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भक्तकवि मुक्तेश्वर की मार्मिक कथा
भक्तकवि मुक्तेश्वर की अधबुत कहानी - Full Story of भक्तकवि मुक्तेश्वर (हिन्दी)

[भक्त चरित्र -भक्त कथा/कहानी - Full Story] [भक्तकवि मुक्तेश्वर]- भक्तमाल


कविवर मुक्तेश्वर भगवान्‌के परम भक्त थे, रसिक कवि थे। अपने स्फुट पदोंमें मुक्तेश्वरने अपना संक्षिप्त परिचय स्वयं दिया है। परम पवित्र गौतमी सरिताके रमणीय तट- देशमें उनका जन्म हुआ था। ये पैठणके सुप्रसिद्ध भक्त एकनाथके दौहित्र - उनकी लड़कीके लड़के थे। पैठण ही उनका निवास स्थान था। उनका उपनाम मुगल था। वे अत्रिगोत्र और आश्वलायन सूत्रके थे। उनके दत्तात्रेयजी उपास्य थे, विश्वम्भर उनके गुरु थे। मुक्तेश्वर जन्मसे ही मूक थे। संत एकनाथजीकीकृपासे वे बोलने लग गये। उनके चरित्र - विकासपर ज्ञानेश्वरका बड़ा प्रभाव पड़ा था। ज्ञानेश्वरमें उनकी उत्कट भक्ति थी । बाल्यावस्थासे ही संतों और ज्ञानी-महात्माओंके सम्पर्क में आते रहने से उनको शास्त्रका अच्छा ज्ञान हो गया था। उनका स्वभाव सत्सङ्गके प्रभावसे अत्यन्त विनम्र और माधुर्यपूर्ण था, कोमल था। उनकी नीति उज्ज्वल, मति पवित्र और प्रतिभा दिव्य थी। उन्होंने अपनी कृतियोंमें देवी-देवताके नाम बड़ी श्रद्धासे लिये हैं। मुक्तेश्वरका दृढ़ सिद्धान्त था कि संसारके दुःखोंसेनिवृत्त होनेका उपाय यह है कि 'जीवात्मा विश्वासपूर्वक श्रीरामके चरणकी अचल भक्ति प्राप्त करे। श्रीरामकी ही शरण जानेसे भवसागरसे मुक्ति हो सकती है।' मुक्तेश्वरकी गुरु-निष्ठा बहुत बढ़ी चढ़ी हुई थी, उन्होंने गुरु विश्वम्भरनाथकी चरण-शरण अपनाते समय कहा था- 'मैं तो अबोध शिशु हूँ। आपके चरणपर मस्तक रखनेके सिवा मैं कुछ और जानता ही नहीं, आप अपने इस पुत्रकी रक्षा कीजियेगा।'मुक्तेश्वरने महाराष्ट्र- क्षेत्रमें भक्ति-प्रचार करनेमें जो यश कमाया, वह सर्वथा स्तुत्य और सराहनीय है। श्रीराम और श्रीकृष्ण दोनोंमें उनकी उपास्य-वृत्ति थी । उन्होंने संक्षेपमें रामायण, मुक्तेश्वरी भारत, एकनाथ - आदि सद्ग्रन्थोंकी रचना की थी। शाके 1560 में 65 वर्षकी अवस्थामें उनका देहावसान हो गया। मराठी वाङ्मयके भक्त कवियोंमें उन्हें अत्यन्त गौरवास्पद स्थान प्राप्त है।



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