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गङ्गा-जमुनाबाई की मार्मिक कथा
गङ्गा-जमुनाबाई की अधबुत कहानी - Full Story of गङ्गा-जमुनाबाई (हिन्दी)

[भक्त चरित्र -भक्त कथा/कहानी - Full Story] [गङ्गा-जमुनाबाई]- भक्तमाल


सोलहवीं शताब्दीमें इस देशमें मुसलमानोंका अत्याचारकाफी जोरपर था। उस समय एक मुगल सरदारने कामवनपर चढ़ाई की और गाँवोंको खूब लूटा। इस लूट खसोट और भीषण नर-हत्याकाण्डमें गङ्गा-यमुना दो असहाय लड़कियोंको भी अपने घर और कुटुम्बसे हाथ धोना पड़ा। इस समय इनकी अवस्था 9 - 9 वर्षकी थी। ये जंगलमें भाग छिपी थीं। इसीसे इनके प्राण बच गये।

प्रभुकी लीला विचित्र है। जिस समय गङ्गा-यमुना जंगलमें अकेली भूखसे रो रही थीं, उसी समयमनोहरदास नामक कोई ब्राह्मण वहाँसे निकला। उसे इन बालिकाओंपर दया आयी और वह इन्हें मथुरा। ले आया।

मनोहरदासने उन दोनों बालिकाओंको नृत्य गानकी अच्छी शिक्षा दी और पाँच वर्षोंमें उन्हें इस कलामें । निपुण कर दिया। अब वह इन्हें जगह-जगह नचाकर इनसे पैसे कमाने लगा। गङ्गा-यमुना दोनों अत्यन्त सुन्दरी थीं। अतः मनोहरदासको खूब धन मिलता; किन्तु 'जिमि प्रति लाभ लोभ अधिकाई' वह इनसे अधिक-से अधिक रुपया कमाना चाहता था। इसलिये उसने इन्हें बेचनेका विचार किया। एक दिन वह आगरेके किसी राजा भानसिंहके यहाँ इनका सौदा भी कर आया। सौदा दो हजार रुपयोंका हुआ। पापका फल शीघ्र मिल जाता है। मनोहरदास सौदा करके आया और कन्या विक्रयके ही पापसे दूसरे दिन मर गया। मरते समय वह अपना 1 गुप्त धन इन कन्याओंको बता गया।

अस्तु, अबतक गङ्गा-यमुना अपने गुणके लिये प्रसिद्ध हो गयी थीं। उनकी कला और गानका आनन्द लेनेके लिये श्रीवृन्दावनके एक वृद्ध संत श्रीपरमानन्ददासजी कभी-कभी मनोहरदासके यहाँ आया करते। उनसे गङ्गा-यमुनाका परिचय और प्रेम था। मनोहरदासके मरनेपर दोनों बहनें बाबा श्रीपरमानन्ददासजीके आश्रयमें चली आयीं। अब उन्हें इस नृत्य गानसे घृणा हो चुकी थी और संत-सङ्गके प्रभावसे स्वाभाविक ही भजनमें उनकी रुचि हो गयी थी। धीरे-धीरे उनका मन इस संसारके विषयोंसे उपरत हो गया।

अब दोनों बहनोंने वैष्णवी-दीक्षा ग्रहण करनेकी प्रार्थना की। बालिकाओंकी सच्ची जिज्ञासा देखकर श्रीपरमानन्ददासजीने उन्हें अपने गुरुदेव गोस्वामी श्रीहितहरिवंशचन्द्रके शरणापन्न करा दिया। वैष्णवी दीक्षा लेकर गङ्गा-यमुना दोनों श्रीठाकुरजीकी सेवा, नाम-जप और पाठ भजन आदि बड़ी प्रीतिसे करने लगीं। इनके पास जो मनोहरदासकी सम्पत्ति थी, उसेसाधु-संतोंकी सेवामें लगाने लगीं। इससे उन्हें अत्यधिक आनन्द मिलता।

इस प्रकार कितने ही दिन बीतने के पश्चात् उनके जीवनमें एक उपद्रव आया। गङ्गा-यमुनाके रूप-लावण्यकी चर्चा तो सर्वत्र थी ही, मथुराके हाकिम अजीजबेगने भी सुनी। उसने जाकर इन्हें देखा भी तब तो मानो उसकी 1 छातीपर साँप सा लोटने लगा। अजीजबेगने चुपके से दूसरे दिन गङ्गा-यमुनाकी कुटियाके आस-पास घेरा डाल दिया और जब रात्रिके समय उनकी कुटियापर आया, तब उसने वहाँ एक सिंहको रखवाली करते पाया। सिंहने गर्जना करके उसे खूब डराया भी वह भागा अपने घर आया। डरके मारे उसे ज्वर आ गया। कई बार मूर्छा भी हुई। सारी रात बड़े कष्टसे बोती।

यह सब तो हुआ; पर गङ्गा-यमुनाको इस बातका कि कोई आया भी था, पतातक न चला। वे तो संतोंके सङ्गमें बैठी हरि-गुणगान करती रहीं। सबेरा होनेपर अज़ीज़बेग गङ्गा-यमुनाके पास आया और उन्हें 'माता' शब्दसे सम्बोधित करके उसने अपना अपराध क्षमा कराया। उसने उन्हें सिंहको कथा भी सुनायी तथा बहुत-सा द्रव्य भेंट किया। किंतु इन बाकी धन हाथ न छुपी हरि भक्तनि हित सिच्छित कियी ।। इन्होंने उसके धनको छुआ नहीं और संतोंकी सेवामें लगा देनेका उपदेश दिया। इससे अज़ीज़वेगकी श्रद्धा और भी बढ़ गयी। उसने बार-बार इनको चरण रज ली, तब इन्होंने उसे आदरके साथ विदा कर दिया।

इन दोनों भक्तिमतो बहनोंके विषयमें भक्तमालकार श्रीगोविन्द अलिजीने लिखा है-

हीन कुली वपु धार सार हितजू ते पायी।

जैसे पारस परस लोह ते हेम कहायौ ॥

दास मनोहर वास गृह परमानंद के संग।

कुंजमहल में प्रगट है गायति तान तरंग ॥

इहि विधि जुगल रिझाय के बस बिपिन में आई।

गंगा जमुना की कथा सुनहु रसिक चित लाइ ॥



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jaise paaras paras loh te hem kahaayau ..

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kunjamahal men pragat hai gaayati taan tarang ..

ihi vidhi jugal rijhaay ke bas bipin men aaee.

ganga jamuna kee katha sunahu rasik chit laai ..

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