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विश्वासका फल  [हिन्दी कहानी]
छोटी सी कहानी - Moral Story (प्रेरक कथा)

एक सच्चा भक्त था, पर था बहुत ही सीधा उसे छल-कपटका पता नहीं था। वह हृदयसे चाहता था कि मुझे शीघ्र भगवान् के दर्शन हों। दर्शनके लिये वह दिन रात छटपटाता रहता और जो मिलता, उसीसे उपाय पूछता। एक ठगको उसकी इस स्थितिका पता लग गया। वह साधुका वेष बनाकर आया और उससे बोला 'मैं तुम्हें आज ही भगवान्‌के दर्शन करा दूँगा। तुम अपना सारा सामान बेचकर मेरे साथ जंगलमें चलो।' भक्त निष्कपट, सरल हृदयका था और दर्शनकी चाहसे व्याकुल था। उसको बड़ी खुशी हुई और उसने उसी समय जो कुछ भी दाममें मिले, उसीपर अपना सारा सामान बेच दिया और रुपये साथ लेकर वह ठगके साथ चल दिया। रास्ते में एक कुआँ मिला। ठगने कहा, 'बस, इस कुएँमें भगवान् के दर्शन होंगे, तुम इन मायिक रुपयोंको रख दो और कुएँमें झाँको।' सरल विश्वासी भक्तने ऐसा ही किया। वह जब कुएँ में झाँकने लगा, तब ठगने एक धक्का दे दिया, जिससे वह तुरंत कुऍमें गिर पड़ा। भगवत्कृपासेउसको जरा भी चोट नहीं लगी और वहीं साक्षात् भगवान्‌के दर्शन हो गये। वह कृतार्थ हो गया।

ठग रुपये लेकर चंपत हो गया था। भगवान्ने सिपाहीका वेष धरकर उसे पकड़ लिया और उसी कुएँपर लाकर अंदर पड़े हुए भक्तसे सारा हाल कहा और भक्तको कुएँसे निकालना चाहा। भक्त उस समय भगवान्‌की रूपमाधुरीके सरस रसपानमें मत्त था; उसने कहा - 'आप मुझको इस समय न छेड़िये। ये ठग हों या कोई, मेरे तो गुरु हैं। सचमुच ही इन्होंने मेरी मायिक पूँजीको हरकर मुझको श्रीहरिके दर्शन कराये हैं। अतएव आप इन्हें छोड़ दीजिये।' भक्तकी इस बातको सुनकर और सरल विश्वासका ऐसा चमत्कार देखकर ठगके मनमें आया कि सचमुच इसको ठगकर मैं ही ठगा गया हूँ। उसे अपने कृत्यपर बड़ी ग्लानि हुई और उसका हृदय पलट गया। भक्त और भगवान्‌के सङ्गका प्रभाव भी था ही। वह भी उसी दिनसे अपना दुष्कृत्य छोड़कर भगवान्का सच्चा भक्त बन गया।



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vishvaasaka phala

ek sachcha bhakt tha, par tha bahut hee seedha use chhala-kapataka pata naheen thaa. vah hridayase chaahata tha ki mujhe sheeghr bhagavaan ke darshan hon. darshanake liye vah din raat chhatapataata rahata aur jo milata, useese upaay poochhataa. ek thagako usakee is sthitika pata lag gayaa. vah saadhuka vesh banaakar aaya aur usase bola 'main tumhen aaj hee bhagavaan‌ke darshan kara doongaa. tum apana saara saamaan bechakar mere saath jangalamen chalo.' bhakt nishkapat, saral hridayaka tha aur darshanakee chaahase vyaakul thaa. usako bada़ee khushee huee aur usane usee samay jo kuchh bhee daamamen mile, useepar apana saara saamaan bech diya aur rupaye saath lekar vah thagake saath chal diyaa. raaste men ek kuaan milaa. thagane kaha, 'bas, is kuenmen bhagavaan ke darshan honge, tum in maayik rupayonko rakh do aur kuenmen jhaanko.' saral vishvaasee bhaktane aisa hee kiyaa. vah jab kuen men jhaankane laga, tab thagane ek dhakka de diya, jisase vah turant kuऍmen gir pada़aa. bhagavatkripaaseusako jara bhee chot naheen lagee aur vaheen saakshaat bhagavaan‌ke darshan ho gaye. vah kritaarth ho gayaa.

thag rupaye lekar chanpat ho gaya thaa. bhagavaanne sipaaheeka vesh dharakar use pakada़ liya aur usee kuenpar laakar andar pada़e hue bhaktase saara haal kaha aur bhaktako kuense nikaalana chaahaa. bhakt us samay bhagavaan‌kee roopamaadhureeke saras rasapaanamen matt thaa; usane kaha - 'aap mujhako is samay n chheda़iye. ye thag hon ya koee, mere to guru hain. sachamuch hee inhonne meree maayik poonjeeko harakar mujhako shreeharike darshan karaaye hain. ataev aap inhen chhoda़ deejiye.' bhaktakee is baatako sunakar aur saral vishvaasaka aisa chamatkaar dekhakar thagake manamen aaya ki sachamuch isako thagakar main hee thaga gaya hoon. use apane krityapar bada़ee glaani huee aur usaka hriday palat gayaa. bhakt aur bhagavaan‌ke sangaka prabhaav bhee tha hee. vah bhee usee dinase apana dushkrity chhoda़kar bhagavaanka sachcha bhakt ban gayaa.

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