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पूर्वजन्मके पिताकी कृपा

बंगाल, फरीदपुर जिला, पो० हाट, कृष्णपुर ग्राम यात्राबाड़ीके श्रीजितेन्द्रनाथ दास वर्मन नामक एक युवकको यक्ष्मा हो गया था। कलकत्तेके बड़े-बड़े डॉक्टरोंसे इलाज कराया गया, परंतु कोई लाभ नहीं हुआ। रोग दिनों-दिन बढ़ता ही गया। अन्तमें उसने अपने कुलगुरुके आदेशके अनुसार श्रीतारकेश्वर बाबाके मन्दिरमें धरना दे दिया। कुछ ही दिनोंके बाद तारकेश्वर बाबासे उसको स्वप्नादेश मिला कि 'पूर्वजन्मके पिताके प्रति बड़ा भारी अपराध करनेके कारण तुझको यह रोग हुआ है। तू यदि उनकी चरणरजको ताबीजमें मढ़ाकर धारण कर सके और प्रतिदिन उनका चरणोदक ले सके एवं वे सन्तुष्ट होकर तुझको क्षमा कर दें तो तेरा रोग नष्ट हो सकता है; इसके सिवा अन्य कोई उपाय नहीं है। तेरे वे पूर्वजन्मके पिता इस समय फरीदपुरके बड़े डॉक्टर श्रीसत्यरंजन घोष एम०बी०हैं, वे एक महापुरुषके शिष्य हैं।' युवकने पूरी घटना उक्त डॉक्टर महोदयको लिख दी और उनके घर जाकर रहनेकी अनुमति माँगी। डॉक्टर बाबू ऐसे यक्ष्माके रोगीको घरमें रखनेसे घबराये। साथ ही उनके मनमें यह भी आया कि यदि मेरे अस्वीकार करनेसे लड़का मर जायगा तो उसका निमित्त मुझे होना पड़ेगा। वे कुछ भी निश्चय नहीं कर पाये और उन्होंने सारी घटना लिखकर श्रीस्वामी धनंजयदासजी व्रजविदेहीसे सम्मति चाही। स्वामीजीने उनको लिखा- 'इस प्रकारके संक्रामक रोगीको घरमें रखनेसे डरना स्वाभाविक ही है। परंतु वह अपने किसी परिचित या आत्मीयके घरपर ठहर सकता है, अथवा शहरके बाहरकी ओर किसी खुली जगहमें कोई घर किरायेपर लेकर आप उसे टिका सकते हैं और प्रतिदिन टहलते हुए आप एक बार जाकर उसे चरणरज और चरणोदक दे सकते हैं।फिर जब आपके मनमें क्षमा करनेकी बात आये, तब क्षमा कर दें। इसमें भी असुविधा हो तो आप अपना छायाचित्र (फोटो) उसको भेज दें और लिख दें कि वह इस छायाचित्रको ही आपकी साक्षात् प्राणमयी मूर्ति मानकर उसीकी चरणधूलि और चरणोदक ले लिया करे। ऐसा करनेसे वह साक्षात् आपसे ले रहा है, यही समझा जायगा । और यदि आप उसे रोगमुक्त करना चाहते हैं तो यह भी लिख सकते हैं कि 'मैंने तुम्हारे पूर्वजन्मके अपराधको क्षमा कर दिया है; मैं चाहता हूँ कि तुम रोगमुक्त हो जाओ।' स्वामीजीका पत्र मिलनेपर डॉक्टर साहबने उसकोअपना एक छायाचित्र भेजकर यह लिख दिया कि 'तुम इसीको साक्षात् मेरा स्वरूप मानकर चरणरज और चरणोदक ले लिया करो, मैंने तुमको क्षमा कर दिया है।' इस पत्रके पानेके बाद युवक क्रमशः स्वस्थ होने लगा और कुछ ही समयमें पूर्ण स्वस्थ हो गया। फिर वह स्वयं डॉक्टर साहबके पास गया। डॉक्टरने परीक्षा करके देखा उसके फेफड़ोंमें कोई दोष नहीं है। शरीरसे भी खूब स्वस्थ और सबल है। वह एक दिन रहा और डॉक्टर साहबका चरणोदक पीकर तथा चरणरज लेकर चला गया।

[ संकलित ]



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poorvajanmake pitaakee kripaa

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[ sankalit ]

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लै गया नन्द किशोर लै गया,
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मेरा मन ही ना लागे तुम्हारे बिना
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तेरे दर की भीख से है,
मेरा आज तक गुज़ारा
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तुझे मिल गया पुजारी, मुझे मिल गया
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चाकर रखलो राधा रानी तेरा बहुत बड़ा
श्यामा तेरे चरणों की गर धूल जो मिल
सच कहता हूँ मेरी तकदीर बदल जाए॥
सब हो गए भव से पार, लेकर नाम तेरा
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नगरी हो अयोध्या सी,रघुकुल सा घराना हो
चरन हो राघव के,जहा मेरा ठिकाना हो
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बोल कान्हा बोल गलत काम कैसे हो गया,
बिना शादी के तू राधे श्याम कैसे हो गया
राधे राधे बोल, श्याम भागे चले आयंगे।
एक बार आ गए तो कबू नहीं जायेंगे ॥
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मैं बरसाने से आयी हूँ, मैं वृषभानु की
मेरा अवगुण भरा शरीर, कहो ना कैसे
कैसे तारोगे प्रभु जी मेरो, प्रभु जी
मेरी करुणामयी सरकार, मिला दो ठाकुर से
कृपा करो भानु दुलारी, श्री राधे बरसाने
कोई पकड़ के मेरा हाथ रे,
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