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गीतापाठीकी भविष्यदृष्टि

मेरी माता पूजनीया जानकीदेवी ९० वर्षकी थीं। उन्हें लीवर कैंसर हो गया था, मेरे पिताजी वैद्य श्रीरघुवीर सहायजी २० वर्ष पहले ही गोलोकवासी हो चुके थे। मैं उनका ज्येष्ठ पुत्र दिल्लीके तिहाड़ कारागारसे पैरोलपर जालौन आया हुआ था। मेरे सहोदरअनुज एक दुर्घटनामें भीषणरूपसे घायल हो गये थे। उनके शरीरकी हड्डियाँ २८ स्थानोंपर टूटी थीं, जिससे उनके सारे शरीरपर प्लास्टर चढ़ा था और वे बेडपर ही - पड़े रहते थे। शासनसे राजनैतिक विरोधके कारण मेरे र घरपर पुलिसका पहरा रहता था।एक दिनकी बात है। माताजीकी तबियत काफी खराब थी। अपराह्नके लगभग तीन बजेका समय था, वे शान्त भावसे बिस्तरपर लेटी थीं। मेरे कुछ डॉक्टर मित्र भी उनके आसपास खड़े थे, माँ आँखें फाड़कर हम सबको देख रही थीं। उनके हाथ-पैर ठण्डे हो चुके थे। स्वर अवरुद्ध था। डॉ० सुभाष सक्सेना (एम०बी० बी०एस० ) ने माँका आशय समझ लिया। उन्होंने चम्मचके पिछले भागमें रुई लपेटकर माँके कण्ठमें फँसी कफकी गाँठ निकाल दी, वे तत्काल बोल पड़ीं- 'गड़ा धन नहीं निकालना, मिलकर रहना, जनताकी सेवा करते रहना, मरघटपर लकड़ी-कंडा फौरन पहुँचा दो; मेरे मुँहमें गंगाजल और तुलसीदल डाल दो, सबको राम-राम!' और तभी उनका सिर एक ओरको लुढ़क गया।

३० जून, सन् १९८० ई० की बात है, आकाश स्वच्छ था, बादलका कहीं नामोनिशान नहीं था। ऐसेमें माँ ने लकड़ी-कंडे तत्काल मरघट पहुँचानेका निर्देश क्यों दिया ? यह समझमें तब नहीं आया। उनकी आज्ञाका पालनहुआ। हम सब माँका शवविमान लेकर मरघटपर पहुँचे। उनकी कपाल-क्रिया सम्पन्न की। ४ फुट लम्बी जीर्ण काया भस्म हो गयी। गीताका नित्य पाठ करनेवाली माताजी जानकी देवी अपने रघुवीरसे मिलने चली गयीं।

हम अभी घर पहुँचे ही थे कि एकाएक काले-काले बादल आकाशमें छा गये और चन्द मिनटोंमें ही घनघोर वर्षा होने लगी। वर्षा लगातार दो घण्टेतक होती रही, अन्तिम संस्कार लगभग ५ बजे सायंकाल हुआ था । हम पुनः मरघटतक नहीं जा सके। रास्तेमें पानी भरा था।

प्रातः मरघटपर पहुँचे तो भस्मका पता न था । केवल चार-छ: जली-धुली हुई अस्थियाँ चमक रही थीं। उन्हें चुन लाया। उनकी इच्छापर स्थापित रघुवीर र जानकी विज्ञान - विद्यालयके एक कोनेमें अस्थियोंके ऊपर आम्रका वृक्ष लगा दिया गया। बादमें समझमें आया कि महाप्रयाणसे पूर्व माँने लकड़ी-कंडे अविलम्ब मरघटतक पहुँचानेका निर्देश क्यों दिया था। गीताकी अध्येता माँ शायद भविष्य देख रही थीं।

[ श्रीराधेश्यामजी 'योगी' ]



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geetaapaatheekee bhavishyadrishti

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30 joon, san 1980 ee0 kee baat hai, aakaash svachchh tha, baadalaka kaheen naamonishaan naheen thaa. aisemen maan ne lakada़ee-kande tatkaal maraghat pahunchaaneka nirdesh kyon diya ? yah samajhamen tab naheen aayaa. unakee aajnaaka paalanahuaa. ham sab maanka shavavimaan lekar maraghatapar pahunche. unakee kapaala-kriya sampann kee. 4 phut lambee jeern kaaya bhasm ho gayee. geetaaka nity paath karanevaalee maataajee jaanakee devee apane raghuveerase milane chalee gayeen.

ham abhee ghar pahunche hee the ki ekaaek kaale-kaale baadal aakaashamen chha gaye aur chand minatonmen hee ghanaghor varsha hone lagee. varsha lagaataar do ghantetak hotee rahee, antim sanskaar lagabhag 5 baje saayankaal hua tha . ham punah maraghatatak naheen ja sake. raastemen paanee bhara thaa.

praatah maraghatapar pahunche to bhasmaka pata n tha . keval chaara-chha: jalee-dhulee huee asthiyaan chamak rahee theen. unhen chun laayaa. unakee ichchhaapar sthaapit raghuveer r jaanakee vijnaan - vidyaalayake ek konemen asthiyonke oopar aamraka vriksh laga diya gayaa. baadamen samajhamen aaya ki mahaaprayaanase poorv maanne lakada़ee-kande avilamb maraghatatak pahunchaaneka nirdesh kyon diya thaa. geetaakee adhyeta maan shaayad bhavishy dekh rahee theen.

[ shreeraadheshyaamajee 'yogee' ]

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