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बाबा रघुपतिदासजी की मार्मिक कथा
बाबा रघुपतिदासजी की अधबुत कहानी - Full Story of बाबा रघुपतिदासजी (हिन्दी)

[भक्त चरित्र -भक्त कथा/कहानी - Full Story] [बाबा रघुपतिदासजी]- भक्तमाल


केवल कुछ दिनोंकी बात है, उत्तर प्रदेशके बलिया | जनपदके केवरा गाँवमें बाबा रघुपतिदासने जन्म लिया। र उनके पिताका नाम रामहित और माताका अलहन्ती देवी था। दोनों भगवद्भक्त थे, अतएव उनके बालक गोपीपर उनकी सरलता और भक्तिका सुन्दर प्रभाव पड़ा। उनके मनमें वैराग्य और संसारके प्रति अनासक्तिका उदय हो आया। उन्होंने मिल्की मठियाके स्वामीजी श्रीबच्चू बाबासे दीक्षा ली और वे मस्त होकर भजन करने लगे। धीरे-धीरे उनके तन और मन दोनोंपर भगवान्की भक्तिका अमिट रंग चढ़ने लगा। उनकी शारीरिक कान्ति अत्यन्त दिव्य थी। वे भजन करते-करते कभी विह्वल हो जाते, कभी रो पड़ते कभी प्रेमोन्मादमें मतवाले हो उठते। उनकी सरलता और तपोमय जीवनसे लोग अधिकाधिक संख्यामें उनकी ओर आकृष्ट होने लगे।

एक समय वे चबूतरेपर स्नान कर रहे थे। स्नान अधूरा ही था कि सहसा दौड़कर कूद पड़े, फिर लौट पड़े, झूम झूमकर हँसने लगे, लोगोंने उनको पागल समझा; पर बादमें उन्होंने स्वयं बताया कि 'मेरे सामने एक दिव्य मूर्ति प्रकट और अदृश्य होती रहती थी, मैं उसके आलिङ्गनके लियेदौड़ता था, पर वह ओझल हो जाती थी।' वे भक्तिका रसामृत पीकर कभी-कभी बड़े सुन्दर-सुन्दर कीर्तनके पदोंकी रचना करते और मस्त होकर गाया करते थे। भावावेशमें वे एक बार धर्मशालाके कमरेमें लगातार छः दिनतक समाधिस्थ रहे, भक्तोंके विशेष आग्रहपर वे बाहर आये। उस समय वे बड़े तेजस्वी दीख पड़ते थे।

उन्होंने भारतके समस्त प्रसिद्ध तीर्थोंका भ्रमण किया। एक बार वे वृन्दावनकी एक धर्मशालामें थे, कड़ाकेका जाड़ा पड़ रहा था, बदनपर कम्बल नामकी कोई वस्तु न थी। रासरसिकेश्वरकी राजधानीमें एक संत भक्त जाड़ेसे काँपता रहे, यह असम्भव था। बाबाने देखा कि उनके शरीरपर दो-दो शाल पड़े हुए हैं। वे वंशीवाले नन्दनन्दनकी कृपापर अपना सर्वस्व समर्पितकर खिलखिलाकर हँस पड़े, अङ्ग अङ्गमें नया जीवन आ गया।

रघुपतिदासजी परम विरक्त और त्यागी थे। रुपये पैसेके स्पर्शसे भी दूर रहते थे। उन्होंने अपनी आवश्यकताओंको बहुत कम कर दिया था। मठिया में किसी वस्तुका संग्रह नहीं करते थे। सर्वत्र - सबमें भगवदबुद्धि रखते थे।



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keval kuchh dinonkee baat hai, uttar pradeshake baliya | janapadake kevara gaanvamen baaba raghupatidaasane janm liyaa. r unake pitaaka naam raamahit aur maataaka alahantee devee thaa. donon bhagavadbhakt the, ataev unake baalak gopeepar unakee saralata aur bhaktika sundar prabhaav pada़aa. unake manamen vairaagy aur sansaarake prati anaasaktika uday ho aayaa. unhonne milkee mathiyaake svaameejee shreebachchoo baabaase deeksha lee aur ve mast hokar bhajan karane lage. dheere-dheere unake tan aur man dononpar bhagavaankee bhaktika amit rang chadha़ne lagaa. unakee shaareerik kaanti atyant divy thee. ve bhajan karate-karate kabhee vihval ho jaate, kabhee ro pada़te kabhee premonmaadamen matavaale ho uthate. unakee saralata aur tapomay jeevanase log adhikaadhik sankhyaamen unakee or aakrisht hone lage.

ek samay ve chabootarepar snaan kar rahe the. snaan adhoora hee tha ki sahasa dauda़kar kood pada़e, phir laut pada़e, jhoom jhoomakar hansane lage, logonne unako paagal samajhaa; par baadamen unhonne svayan bataaya ki 'mere saamane ek divy moorti prakat aur adrishy hotee rahatee thee, main usake aalinganake liyedauda़ta tha, par vah ojhal ho jaatee thee.' ve bhaktika rasaamrit peekar kabhee-kabhee bada़e sundara-sundar keertanake padonkee rachana karate aur mast hokar gaaya karate the. bhaavaaveshamen ve ek baar dharmashaalaake kamaremen lagaataar chhah dinatak samaadhisth rahe, bhaktonke vishesh aagrahapar ve baahar aaye. us samay ve bada़e tejasvee deekh pada़te the.

unhonne bhaaratake samast prasiddh teerthonka bhraman kiyaa. ek baar ve vrindaavanakee ek dharmashaalaamen the, kada़aakeka jaada़a pada़ raha tha, badanapar kambal naamakee koee vastu n thee. raasarasikeshvarakee raajadhaaneemen ek sant bhakt jaada़ese kaanpata rahe, yah asambhav thaa. baabaane dekha ki unake shareerapar do-do shaal pada़e hue hain. ve vansheevaale nandanandanakee kripaapar apana sarvasv samarpitakar khilakhilaakar hans pada़e, ang angamen naya jeevan a gayaa.

raghupatidaasajee param virakt aur tyaagee the. rupaye paiseke sparshase bhee door rahate the. unhonne apanee aavashyakataaonko bahut kam kar diya thaa. mathiya men kisee vastuka sangrah naheen karate the. sarvatr - sabamen bhagavadabuddhi rakhate the.

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