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मृत्युमुखमें पहुँची असाध्य रुग्णाकी जीवन-रक्षा

मैं पेशेसे चिकित्सक होने के नाते पड़ोसकी एक स्त्रीको प्रथम प्रसवके दौरान उपचार देने गया। खानदानी पेशा होनेके कारण हमारा क्षेत्रमें बहुत विश्वास किया जाता है, उस समय इतने छोटे गाँवों में बड़े डॉक्टर एवं अस्पताल नहीं थे। प्रसवमें स्त्रीको सन्निपात (एक्लोशिया) हो गया, उन्मादकी स्थिति बन गयी, बेहोशी एवं प्रलाप आदि तीव्र लक्षण परिलक्षित होने लगे। घरवाले घबरा गये। आयुर्वेदिक, ऐलोपैथिक ऊँची-से-ऊँची दवाओंका प्रयोग करनेपर भी सफलता नहीं मिली। मौसम वर्षाका था, घनघोर मूसलाधार वर्षा रुकनेका नाम नहीं ले रही थी, ऐसी परिस्थितिमें रुग्णा - सद्यः प्रसवाको कहीं बाहर बड़े अस्पतालमें पहुँचाना भी असम्भव हो गया, गाँवके चारों ओरके मार्ग नदियोंके उफानपर होनेके कारण अवरुद्ध हो गये थे, घरसे बाहर निकलना मुश्किल था। एक रात्रि एक दिन पूरा समाप्त हो गया। रुग्णाके बचनेकी कोई आशा नहीं थी, दूसरी रात्रि भी मैं उपचार करता रहा, वहीं रुग्णाके पास यह रात्रि भीव्यतीत हो गयी।

प्रातः शीघ्र नित्यकर्मसे निवृत्त हो स्नान-ध्यानके पश्चात् मुझे आत्मप्रेरणा हुई—'औषधं जाह्नवीतोयम्'। मैंने रुग्णाके पिताको स्नानकर शीघ्र आनेको कहा।

उनके आनेपर मैंने एक स्वच्छ पात्रमें ५० ग्रामके लगभग गंगाजल रखकर उनसे गंगोदकपानका संकल्प कराया और रुग्णाको पिलानेका निर्देश दिया।

एक घण्टे बाद चमत्कारिक रूपसे रुग्णा होशमें आकर बैठी और बातें करने लगी। मैंने देखा स्वास्थ्य सुधार हो गया, इसके बाद कोई औषधि नहीं दी गयी, रुग्णा पूर्ण स्वस्थ होकर आज भी जीवित है। संतान मर चुकी थी, किंतु रुग्णाको कोई पता नहीं था, होशमें आनेपर खूब रोयी -चिल्लायी, परंतु अन्य लक्षण रोगके कोई भी न रहे।

इस प्रकार मात्र गंगाजलपानसे जीवनरक्षा एवं स्वास्थ्य प्राप्ति हुई।

धन्य हैं गंगा माँ, धन्य है उनकी कृपा!

[ वैद्य श्रीकृष्णजी शर्मा ]



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mrityumukhamen pahunchee asaadhy rugnaakee jeevana-rakshaa

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is prakaar maatr gangaajalapaanase jeevanaraksha evan svaasthy praapti huee.

dhany hain ganga maan, dhany hai unakee kripaa!

[ vaidy shreekrishnajee sharma ]

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