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गोरा कुम्हार की मार्मिक कथा
गोरा कुम्हार की अधबुत कहानी - Full Story of गोरा कुम्हार (हिन्दी)

[भक्त चरित्र -भक्त कथा/कहानी - Full Story] [गोरा कुम्हार]- भक्तमाल


श्रीज्ञानेश्वरकालीन भक्तोंमें उम्रमें सबसे बड़े गोराजी कुम्हार थे। इनका जन्म तेरढोकी स्थानमें संवत् 1324 में हुआ। इन्हें सब लोग 'चाचा' कहा करते थे। ये बड़े विरक्त, दृढनिश्चयी, ज्ञानी तथा प्रेमी भक्त थे। इनकी दो स्त्रियाँ थीं। भजनानन्दमें तल्लीन होना इनका ऐसा था कि एक बार इनका एक नन्हा बच्चा इनके उन्मत्त नृत्यमें पैरों तले कुचलकर मर गया, पर इन्हें इसकी कुछ भी सुध न हुई। इससे चिढ़कर इनकी सहधर्मिणी संतीने इनसे कहा कि 'अब आजसे आप मुझे स्पर्श न करें।' तबसे इन्होंने उन्हें स्पर्श करना सदाके लिये त्याग ही दिया। संतीको बड़ा पश्चात्ताप हुआ और बड़ी चिन्ता हुई कि 'इन्हें पुत्र अब कैसे हो और कैसे इनका वंश चले।' इसलिये उन्होंने अपनी बहिन रामीसे इनका विवाह करा दिया। विवाहके अवसरपर श्वशुरने इन्हें उपदेश किया कि 'दोनों बहिनोंके साथ एक-सा व्यवहार करना। बस, इन्होंने नव-विवाहिताको भी स्पर्श न करनेका निश्चय कर लिया। एक रातको दोनों बहिनोंने इनके दोनों हाथ पकड़कर अपने शरीरपर रखे। इन्होंने अपने इन दोनों हाथोंको पापी समझकर काट डाला। इस तरहकी कई बातें इनके विषयमें प्रसिद्ध हैं। काशी आदिकी यात्राओंसे लौटते हुए श्रीज्ञानेश्वर- नामदेवादि भक्त इनके यहाँ ठहर गये थे। सब भक्त एक साथ बैठे हुए थे। पास ही कुम्हारकी एक थापी पड़ी हुई थी । उसपर मुक्ताबाईकी दृष्टि पड़ी, उन्होंने पूछा, 'चाचाजी! यह क्या चीज है?' गोराजीने उत्तर दिया, 'यह थापी है, इससेमिट्टीके घड़े ठोंककर यह देखा जाता है कि कौन घड़ा में कच्चा है और कौन पक्का।' मुक्ताबाईने कहा 'हम मनुष्य ड़े भी तो घड़े ही हैं, इससे क्या हमलोगोंकी भी कच्चाई पक्काई मालूम हो सकती है?' गोराजीने कहा, 'हाँ, हाँ, क क्यों नहीं।' यह कहकर उन्होंने थापी उठायी और एक में एक भक्तके सिरपर थपकर देखने लगे। दूसरे भक्त तो यह कौतुक देखने लगे, पर नामदेव बिगड़े। उन्हें यह भक्तोंका ा और अपना भी अपमान जान पड़ा। गोराजी थपते-थपते ने जब इनके पास आये तो इनको बहुत बुरा लगा। गोराजीने इनके भी सिरपर थापी थपी और बोले-'भक्तोंमें यह घड़ा कच्चा है' और नामदेवसे कहने लगे-'नामदेव ! तुम भक्त हो, पर अभी तुम्हारा अहङ्कार नहीं गया। जबतक गुरुकी शरणमें नहीं जाओगे, तबतक ऐसे ही कच्चे ■ रहोगे।' नामदेवको बड़ा दुःख हुआ। वे जब पण्ढरपुर लौट आये, तब उन्होंने श्रीविट्ठलसे अपना दुःख निवेदन किया। भगवान्ने उनसे कहा-'गोराजीका यह कहना तो । सच है कि श्रीगुरुकी शरणमें जबतक नहीं जाओगे, तबतक कच्चे रहोगे। हम तो तुम्हारे सदा साथ हैं ही; पर तुम्हें किसी मनुष्यदेहधारी महापुरुषको गुरु मानकर उसके सामने नत होना होगा, उसके चरणोंमें अपना अहङ्कार लीन करना होगा।' भगवान्के आदेशके अनुसार नामदेवजीने श्रीविसोबा खेचरको गुरु माना और गुरूपदेश ग्रहण किया। इस प्रकार गोराजी कुम्हार बड़े अनुभवी, ज्ञानी, भक्त थे।



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shreejnaaneshvarakaaleen bhaktonmen umramen sabase bada़e goraajee kumhaar the. inaka janm teradhokee sthaanamen sanvat 1324 men huaa. inhen sab log 'chaachaa' kaha karate the. ye bada़e virakt, dridhanishchayee, jnaanee tatha premee bhakt the. inakee do striyaan theen. bhajanaanandamen talleen hona inaka aisa tha ki ek baar inaka ek nanha bachcha inake unmatt nrityamen pairon tale kuchalakar mar gaya, par inhen isakee kuchh bhee sudh n huee. isase chidha़kar inakee sahadharminee santeene inase kaha ki 'ab aajase aap mujhe sparsh n karen.' tabase inhonne unhen sparsh karana sadaake liye tyaag hee diyaa. santeeko bada़a pashchaattaap hua aur bada़ee chinta huee ki 'inhen putr ab kaise ho aur kaise inaka vansh chale.' isaliye unhonne apanee bahin raameese inaka vivaah kara diyaa. vivaahake avasarapar shvashurane inhen upadesh kiya ki 'donon bahinonke saath eka-sa vyavahaar karanaa. bas, inhonne nava-vivaahitaako bhee sparsh n karaneka nishchay kar liyaa. ek raatako donon bahinonne inake donon haath pakada़kar apane shareerapar rakhe. inhonne apane in donon haathonko paapee samajhakar kaat daalaa. is tarahakee kaee baaten inake vishayamen prasiddh hain. kaashee aadikee yaatraaonse lautate hue shreejnaaneshvara- naamadevaadi bhakt inake yahaan thahar gaye the. sab bhakt ek saath baithe hue the. paas hee kumhaarakee ek thaapee pada़ee huee thee . usapar muktaabaaeekee drishti pada़ee, unhonne poochha, 'chaachaajee! yah kya cheej hai?' goraajeene uttar diya, 'yah thaapee hai, isasemitteeke ghada़e thonkakar yah dekha jaata hai ki kaun ghada़a men kachcha hai aur kaun pakkaa.' muktaabaaeene kaha 'ham manushy da़e bhee to ghada़e hee hain, isase kya hamalogonkee bhee kachchaaee pakkaaee maaloom ho sakatee hai?' goraajeene kaha, 'haan, haan, k kyon naheen.' yah kahakar unhonne thaapee uthaayee aur ek men ek bhaktake sirapar thapakar dekhane lage. doosare bhakt to yah kautuk dekhane lage, par naamadev bigada़e. unhen yah bhaktonka a aur apana bhee apamaan jaan pada़aa. goraajee thapate-thapate ne jab inake paas aaye to inako bahut bura lagaa. goraajeene inake bhee sirapar thaapee thapee aur bole-'bhaktonmen yah ghada़a kachcha hai' aur naamadevase kahane lage-'naamadev ! tum bhakt ho, par abhee tumhaara ahankaar naheen gayaa. jabatak gurukee sharanamen naheen jaaoge, tabatak aise hee kachche ■ rahoge.' naamadevako bada़a duhkh huaa. ve jab pandharapur laut aaye, tab unhonne shreevitthalase apana duhkh nivedan kiyaa. bhagavaanne unase kahaa-'goraajeeka yah kahana to . sach hai ki shreegurukee sharanamen jabatak naheen jaaoge, tabatak kachche rahoge. ham to tumhaare sada saath hain hee; par tumhen kisee manushyadehadhaaree mahaapurushako guru maanakar usake saamane nat hona hoga, usake charanonmen apana ahankaar leen karana hogaa.' bhagavaanke aadeshake anusaar naamadevajeene shreevisoba khecharako guru maana aur guroopadesh grahan kiyaa. is prakaar goraajee kumhaar bada़e anubhavee, jnaanee, bhakt the.

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