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भक्त महेश की मार्मिक कथा
भक्त महेश की अधबुत कहानी - Full Story of भक्त महेश (हिन्दी)

[भक्त चरित्र -भक्त कथा/कहानी - Full Story] [भक्त महेश]- भक्तमाल


भक्त महेशका जन्म बंगालमें हुआ था। विद्यार्थी जीवन-कालमें ही पूर्वजन्मके शुभ संस्कारोंके फलस्वरूप उनके मनमें शुद्ध भक्तिभावका उदय हुआ। उनके गाँव में एक जटाधर नामक साधु रहते थे, उनके सत्सङ्गसे उनकी भक्ति-निष्ठा उत्तरोत्तर दृढ़ होती गयी। भक्त महेश एकान्तमें बैठकर निष्कपटभावसे भगवान्‌से दर्शनकी याचना किया करते थे। घरमें भगवान् श्रीकृष्णकी मूर्ति स्थापित थी, वे भगवान्‌के विग्रहके ध्यानमें रात-दिन मस्त रहते थे। भगवान्के ही शृङ्गार आदिमें वे अपने समयका सदुपयोग करते थे। माता-पिताको यह आशङ्का थी कि महेश घर छोड़कर चले न जायँ; इसलिये वे उन्हें सतरह वर्षकी कोमल अवस्थामें विवाह बन्धनमें जकड़नेके लिये तैयार हो गये। महेश विवाहके पूर्व ही एक रातको भगवन्नामका जप करते हुए वृन्दावनके लिये चल पड़े। रतनपुरा ग्रामके हरिकीर्तन-उत्सवमें सम्मिलित होकर वे व्रजके प्रेमदेवता श्रीकृष्णका ध्यान कर रहे थे कि एक साधुने उनके कानमें 'हरि ॐ मन्त्रका उच्चारण किया। वे वहाँसे आगे बढ़े।

उन्होंने कुछ दिनोंतक काशीमें निवासकर एक साधुके कहनेपर विन्ध्याचलकी यात्रा की, वे संतों औरसाधुओंके मिलनके लिये बड़े उत्सुक थे। कुछ दिनोंतक अष्टभुजी पहाड़ और उनके आस-पासके भागोंमें भ्रमण करते रहे। उन्होंने भगवान्‌के चिन्तन, ध्यान, पूजन तथा स्मरणमें खाने-पीनेकी चिन्ताको भुला दिया। तदनन्तर वे हरिनामकी ध्वनि करते हुए वृन्दावनकी ओर चल पड़े। नयन और हृदय भगवान् श्यामसुन्दरके दर्शन तथा मिलनके लिये लालायित थे। महेश भक्तिको राजधानी वृन्दावनमें पहुँच गये। वे गोविन्दजीके मन्दिरमें गये। उस समय भगवान्‌की आरती हो रही थी। उन्होंने गोविन्ददेवकी कमनीय कान्ति और रमणीय छविका देवदुर्लभ रसास्वादन किया। उसके बाद वृन्दावनके प्रसिद्ध प्रसिद्ध मन्दिरोंकी परिक्रमा करके भगवान्‌के दर्शनरसामृतसे अपने-आपको तृप्त किया। उनका मन तो गोविन्ददेवजीके रूपपर आसक्त हो चुका था। वे गोविन्दजीके मन्दिरमें लौटकर भगवान्‌को निहारने लगे। मन्दिरके गोस्वामीजीकी दृष्टि उनपर पड़ी, वे उनके रूप-लावण्यसे आश्चर्यचकित होकर पास आये। महेशने अपने मनकी बात बता दी, उन्होंने कहा कि - महाराज ! मैं तो पूर्णरूपसे गोविन्दजीका ही हो चुका हूँ। गोस्वामीजीने उनको मन्दिरमें स्थायी निवास प्रदान किया। वे आजीवन गोविन्दजीकी ही सेवा करते रहे।



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bhakt maheshaka janm bangaalamen hua thaa. vidyaarthee jeevana-kaalamen hee poorvajanmake shubh sanskaaronke phalasvaroop unake manamen shuddh bhaktibhaavaka uday huaa. unake gaanv men ek jataadhar naamak saadhu rahate the, unake satsangase unakee bhakti-nishtha uttarottar dridha़ hotee gayee. bhakt mahesh ekaantamen baithakar nishkapatabhaavase bhagavaan‌se darshanakee yaachana kiya karate the. gharamen bhagavaan shreekrishnakee moorti sthaapit thee, ve bhagavaan‌ke vigrahake dhyaanamen raata-din mast rahate the. bhagavaanke hee shringaar aadimen ve apane samayaka sadupayog karate the. maataa-pitaako yah aashanka thee ki mahesh ghar chhoda़kar chale n jaayan; isaliye ve unhen satarah varshakee komal avasthaamen vivaah bandhanamen jakada़neke liye taiyaar ho gaye. mahesh vivaahake poorv hee ek raatako bhagavannaamaka jap karate hue vrindaavanake liye chal pada़e. ratanapura graamake harikeertana-utsavamen sammilit hokar ve vrajake premadevata shreekrishnaka dhyaan kar rahe the ki ek saadhune unake kaanamen 'hari oM mantraka uchchaaran kiyaa. ve vahaanse aage badha़e.

unhonne kuchh dinontak kaasheemen nivaasakar ek saadhuke kahanepar vindhyaachalakee yaatra kee, ve santon aurasaadhuonke milanake liye bada़e utsuk the. kuchh dinontak ashtabhujee pahaada़ aur unake aasa-paasake bhaagonmen bhraman karate rahe. unhonne bhagavaan‌ke chintan, dhyaan, poojan tatha smaranamen khaane-peenekee chintaako bhula diyaa. tadanantar ve harinaamakee dhvani karate hue vrindaavanakee or chal pada़e. nayan aur hriday bhagavaan shyaamasundarake darshan tatha milanake liye laalaayit the. mahesh bhaktiko raajadhaanee vrindaavanamen pahunch gaye. ve govindajeeke mandiramen gaye. us samay bhagavaan‌kee aaratee ho rahee thee. unhonne govindadevakee kamaneey kaanti aur ramaneey chhavika devadurlabh rasaasvaadan kiyaa. usake baad vrindaavanake prasiddh prasiddh mandironkee parikrama karake bhagavaan‌ke darshanarasaamritase apane-aapako tript kiyaa. unaka man to govindadevajeeke roopapar aasakt ho chuka thaa. ve govindajeeke mandiramen lautakar bhagavaan‌ko nihaarane lage. mandirake gosvaameejeekee drishti unapar pada़ee, ve unake roopa-laavanyase aashcharyachakit hokar paas aaye. maheshane apane manakee baat bata dee, unhonne kaha ki - mahaaraaj ! main to poornaroopase govindajeeka hee ho chuka hoon. gosvaameejeene unako mandiramen sthaayee nivaas pradaan kiyaa. ve aajeevan govindajeekee hee seva karate rahe.

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