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जासु सत्यता तें जड़ माया  [शिक्षदायक कहानी]
Story To Read - Story To Read (Hindi Story)

जासु सत्यता तें जड़ माया

(श्रीशरदचन्द्रजी पेंढारकर)

समर्थ गुरु रामदासजीका प्रतिदिन संध्या समय शिष्योंके साथ अध्यात्म चर्चाका नियम था, जिसमें शिष्यगण उनसे गहन प्रश्न पूछते और वे उनका समाधानपूर्वक उत्तर देते थे। एक बार एक शिष्यने उनसे प्रश्न किया- 'माया सत्य है अथवा मिथ्या ?' रामदासजीने उत्तर दिया- 'माया सत्य है।' वासुदेवपण्डित नामक एक शिष्य इस उत्तरसे सन्तुष्ट न हुआ और उसने कहा- 'माया मिथ्या है।' इसपर समर्थने कहा कि 'इसे वे बादमें कभी सप्रमाण सिद्ध करेंगे।'
कुछ दिनों बाद रामदासजीने एक जादूगरको बुलाया और उससे साँपका खेल दिखानेके लिये कहा। जब उसने एक कपड़ेका साँप बनाया, तो समर्थने वासुदेवपण्डितसे पूछा- 'साँप सत्य है या मिथ्या ?" 'मिथ्या' वासुदेवने उत्तर दिया। तब समर्थने उसे हाथमें पकड़नेके लिये कहा। जब वासुदेवने आगे हाथ बढ़ाया, तो उस कपड़े के साँपने मदारीके कौशलसे हाथको लपेटना शुरू किया। जब हाथ कसा जाने लगा, तो उसे असह्य पीड़ा होने लगी और वह मारे दर्दके चिल्लाने लगा। तब समर्थने जादूगरसे उस सर्पको वापस लेनेके लिये कहा। जादूगरने जब वासुदेवके हाथसे सर्परूपी कपड़ेको वापस लिया, तो उन्होंने वासुदेवसे प्रश्न किया- 'सर्प सत्य है, या मिथ्या ?' उसने उत्तर दिया- 'सर्प मिथ्या है, लेकिन मुझे प्राणान्तक वेदना हो रही थी, यह भी उतना ही सत्य है।'
समर्थने पुनः प्रश्न किया- 'जब सर्प मिथ्या था, तो तुमको वेदना कैसे हो रही थी ?' वासुदेवने उत्तर दिया 'मिथ्या होते हुए भी वह सर्प सरीखा हो गया था। यदि जादूगरने उसे छुड़ा न लिया होता, तो शायद मैं जीवित न रहता।' 'इसका अर्थ हुआ कि सर्प मिथ्या न रहा' समर्थके यह कहनेपर वासुदेवने कोई जवाब नहीं दिया। तब रामदासजीने कहा- 'कुछ दिनों पूर्व तुमने 'माया मिथ्या है' कहा था न ?' उसके 'हाँ' कहनेपर सन्तने कहा- 'जिस प्रकार कपड़ेका सर्प मिथ्या है, लेकिन जादूगरके कारण वह सत्य हो गया था, उसी प्रकार माया भले ही मिथ्या है, लेकिन ईश्वरके योगसे वह सत्य हो जाती है।' मानसमें भी कहा गया है- 'जासु सत्यता तें जड़ माया । भास सत्य इव मोह सहाया ॥'



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jaasu satyata ten jada़ maayaa

jaasu satyata ten jada़ maayaa

(shreesharadachandrajee pendhaarakara)

samarth guru raamadaasajeeka pratidin sandhya samay shishyonke saath adhyaatm charchaaka niyam tha, jisamen shishyagan unase gahan prashn poochhate aur ve unaka samaadhaanapoorvak uttar dete the. ek baar ek shishyane unase prashn kiyaa- 'maaya saty hai athava mithya ?' raamadaasajeene uttar diyaa- 'maaya saty hai.' vaasudevapandit naamak ek shishy is uttarase santusht n hua aur usane kahaa- 'maaya mithya hai.' isapar samarthane kaha ki 'ise ve baadamen kabhee sapramaan siddh karenge.'
kuchh dinon baad raamadaasajeene ek jaadoogarako bulaaya aur usase saanpaka khel dikhaaneke liye kahaa. jab usane ek kapada़eka saanp banaaya, to samarthane vaasudevapanditase poochhaa- 'saanp saty hai ya mithya ?" 'mithyaa' vaasudevane uttar diyaa. tab samarthane use haathamen pakada़neke liye kahaa. jab vaasudevane aage haath badha़aaya, to us kapada़e ke saanpane madaareeke kaushalase haathako lapetana shuroo kiyaa. jab haath kasa jaane laga, to use asahy peeda़a hone lagee aur vah maare dardake chillaane lagaa. tab samarthane jaadoogarase us sarpako vaapas leneke liye kahaa. jaadoogarane jab vaasudevake haathase sarparoopee kapada़eko vaapas liya, to unhonne vaasudevase prashn kiyaa- 'sarp saty hai, ya mithya ?' usane uttar diyaa- 'sarp mithya hai, lekin mujhe praanaantak vedana ho rahee thee, yah bhee utana hee saty hai.'
samarthane punah prashn kiyaa- 'jab sarp mithya tha, to tumako vedana kaise ho rahee thee ?' vaasudevane uttar diya 'mithya hote hue bhee vah sarp sareekha ho gaya thaa. yadi jaadoogarane use chhuda़a n liya hota, to shaayad main jeevit n rahataa.' 'isaka arth hua ki sarp mithya n rahaa' samarthake yah kahanepar vaasudevane koee javaab naheen diyaa. tab raamadaasajeene kahaa- 'kuchh dinon poorv tumane 'maaya mithya hai' kaha tha n ?' usake 'haan' kahanepar santane kahaa- 'jis prakaar kapada़eka sarp mithya hai, lekin jaadoogarake kaaran vah saty ho gaya tha, usee prakaar maaya bhale hee mithya hai, lekin eeshvarake yogase vah saty ho jaatee hai.' maanasamen bhee kaha gaya hai- 'jaasu satyata ten jada़ maaya . bhaas saty iv moh sahaaya ..'

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