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सिद्धि किसे नहीं मिलती

जिह्वा दग्धा परान्नेन करौ दग्धौ प्रतिग्रहात् । मनो दग्धं परस्त्रीभिः कार्यसिद्धिः कथं भवेत् ॥

(कुलार्णवतन्त्र १५।७७)

'दूसरेका अन्न खानेसे जिसकी जीभ जल चुकी है, दूसरेसे दान लेनेसे जिसके हाथ जल चुके हैं और दूसरेकी स्त्रीका चिन्तन करनेसे जिसका मन जल चुका है, उसे सिद्धि कैसे मिल सकती है ?'



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siddhi kise naheen milatee

jihva dagdha paraannen karau dagdhau pratigrahaat . mano dagdhan parastreebhih kaaryasiddhih kathan bhavet ..

(kulaarnavatantr 15.77)

'doosareka ann khaanese jisakee jeebh jal chukee hai, doosarese daan lenese jisake haath jal chuke hain aur doosarekee streeka chintan karanese jisaka man jal chuka hai, use siddhi kaise mil sakatee hai ?'

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