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महामृत्युंजय-मन्त्रानुष्ठानका प्रभाव

मैं अपने परिवारमें बीती एक घटनाका उल्लेख कर रहा हूँ, जो इस प्रकार है— मेरे ताऊजीके पुत्र शरभय्या गादाने गरीबी अवस्थामें हुमनाबाद छोड़कर गुलबर्गा जाकर सन् १९१८ ई० में १८ वर्षकी आयुमें आढ़तका कारबार प्रारम्भ किया। अपने पिता श्रीराचप्पाजी, जो बड़े ही श्रद्धालु तथा भगवद्भक्त थे, उनके आशीर्वाद तथा चाचा श्रीरामण्णाजीके सहयोगसे वे कुछ ही दिनोंमें गुलबर्गाके सबसे बड़े आढ़तिया बने। श्रीशरभय्याके केवल एक पुत्र श्रीव्यंकप्पा उर्फ बाबुराव थे। उनके पाँच पुत्र और एक पुत्री है।

अथक परिश्रमके कारण श्रीशरभय्याजीका स्वास्थ्य सन् १९६० ई०से बिगड़ता चला गया। सन् १९६४ ई० में उनके पौत्रकी शादी होनी थी, लेकिन उनकी स्थिति काफी बिगड़ती गयी। उन्हें शोलापुरके दवाखाने ले जाया गया। वहाँ उनकी स्थिति और बिगड़ गयी। किसीको पहचाननेमें भी कठिनाई होने लगी। उन्हें वापस गुलबर्गा लाया गया। डॉक्टरोंने कहा कि अब ये ४-६ दिनके मेहमान हैं। शीघ्र शादी कर लीजिये। किसी प्रकार उनके द्वितीय पौत्रकी शादी की गयी। अब तो वे किसी को पहचानते ही नहीं थे। डॉक्टरोंने कहा-अब-तबकी हालत है। सारे रिश्तेदार आ गये।दान-धर्म कराया गया। तब मुझे भगवत्प्रेरणासे विचार आया कि श्रीमहामृत्युंजय मन्त्रका जप कराया जाय तथा सभी इलाज - औषधि बन्द की जाय। मेरी यह बात परिवारके सभी लोगोंको जँची। फिर ब्राह्मणोंने महामृत्युंजयमन्त्रका जप प्रारम्भ किया। आश्चर्य कि भगवान् आशुतोषकी महिमासे पहले ही दिन उनकी स्थिति में सुधार हुआ और जपकी समाप्तिपर श्रीशर भय्या भाईजीने स्वयं अपने हाथोंसे ब्राह्मणोंको दानदक्षिणा दी और थोड़े ही दिनोंमें वे पूर्ण स्वस्थ हो गये। बादमें उन्होंने श्रीशैल मल्लिकार्जुन, श्रीतिरुपति बालाजीकी यात्रा की और श्रीक्षेत्र तुलजापुर, जहाँ भगवती जगदम्बाका प्रसिद्ध मन्दिर है, वहाँ अपनी देखरेखमें चार कमरोंवाली एक धर्मशाला बनवायी

श्रीशरभय्याजीने अपनी इच्छापूर्तिकर सम्पूर्ण सम्पत्ति अपने पाँच पौत्रोंके नाम करके २२ जून सन् १९६८ ई०को अपनी इहलीला समाप्त की । इस प्रकार भगवान् मृत्युंजयकी कृपासे वे मृत्युके मुखसे बाहर आकर चार वर्षोंतक न केवल जीवित रहे, बल्कि उन्होंने सक्रिय जीवन जिया । यह सब भगवान् मृत्युंजयका ही कृपाप्रसाद था।

[ श्रीमाणिकरावजी रामण्णा गादा ]



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mahaamrityunjaya-mantraanushthaanaka prabhaava

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athak parishramake kaaran shreesharabhayyaajeeka svaasthy san 1960 ee0se bigada़ta chala gayaa. san 1964 ee0 men unake pautrakee shaadee honee thee, lekin unakee sthiti kaaphee bigada़tee gayee. unhen sholaapurake davaakhaane le jaaya gayaa. vahaan unakee sthiti aur bigada़ gayee. kiseeko pahachaananemen bhee kathinaaee hone lagee. unhen vaapas gulabarga laaya gayaa. daॉktaronne kaha ki ab ye 4-6 dinake mehamaan hain. sheeghr shaadee kar leejiye. kisee prakaar unake dviteey pautrakee shaadee kee gayee. ab to ve kisee ko pahachaanate hee naheen the. daॉktaronne kahaa-aba-tabakee haalat hai. saare rishtedaar a gaye.daana-dharm karaaya gayaa. tab mujhe bhagavatpreranaase vichaar aaya ki shreemahaamrityunjay mantraka jap karaaya jaay tatha sabhee ilaaj - aushadhi band kee jaaya. meree yah baat parivaarake sabhee logonko janchee. phir braahmanonne mahaamrityunjayamantraka jap praarambh kiyaa. aashchary ki bhagavaan aashutoshakee mahimaase pahale hee din unakee sthiti men sudhaar hua aur japakee samaaptipar shreeshar bhayya bhaaeejeene svayan apane haathonse braahmanonko daanadakshina dee aur thoड़e hee dinonmen ve poorn svasth ho gaye. baadamen unhonne shreeshail mallikaarjun, shreetirupati baalaajeekee yaatra kee aur shreekshetr tulajaapur, jahaan bhagavatee jagadambaaka prasiddh mandir hai, vahaan apanee dekharekhamen chaar kamaronvaalee ek dharmashaala banavaayee

shreesharabhayyaajeene apanee ichchhaapoortikar sampoorn sampatti apane paanch pautronke naam karake 22 joon san 1968 ee0ko apanee ihaleela samaapt kee . is prakaar bhagavaan mrityunjayakee kripaase ve mrityuke mukhase baahar aakar chaar varshontak n keval jeevit rahe, balki unhonne sakriy jeevan jiya . yah sab bhagavaan mrityunjayaka hee kripaaprasaad thaa.

[ shreemaanikaraavajee raamanna gaada ]

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