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जहाँके तहाँ  [प्रेरक कहानी]
हिन्दी कहानी - Moral Story (हिन्दी कहानी)

जहाँके तहाँ

मथुराके चौबेजीको भाँग बहुत प्रिय होती है। कुछ दिनों पहलेकी बात है, एक चौबेजी भाँगके नशेमें मथुरासे गोकुल जा रहे थे। विश्रामघाटसे यमुनाजीमें नावद्वारा जाना पड़ता है, अतः वे नावमें बैठे और जोर जोरसे डाँडद्वारा पानी काटने लगे। उन्हें अपने बलपर बहुत विश्वास था। बोले-'यह रहा गोकुल। अभी नाव पहुँचा दूँगा। अभी गोकुल आ जायगा।'
चौबेजी रातभर डाँड चलाते रहे, किंतु गोकुल कहीं दिखायी नहीं दिया। अन्तमें सबेरा हुआ। चौबेजी सोचने लगे, यह मथुरा जैसा ही कोई दूसरा गाँव आ गया है शायद। फिर किसीसे पूछा- 'भैया ! यह कौनसा गाँव है ?' उत्तर मिला, 'मथुरा।'
वही मथुरा और वही विश्रामघाट !
भाँगका नशा उतरा, तब चौबेजीको अपनी मूर्खताका पता लगा। चौबेजीने डाँड तो खूब चलाये थे, किंतु नाव तो रस्सीसे किनारेपर बँधी हुई थी। नशे-नशेमें नावकी बँधी हुई रस्सी खोलना ही भूल गये। रातभर नाव चलाते रहे, पर वह रही वहींकी वहीं ।
यह कथा चौबेजीकी ही नहीं, हम सबकी है। प्रत्येक मानवकी है। जिस प्रकार भाँगका नशा चढ़ता है, उसी प्रकार एक-एक इन्द्रियके सुखका नशा चढ़ता है। इन्द्रियोंपर विषय - सुखका नशा तो प्रत्येकको चढ़ा हुआ है।
वासनारूपी रस्सीसे बँधी हुई इन्द्रियोंको छुड़ानेकी जरूरत है। वासना मनुष्यको आगे नहीं बढ़ने देती, साधना नहीं करने देती । विषयोंके प्रति आसक्ति ही बन्धन है और विषयोंका त्याग — उनसे वैराग्य ही मोक्ष है। वासनारूपी रस्सीसे जीवकी गाँठ इस संसारके साथ बँधी हुई है। इस गाँठको खोलनेकी आवश्यकता है।
बुद्धिमान् व्यक्ति वासनाकी डोरीको विवेकसे काटता है । वासनाका नाश होनेपर ही जीव अपने वास्तविक स्वरूपमें - ब्रह्मस्वरूपमें स्थिर होता है।
[ श्रीरामचन्द्र केशवजी डोंगरे ]



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jahaanke tahaan

jahaanke tahaan

mathuraake chaubejeeko bhaang bahut priy hotee hai. kuchh dinon pahalekee baat hai, ek chaubejee bhaangake nashemen mathuraase gokul ja rahe the. vishraamaghaatase yamunaajeemen naavadvaara jaana pada़ta hai, atah ve naavamen baithe aur jor jorase daandadvaara paanee kaatane lage. unhen apane balapar bahut vishvaas thaa. bole-'yah raha gokula. abhee naav pahuncha doongaa. abhee gokul a jaayagaa.'
chaubejee raatabhar daand chalaate rahe, kintu gokul kaheen dikhaayee naheen diyaa. antamen sabera huaa. chaubejee sochane lage, yah mathura jaisa hee koee doosara gaanv a gaya hai shaayada. phir kiseese poochhaa- 'bhaiya ! yah kaunasa gaanv hai ?' uttar mila, 'mathuraa.'
vahee mathura aur vahee vishraamaghaat !
bhaangaka nasha utara, tab chaubejeeko apanee moorkhataaka pata lagaa. chaubejeene daand to khoob chalaaye the, kintu naav to rasseese kinaarepar bandhee huee thee. nashe-nashemen naavakee bandhee huee rassee kholana hee bhool gaye. raatabhar naav chalaate rahe, par vah rahee vaheenkee vaheen .
yah katha chaubejeekee hee naheen, ham sabakee hai. pratyek maanavakee hai. jis prakaar bhaangaka nasha chadha़ta hai, usee prakaar eka-ek indriyake sukhaka nasha chadha़ta hai. indriyonpar vishay - sukhaka nasha to pratyekako chadha़a hua hai.
vaasanaaroopee rasseese bandhee huee indriyonko chhuda़aanekee jaroorat hai. vaasana manushyako aage naheen badha़ne detee, saadhana naheen karane detee . vishayonke prati aasakti hee bandhan hai aur vishayonka tyaag — unase vairaagy hee moksh hai. vaasanaaroopee rasseese jeevakee gaanth is sansaarake saath bandhee huee hai. is gaanthako kholanekee aavashyakata hai.
buddhimaan vyakti vaasanaakee doreeko vivekase kaatata hai . vaasanaaka naash honepar hee jeev apane vaastavik svaroopamen - brahmasvaroopamen sthir hota hai.
[ shreeraamachandr keshavajee dongare ]

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