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अनोखा प्रभु-विश्वास और प्रभु-प्रीति  [Moral Story]
आध्यात्मिक कहानी - Moral Story (हिन्दी कहानी)

वृत्रासुरने देवराज इन्द्रके साथ महायुद्ध करते हुए उनसे कहा- 'देवराज! भगवान् विष्णुने मुझे मारनेके लिये तुम्हें आज्ञा दी है, इसलिये तुम मुझे वज्रसे मार डालो। मैं अपने मनको भगवान्‌के चरणोंमें विलीन कर दूँगा। जो पुरुष भगवान्‌के हो गये हैं और उनके चरणोंके अनन्य प्रेमी हैं, उनको भगवान् स्वर्ग, पृथ्वी अथवा पातालकी सम्पत्ति नहीं देते; क्योंकि इनसे परम आनन्दकी प्राप्ति न होकर द्वेष, अभिमान, उद्वेग, मानस पीड़ा, कलह, दुःख और परिश्रम ही हाथ लगते हैं। मुझपर भगवान्की अत्यन्त कृपा है, इसीसे वे मुझे उपर्युक्त सम्पत्तियाँ नहीं दे रहे हैं। मेरे प्रभुकी कृपाका तो अनुभव उनके अकिंचन भक्तोंको ही होता है। दूसरे उसे नहीं जान पाते। वे प्रभु अपने भक्तके अर्थ, धर्म और कामसम्बन्धी प्रयासोंको असफल करके ही उनपर कृपा करते हैं। मैं इसी कृपाका अधिकारी हूँ।' यों कहते-कहते वृत्रासुरने भगवान्से प्रार्थना की- 'प्रभो ! मेरा मन निरन्तर आपके मङ्गलमय गुणोंका ही स्मरणकरता रहे। मेरी वाणी उन गुणोंका ही गान करे और | शरीर आपकी सेवामें ही लगा रहे। सर्वसौभाग्यनिधे! मैं। 1 आपको छोड़कर स्वर्ग, ब्रह्मपद, भूमण्डलका साम्राज्य, पातालका एकच्छत्र राज्य, योगकी सिद्धियाँ-यहाँतक | कि अपुनर्भव मोक्ष भी नहीं चाहता। जैसे, जिनके पाँख नहीं उगे हैं, ऐसे माँपर निर्भर रहनेवाले पक्षियोंके बच्चे अपनी माँकी बाट देखते रहते हैं, जैसे भूखे बछड़े अपनी गैया-मैयाका दूध पीनेके लिये आतुर रहते हैं, जैसे वियोगिनी पत्नी अपने प्रवासी प्रियतमसे मिलनेके लिये नित्य उत्कण्ठित रहती है, वैसे ही कमललोचन! मेरा मन आपके लिये छटपटा रहा है। मुझे मुक्ति न मिले, मेरे कर्म मुझे चाहे जहाँ ले जायँ; परंतु नाथ! मैं जहाँ-जहाँ जिस-जिस योनिमें जाऊँ, वहाँ आपके प्यारे भक्तोंसे ही मेरी प्रीति — मैत्री रहे । जो लोग आपकी मायासे देह-गेह और स्त्री-पुत्रादिमें आसक्त हैं, उनके | साथ मेरा कभी किसी प्रकारका भी सम्बन्ध न हो।' धन्य प्रभु-विश्वास, प्रभु-प्रीति और परम निष्कामभाव!



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anokha prabhu-vishvaas aur prabhu-preeti

vritraasurane devaraaj indrake saath mahaayuddh karate hue unase kahaa- 'devaraaja! bhagavaan vishnune mujhe maaraneke liye tumhen aajna dee hai, isaliye tum mujhe vajrase maar daalo. main apane manako bhagavaan‌ke charanonmen vileen kar doongaa. jo purush bhagavaan‌ke ho gaye hain aur unake charanonke anany premee hain, unako bhagavaan svarg, prithvee athava paataalakee sampatti naheen dete; kyonki inase param aanandakee praapti n hokar dvesh, abhimaan, udveg, maanas peeda़a, kalah, duhkh aur parishram hee haath lagate hain. mujhapar bhagavaankee atyant kripa hai, iseese ve mujhe uparyukt sampattiyaan naheen de rahe hain. mere prabhukee kripaaka to anubhav unake akinchan bhaktonko hee hota hai. doosare use naheen jaan paate. ve prabhu apane bhaktake arth, dharm aur kaamasambandhee prayaasonko asaphal karake hee unapar kripa karate hain. main isee kripaaka adhikaaree hoon.' yon kahate-kahate vritraasurane bhagavaanse praarthana kee- 'prabho ! mera man nirantar aapake mangalamay gunonka hee smaranakarata rahe. meree vaanee un gunonka hee gaan kare aur | shareer aapakee sevaamen hee laga rahe. sarvasaubhaagyanidhe! main. 1 aapako chhoda़kar svarg, brahmapad, bhoomandalaka saamraajy, paataalaka ekachchhatr raajy, yogakee siddhiyaan-yahaantak | ki apunarbhav moksh bhee naheen chaahataa. jaise, jinake paankh naheen uge hain, aise maanpar nirbhar rahanevaale pakshiyonke bachche apanee maankee baat dekhate rahate hain, jaise bhookhe bachhada़e apanee gaiyaa-maiyaaka doodh peeneke liye aatur rahate hain, jaise viyoginee patnee apane pravaasee priyatamase milaneke liye nity utkanthit rahatee hai, vaise hee kamalalochana! mera man aapake liye chhatapata raha hai. mujhe mukti n mile, mere karm mujhe chaahe jahaan le jaayan; parantu naatha! main jahaan-jahaan jisa-jis yonimen jaaoon, vahaan aapake pyaare bhaktonse hee meree preeti — maitree rahe . jo log aapakee maayaase deha-geh aur stree-putraadimen aasakt hain, unake | saath mera kabhee kisee prakaaraka bhee sambandh n ho.' dhany prabhu-vishvaas, prabhu-preeti aur param nishkaamabhaava!

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