरतक कमीशनकी सिफारिशोंके सम्बन्धमें बातचीत होती रही। इतनेमें ही दोपहरके खानेका समय हो गया। वाइसरायने श्रीगुरुदाससे कहा कि 'जाइये, अब आप भी भोजन कीजिये।' उन्होंने इसके लिये धन्यवाद देते हुए कहा- 'मैं रेलमें कुछ नहीं खाता।' यह सुनकर वाइसरायको बड़ा आश्चर्य हुआ और उन्हें विश्वास न हुआ। उन्होंने फिर पूछा तो उत्तर मिला 'मैं रेलमें कुछ गङ्गाजल रखता हूँ और केवल उसीको पीता हूँ।' इसपर वाइसरायने फिर पूछा 'तब फिर आपका लड़का क्या करेगा ?' श्रीगुरुदासने कहा 'जबतक मैं उपवास करता हूँ, वह भला कैसे खा सकता है। घरकी बनी हुई उसके पास कुछ मिठाई है; भूख लगती है तो वह उसे खा लेता है।' वाइसरायने कहा-' तो फिर मैं भी नहीं खाऊँगा, जबतक आप नहीं खा लेते। आगे किसी स्टेशनपर गाड़ी खड़ी रहेगी औरवहाँ आप अपने नियमानुसार भोजन कर लें।' श्रीगुरुदासने | बहुत समझाया कि इसकी आवश्यकता नहीं है, आपको कष्ट होगा; पर वाइसरायने एक भी न सुनी और अपने • ए0 डी0 सी0 (शरीररक्षक) को तुरंत बुलाकर पूछा कि 'अगले किस स्टेशनपर गाड़ी खड़ी होगी ?' उसने उत्तर दिया – 'हुजूर, इलाहाबादमें।' वाइसरायने कहा 'अच्छी बात है, जबतक डाक्टर बनर्जीका भोजन नहीं हो जाता, हम वहीं ठहरेंगे।' प्रयाग स्टेशनपर स्पेशल रुक गयी, पिता-पुत्र दोनोंने जाकर संगमपर स्नान किया और त्रिवेणी-तटकी रेतीपर दाल-भात बना-खाकर जब लौटे, तब कहीं गाड़ी आगे बढ़ी।

श्री गुरुदास कहा करते थे कि जहाँ भी, जिस किसीके साथ, जो कुछ भी खा-पी लेनेसे जाति जाती है या नहीं, यह दूसरी बात है; पर इन नियमोंके पालनसे आत्मसंयम और अनुशासनकी कितनी अच्छी शिक्षा मिलती है, जिसका जीवनमें कुछ कम मूल्य नहीं है। नियमपालनमें किसीकी कट्टरता देखकर उसका उपहास भले ही किया जाय, पर हृदयमें उसके प्रति आदरभाव भी बिना जाग्रत् हुए न रहेगा। लार्ड कर्जन सरीखे उद्दण्ड वाइसरायको भी इस कट्टर सनातनीके 'बहमों' का आदर करना पड़ा, परंतु आजकल तो अनुशासन और संयमका कुछ मूल्य ही नहीं है। उनसे तो स्वतन्त्रता और सुखमें बाधा पड़ती है। आजकल तो जीवनका मन्त्र है-'स्वतन्त्रता और भोग!' वैसा ही फल भी मिल रहा है!



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sar gurudaasakee kattarataa

kalakatta haaeekort ke jaj svargeey shreegurudaas banarjee apane aachaara-vichaar, khaana-paanamen bada़e kattar the. 'maadarn rivyoo' ke puraane ek ankamen shreeamal homane is sambandhamen unake jeevanakee ek ghatanaaka ullekh kiya thaa. laard karjanake samay jo 'kalakatta vishvavidyaalay kameeshana' niyukt hua tha, usake gurudaas bhee ek sadasy the. usaka kaary samaapt honepar shimalaase ve. vaaisaraayake saath unakee speshalamen kalakatte ja rahe the. kaanapur men vaaisaraayane unhen apane dibbemen bula bhejaa. dononmen bahut deratak kameeshanakee siphaarishonke sambandhamen baatacheet hotee rahee. itanemen hee dopaharake khaaneka samay ho gayaa. vaaisaraayane shreegurudaasase kaha ki 'jaaiye, ab aap bhee bhojan keejiye.' unhonne isake liye dhanyavaad dete hue kahaa- 'main relamen kuchh naheen khaataa.' yah sunakar vaaisaraayako bada़a aashchary hua aur unhen vishvaas n huaa. unhonne phir poochha to uttar mila 'main relamen kuchh gangaajal rakhata hoon aur keval useeko peeta hoon.' isapar vaaisaraayane phir poochha 'tab phir aapaka lada़ka kya karega ?' shreegurudaasane kaha 'jabatak main upavaas karata hoon, vah bhala kaise kha sakata hai. gharakee banee huee usake paas kuchh mithaaee hai; bhookh lagatee hai to vah use kha leta hai.' vaaisaraayane kahaa-' to phir main bhee naheen khaaoonga, jabatak aap naheen kha lete. aage kisee steshanapar gaada़ee khada़ee rahegee auravahaan aap apane niyamaanusaar bhojan kar len.' shreegurudaasane | bahut samajhaaya ki isakee aavashyakata naheen hai, aapako kasht hogaa; par vaaisaraayane ek bhee n sunee aur apane • e0 dee0 see0 (shareerarakshaka) ko turant bulaakar poochha ki 'agale kis steshanapar gaada़ee khada़ee hogee ?' usane uttar diya – 'hujoor, ilaahaabaadamen.' vaaisaraayane kaha 'achchhee baat hai, jabatak daaktar banarjeeka bhojan naheen ho jaata, ham vaheen thaharenge.' prayaag steshanapar speshal ruk gayee, pitaa-putr dononne jaakar sangamapar snaan kiya aur trivenee-tatakee reteepar daala-bhaat banaa-khaakar jab laute, tab kaheen gaada़ee aage baढ़ee.

shree gurudaas kaha karate the ki jahaan bhee, jis kiseeke saath, jo kuchh bhee khaa-pee lenese jaati jaatee hai ya naheen, yah doosaree baat hai; par in niyamonke paalanase aatmasanyam aur anushaasanakee kitanee achchhee shiksha milatee hai, jisaka jeevanamen kuchh kam mooly naheen hai. niyamapaalanamen kiseekee kattarata dekhakar usaka upahaas bhale hee kiya jaay, par hridayamen usake prati aadarabhaav bhee bina jaagrat hue n rahegaa. laard karjan sareekhe uddand vaaisaraayako bhee is kattar sanaataneeke 'bahamon' ka aadar karana pada़a, parantu aajakal to anushaasan aur sanyamaka kuchh mooly hee naheen hai. unase to svatantrata aur sukhamen baadha pada़tee hai. aajakal to jeevanaka mantr hai-'svatantrata aur bhoga!' vaisa hee phal bhee mil raha hai!

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