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श्रीवीरजी भक्त की मार्मिक कथा
श्रीवीरजी भक्त की अधबुत कहानी - Full Story of श्रीवीरजी भक्त (हिन्दी)

[भक्त चरित्र -भक्त कथा/कहानी - Full Story] [श्रीवीरजी भक्त]- भक्तमाल


श्रीवीरजी भक्तका जन्म भाडला गाँवमें संवत् 1876 में हुआ था। उनके पिताका नाम वस्ता संघराज और माताका नाम लाडकीबाई था। उनके पिता चोटीला में आये, तबसे उनका जीवन परमार्थके मार्गमें लग गया। छोटी उम्र में उन्होंने एक साधुको जाड़ेमें ठिठुरते देखकर अपना धाबला उढ़ा दिया। सतरह वर्षकी उम्र में उनके माता-पिताका देहान्त हो गया। उन्होंने छोटी-सी दूकान कर ली। उसमें जो कुछ बचता, उससे वे साधु-संतोंको रोटी देते। धीरे-धीरे इस सेवाको लेकर भक्तकी ख्याति बढ़ती गयी। बादको उन्होंने सदाव्रतके लिये जगह ठीक कर ली और वहाँ एक मन्दिर बनवाया। उस समय रेलवे लाइन न होनेके कारण वढवाणसे द्वारका जानेवाले हजारों साधु-संतोंको भक्तकी धर्मशालामें रोटी मिलती थी और ठहरनेके लिये जगह। उनके यहाँसे कोई साधु
संत कभी भूखे वापस नहीं जाते थे। गाँवमें पानीका बहुत ही कष्ट था। उन्होंने खुदमेहनत की और एक कुआँ बँधवाया, जो अबतक

'भगतके कुएँ' के नामसे प्रसिद्ध है। भगतजीमें प्रभु प्रेम विचित्र ही था। रामनामकी धुन लगाते समय उनके चेहरेपर अजब तेज झलक उठता था। वे निरन्तर रामनामका जप करते रहते थे।

वे अखण्ड ब्रह्मचारी थे। उनका जीवन बिलकुल सादा था। उनकी रहनी-करनी निर्दोष थी। उनका जीवन प्रभुमय था। वे सबमें श्रीहरिका ही दर्शन करते थे। वे कहते थे कि 'मुझको तो सब प्रभुका ही रूप मालूम पड़ता है।' वे साधु-संतोंकी पगचम्पी करते और उनको जिमाते समय मक्खियाँ उड़ाते तथा गरमीके दिनोंमें पंखा झलते थे। इस प्रकार साधुओंको सदा प्रसन्न रखते थे। सड़सठ वर्षकी उम्र में संवत् 1943 में चैत्र बदी पञ्चमी, गुरुवारको प्रातः काल रामनामका उच्चारण करते
हुए उनका देह छूटा और वे भगवत्स्वरूपमें लीन हो गये।



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[Bhakt Charitra - Bhakt Katha/Kahani - Full Story] [shreeveerajee bhakta]- Bhaktmaal


shreeveerajee bhaktaka janm bhaadala gaanvamen sanvat 1876 men hua thaa. unake pitaaka naam vasta sangharaaj aur maataaka naam laadakeebaaee thaa. unake pita choteela men aaye, tabase unaka jeevan paramaarthake maargamen lag gayaa. chhotee umr men unhonne ek saadhuko jaada़emen thithurate dekhakar apana dhaabala udha़a diyaa. satarah varshakee umr men unake maataa-pitaaka dehaant ho gayaa. unhonne chhotee-see dookaan kar lee. usamen jo kuchh bachata, usase ve saadhu-santonko rotee dete. dheere-dheere is sevaako lekar bhaktakee khyaati badha़tee gayee. baadako unhonne sadaavratake liye jagah theek kar lee aur vahaan ek mandir banavaayaa. us samay relave laain n honeke kaaran vadhavaanase dvaaraka jaanevaale hajaaron saadhu-santonko bhaktakee dharmashaalaamen rotee milatee thee aur thaharaneke liye jagaha. unake yahaanse koee saadhu
sant kabhee bhookhe vaapas naheen jaate the. gaanvamen paaneeka bahut hee kasht thaa. unhonne khudamehanat kee aur ek kuaan bandhavaaya, jo abataka

'bhagatake kuen' ke naamase prasiddh hai. bhagatajeemen prabhu prem vichitr hee thaa. raamanaamakee dhun lagaate samay unake cheharepar ajab tej jhalak uthata thaa. ve nirantar raamanaamaka jap karate rahate the.

ve akhand brahmachaaree the. unaka jeevan bilakul saada thaa. unakee rahanee-karanee nirdosh thee. unaka jeevan prabhumay thaa. ve sabamen shreeharika hee darshan karate the. ve kahate the ki 'mujhako to sab prabhuka hee roop maaloom pada़ta hai.' ve saadhu-santonkee pagachampee karate aur unako jimaate samay makkhiyaan uda़aate tatha garameeke dinonmen pankha jhalate the. is prakaar saadhuonko sada prasann rakhate the. sada़sath varshakee umr men sanvat 1943 men chaitr badee panchamee, guruvaarako praatah kaal raamanaamaka uchchaaran karate
hue unaka deh chhoota aur ve bhagavatsvaroopamen leen ho gaye.

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