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भक्त श्रीछीतस्वामीजी की मार्मिक कथा
भक्त श्रीछीतस्वामीजी की अधबुत कहानी - Full Story of भक्त श्रीछीतस्वामीजी (हिन्दी)

[भक्त चरित्र -भक्त कथा/कहानी - Full Story] [भक्त श्रीछीतस्वामीजी]- भक्तमाल


श्रीछीतस्वामी मथुराके चौबे थे, उनका जन्म लगभग संवत् 1572 वि0 में हुआ था। वे बाल्यावस्थासे ही नटखट और असाधु प्रकृतिके व्यक्ति थे। परंतु भक्तिके महान् आचार्य, परम भगवदीय गोसाईं विट्ठलनाथकी कृपा-सुधाने छीत चौबेको परम भक्त, हरिपरायण और रसिक भगवद्यशगायकमें रूपान्तरित कर लिया। ये बीस सालकी अवस्थामें गोसाईं विट्ठलनाथजीके शिष्य हो गये। उन दिनों श्रीविट्ठलनाथजीकी अलौकिक भक्ति निष्ठाकी चर्चा चारों ओर तेजीसे फैल रही थी। कुछ साथियोंको लेकर छीत चौबेने उनकी परीक्षा लेनेके लिये गोकुलकी यात्रा की। गोसाईंजीके हाथमें सूखे नारियल और खोटे रुपयेकी भेंट रखी। नारियलमें गिरी निकल आयी और खोटा रुपया ठीक निकला। गोसाईंजीके दर्शनसे उनका मन बदल चुका था, उनके चमत्कारसे प्रभावित होकर उन्होंने क्षमा माँगी और कहा कि 'मुझे अपनी चरण-शरणके अभय दानसे कृतार्थ कीजियेआप दयासिन्धु हैं, हरिभक्तिसुधादानसे मेरे पाप-तापका शमन करके भवसागर से पार होनेका मन्त्र दीजिये । आपका प्रश्रय छोड़कर दूसरा स्थान मेरे लिये है भी तो नहीं; सागरसे सरिता मिलती है तो प्यासी थोड़े रह जाती है।' श्रीगोसाईंजी महाराजने उनको ब्रह्म-सम्बन्ध दिया, गुरुके पादपद्ममकरन्दके रसास्वादनसे प्रमत्त होकर छीतस्वामीने अपनी काव्य-भारतीका आवाहन किया

भई अब गिरिधर सों पहिचान ।

कपटरूप धरि छलिबे आये, पुरुषोत्तम नहिं जान ॥

छोटौ बड़ौ कछू नहिं जान्यौ, छाय रह्यौ अग्यान ।

'छीत' स्वामि देखत अपनायौ, बिट्ठल कृपानिधान ॥

दीक्षा ग्रहणके बाद उन्होंने नवनीतप्रियके दर्शन किये। उन्होंने गोसाईंजीसे घर जानेकी आज्ञा माँगी। कुछ कालके बाद वे स्थायीरूपसे गोवर्धनके निकट पूँछरी स्थानपर श्याम तमाल वृक्षके नीचे रहने लगे। वे श्रीनाथजीके सामने कीर्तन करते और उनकी लीलाकेसरस पदोंकी रचना करते थे। उनके पद सीधी-सादी सरल भाषामें हैं, व्रजभूमिके प्रति उनमें प्रगाढ़ अनुराग था। 'ए हो बिधिना! तो सों अँचरा पसारि माँगों, जनम जनम दीजै याही ब्रज बसिबौ' से उनकी व्रजक्षेत्रके प्रति आस्थाका पता चलता है। गोसाईं विट्ठलनाथजीने उनकी दृढ़ भक्ति और सरस पद-रचनासे प्रसन्न होकर उनकोअष्टछापमें सम्मिलित कर लिया। वे निःस्पृहताके मूर्तिमान् रूप थे।

श्रीविट्ठलके लीला- प्रवेशके बाद संवत् 1642 वि0 में उन्होंने अपने निवासस्थानपर पूँछरीमें देह त्याग कर दिया। उन्होंने पुष्टिमार्गके विकासमें महान् योग दिया।



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[Bhakt Charitra - Bhakt Katha/Kahani - Full Story] [bhakt shreechheetasvaameejee]- Bhaktmaal


shreechheetasvaamee mathuraake chaube the, unaka janm lagabhag sanvat 1572 vi0 men hua thaa. ve baalyaavasthaase hee natakhat aur asaadhu prakritike vyakti the. parantu bhaktike mahaan aachaary, param bhagavadeey gosaaeen vitthalanaathakee kripaa-sudhaane chheet chaubeko param bhakt, hariparaayan aur rasik bhagavadyashagaayakamen roopaantarit kar liyaa. ye bees saalakee avasthaamen gosaaeen vitthalanaathajeeke shishy ho gaye. un dinon shreevitthalanaathajeekee alaukik bhakti nishthaakee charcha chaaron or tejeese phail rahee thee. kuchh saathiyonko lekar chheet chaubene unakee pareeksha leneke liye gokulakee yaatra kee. gosaaeenjeeke haathamen sookhe naariyal aur khote rupayekee bhent rakhee. naariyalamen giree nikal aayee aur khota rupaya theek nikalaa. gosaaeenjeeke darshanase unaka man badal chuka tha, unake chamatkaarase prabhaavit hokar unhonne kshama maangee aur kaha ki 'mujhe apanee charana-sharanake abhay daanase kritaarth keejiyeaap dayaasindhu hain, haribhaktisudhaadaanase mere paapa-taapaka shaman karake bhavasaagar se paar honeka mantr deejiye . aapaka prashray chhoda़kar doosara sthaan mere liye hai bhee to naheen; saagarase sarita milatee hai to pyaasee thoda़e rah jaatee hai.' shreegosaaeenjee mahaaraajane unako brahma-sambandh diya, guruke paadapadmamakarandake rasaasvaadanase pramatt hokar chheetasvaameene apanee kaavya-bhaarateeka aavaahan kiyaa

bhaee ab giridhar son pahichaan .

kapataroop dhari chhalibe aaye, purushottam nahin jaan ..

chhotau bada़au kachhoo nahin jaanyau, chhaay rahyau agyaan .

'chheeta' svaami dekhat apanaayau, bitthal kripaanidhaan ..

deeksha grahanake baad unhonne navaneetapriyake darshan kiye. unhonne gosaaeenjeese ghar jaanekee aajna maangee. kuchh kaalake baad ve sthaayeeroopase govardhanake nikat poonchharee sthaanapar shyaam tamaal vrikshake neeche rahane lage. ve shreenaathajeeke saamane keertan karate aur unakee leelaakesaras padonkee rachana karate the. unake pad seedhee-saadee saral bhaashaamen hain, vrajabhoomike prati unamen pragaadha़ anuraag thaa. 'e ho bidhinaa! to son anchara pasaari maangon, janam janam deejai yaahee braj basibau' se unakee vrajakshetrake prati aasthaaka pata chalata hai. gosaaeen vitthalanaathajeene unakee dridha़ bhakti aur saras pada-rachanaase prasann hokar unakoashtachhaapamen sammilit kar liyaa. ve nihsprihataake moortimaan roop the.

shreevitthalake leelaa- praveshake baad sanvat 1642 vi0 men unhonne apane nivaasasthaanapar poonchhareemen deh tyaag kar diyaa. unhonne pushtimaargake vikaasamen mahaan yog diyaa.

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