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भक्त संतदासजी की मार्मिक कथा
भक्त संतदासजी की अधबुत कहानी - Full Story of भक्त संतदासजी (हिन्दी)

[भक्त चरित्र -भक्त कथा/कहानी - Full Story] [भक्त संतदासजी]- भक्तमाल


भक्त संतदासजीने संवत् 1920 वि0 में उत्तरप्रदेशके बुलन्दशहर जनपदके धूम ग्राममें एक समृद्ध परिवारमें ठाकुर केशरीसिंहजीके घर जन्म लिया। उनका नाम राजारामसिंह था। बचपनसे ही उनका मन वैराग्य और भक्तिमें आसक्त था। दस वर्षकी ही अवस्थामें बिसाहढ़के ठाकुर निहालसिंहकी पुत्रीसे उनका विवाह कर दिया गया। ससुरालवाले सत्सङ्गी थे। उनके यहाँ समय समयपर साधु-महात्माओंका सत्सङ्ग होता रहता था। राजारामसिंहके पवित्र और भक्तिपूर्ण जीवन-निर्माण में इस तरहके संत-सम्पर्कका बड़ा प्रभाव पड़ा था। उनपर संत कबीर साहबके पदों और वाणीका भी अच्छा प्रभावपड़ा था। उन्होंने अपने ग्रामके ही एक सुयोग्य महात्मा ध्यानगिरिजीसे दीक्षा ले ली और गुरुकी तरह ब्रह्मचिन्तनमें तल्लीन हो गये। महात्मा ध्यानगिरिने राजारामका नाम बदलकर संतदास रख दिया, यद्यपि वे अड़ोस-पड़ोसमें 'भगतजी' नामसे ही विख्यात थे।

संतदासजी उपनिषद्, वेदान्तदर्शन आदिके अध्ययनमें बड़ी रुचि रखते थे। वे ज्ञान और भक्तिके सरल और निष्पक्ष समन्वय थे। जीवनपर्यन्त उनके घरपर रातमें भगवन्नामकीर्तनका कार्यक्रम चलता था । कीर्तन समाप्त होनेपर वे थोड़े समयतक प्रवचन भी करते थे। साधु संतों, अतिथि और अभ्यागतोंके आदर-सत्कार, स्वागतसेवामें वे सदा तत्पर रहते थे। उन्हें समय-समयपर घर बैठे-बैठे ही अच्छे-अच्छे महात्माओं, संतों और विद्वानोंका दर्शन मिल जाता था और निःसन्देह वे इस तरहके दर्शन-सुखके अधिकारी भी l

वे सत्यभाषणपर विशेष जोर देते थे, जप-तप आदि साधनोंसे कहीं महत्त्वपूर्ण वे सत्यभाषणको समझते थे। उन्होंने अपने सत्सङ्गमें सदा सदाचार और सत्यकी महिमाका ही बखान किया। यौगिक क्रियाओंमें भी उनकी बड़ी रुचि थी। वे यथावकाश साधारण ढंगसे योगाभ्यास भी किया करते थे। उनके सम्पर्कमें गाँववालोंका ही नहीं, आस-पासके असंख्य व्यक्तियोंका जीवन भगवान्‌के चरण-चिन्तनमें समर्पित हो गया। उनका जीवन-क्रम अत्यन्त सरल और सद्गुणसम्पन्न था। यद्यपि वे थोड़ा-बहुत खेती-बारीका भी काम देखते थे, तो भी उनके समयका अधिकांश सत्सङ्गमें ही बीतताथा। बड़े-से-बड़े पापी, चोर और हिंसक उनके सामने आते ही क्षणमात्रमें कुछ-से-कुछ हो जाते थे। उनका जीवन पूर्णरूपसे सात्त्विक हो जाया करता था।

संतदासजी असहायों और गरीबोंको निःशुल्क दवा भी देते थे। कभी-कभी समय आनेपर, अपने घरमें ही किसीके बीमार हो जानेपर या धनी व्यक्तिके अस्वस्थ हो जानेपर उन्होंने दवा देना अस्वीकार कर दिया; वे कहा करते थे कि 'यह दवा तो गरीबोंके लिये है; पैसेवाले तो समयपर डाक्टर भी बुला सकते हैं, पर बेचारे गरीब तो इसीसे आश्वस्त होंगे।'

वे कीर्तनके लिये पदोंकी रचना स्वयं करते थे। उनकी एक कीर्तन-पुस्तक- 'शब्दावली आत्मज्ञान' प्रकाशित है। अन्तकालमें निमोनियासे पीड़ित होते हुए भी उन्होंने स्नान किया, छोटे-बड़े सबको सत्य-पालनका आशीर्वाद दिया और सदाके लिये आँखें मूंद लीं।



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[Bhakt Charitra - Bhakt Katha/Kahani - Full Story] [bhakt santadaasajee]- Bhaktmaal


bhakt santadaasajeene sanvat 1920 vi0 men uttarapradeshake bulandashahar janapadake dhoom graamamen ek samriddh parivaaramen thaakur keshareesinhajeeke ghar janm liyaa. unaka naam raajaaraamasinh thaa. bachapanase hee unaka man vairaagy aur bhaktimen aasakt thaa. das varshakee hee avasthaamen bisaahadha़ke thaakur nihaalasinhakee putreese unaka vivaah kar diya gayaa. sasuraalavaale satsangee the. unake yahaan samay samayapar saadhu-mahaatmaaonka satsang hota rahata thaa. raajaaraamasinhake pavitr aur bhaktipoorn jeevana-nirmaan men is tarahake santa-samparkaka bada़a prabhaav pada़a thaa. unapar sant kabeer saahabake padon aur vaaneeka bhee achchha prabhaavapada़a thaa. unhonne apane graamake hee ek suyogy mahaatma dhyaanagirijeese deeksha le lee aur gurukee tarah brahmachintanamen talleen ho gaye. mahaatma dhyaanagirine raajaaraamaka naam badalakar santadaas rakh diya, yadyapi ve ada़osa-pada़osamen 'bhagatajee' naamase hee vikhyaat the.

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