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भगवान् शंकरने समुद्रमें डूबने से बचाया

यह घटना सन् १९९८ ई० की है। मैं नेशनल हैण्डलूम डेवलपमेण्ट कॉरपोरेशनमें प्राइवेट रूपमें काम करता था। यह संस्था भारतके विभिन्न शहरोंमें एक एक महीनेकी प्रदर्शनी लगाती रहती थी। उसी क्रममें मैं भुवनेश्वर गया था। वहाँसे एक दिन अपने सहकर्मियोंके साथ मैं कोणार्कका सूर्यमन्दिर देखने गया। वहाँ योजना बनी कि समुद्रतटपर चला जाय। हम सभी लोग समुद्रतटपर जा पहुँचे। तटपर बहुत सी महिलाएँ और पुरुष स्नान कर रहे थे। यह देखकर हम लोगोंने सोचा कि थोड़ा दूर चलकर एकान्तमें ही नहाना ठीक रहेगा। जब हम लोग कुछ आगे समुद्रतटपर पहुँचे, तो वहाँके मछुवारोंने बारम्बार मना किया कि यहाँ डूबनेका खतरा है, आपलोग यहाँ स्नान मत कीजिये, किंतु हमलोग उनकी बात अनसुनी करके सागरमें प्रविष्ट हो गये। दूसरे लोग तो किनारेपर ही रहे, पर मैं काफी आगे निकल गया। एकाएक मुझे लगा कि कोई मुझको गहराई में खींच रहा है। मेरे हाथ-पैर निष्क्रिय हो गये और मैं खिंचा चला जा रहा था। मेरी नाकके रास्ते पेटमें खारापानी भरता जा रहा था। मेरी घबराहट उस समय इतनी बढ़ चुकी थी कि सिवाय अपने आराध्य भगवान् शंकरके मुझे कुछ और न सूझा। 'हे शंकरजी! अब आप ही बचाइये' – इतना कहकर मैं अचेत-सा हो गया। जब कुछ देर बाद चेतना आयी तो देखा कि मैं रेतमें पड़ा हूँ और मेरे साथी मेरा उपचार कर रहे हैं। उस समय मुझको लगातार उलटियाँ हो रही थीं और बड़ी तेजीसे साँसें चल रही थीं। लगभग ४० मिनट बाद मैं स्वाभाविक स्थितिमें आ सका। वहाँके मछुवारोंसे बादमें पता चला कि आजतक कितने ही लोग इस स्थानपर डूबकर मर चुके हैं। मेरे लिये यह आजतक रहस्य बना है कि उस समुद्री गर्तसे निकलकर तटीय रेततक मैं कैसे आ सका ! विचार करनेपर यही ज्ञात होता है कि संसारसिन्धुसे उबारनेवाले मेरे आराध्य शंकरभगवान्ने ही समुद्री गर्तसे मेरा उद्धार किया था। स्वस्थ होनेके अनन्तर भगवान्‌की विभूति समुद्रदेव तथा अपने आराध्य शिवजीको प्रणामकर मैं मित्रोंके साथ लिंगराज मन्दिरके लिये रवाना हो गया। [ श्रीब्रजेशजी वाजपेयी 'गणेश' ]



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bhagavaan shankarane samudramen doobane se bachaayaa

yah ghatana san 1998 ee0 kee hai. main neshanal haindaloom devalapament kaॉraporeshanamen praaivet roopamen kaam karata thaa. yah sanstha bhaaratake vibhinn shaharonmen ek ek maheenekee pradarshanee lagaatee rahatee thee. usee kramamen main bhuvaneshvar gaya thaa. vahaanse ek din apane sahakarmiyonke saath main konaarkaka sooryamandir dekhane gayaa. vahaan yojana banee ki samudratatapar chala jaaya. ham sabhee log samudratatapar ja pahunche. tatapar bahut see mahilaaen aur purush snaan kar rahe the. yah dekhakar ham logonne socha ki thoda़a door chalakar ekaantamen hee nahaana theek rahegaa. jab ham log kuchh aage samudratatapar pahunche, to vahaanke machhuvaaronne baarambaar mana kiya ki yahaan doobaneka khatara hai, aapalog yahaan snaan mat keejiye, kintu hamalog unakee baat anasunee karake saagaramen pravisht ho gaye. doosare log to kinaarepar hee rahe, par main kaaphee aage nikal gayaa. ekaaek mujhe laga ki koee mujhako gaharaaee men kheench raha hai. mere haatha-pair nishkriy ho gaye aur main khincha chala ja raha thaa. meree naakake raaste petamen khaaraapaanee bharata ja raha thaa. meree ghabaraahat us samay itanee badha़ chukee thee ki sivaay apane aaraadhy bhagavaan shankarake mujhe kuchh aur n soojhaa. 'he shankarajee! ab aap hee bachaaiye' – itana kahakar main acheta-sa ho gayaa. jab kuchh der baad chetana aayee to dekha ki main retamen pada़a hoon aur mere saathee mera upachaar kar rahe hain. us samay mujhako lagaataar ulatiyaan ho rahee theen aur bada़ee tejeese saansen chal rahee theen. lagabhag 40 minat baad main svaabhaavik sthitimen a sakaa. vahaanke machhuvaaronse baadamen pata chala ki aajatak kitane hee log is sthaanapar doobakar mar chuke hain. mere liye yah aajatak rahasy bana hai ki us samudree gartase nikalakar tateey retatak main kaise a saka ! vichaar karanepar yahee jnaat hota hai ki sansaarasindhuse ubaaranevaale mere aaraadhy shankarabhagavaanne hee samudree gartase mera uddhaar kiya thaa. svasth honeke anantar bhagavaan‌kee vibhooti samudradev tatha apane aaraadhy shivajeeko pranaamakar main mitronke saath lingaraaj mandirake liye ravaana ho gayaa. [ shreebrajeshajee vaajapeyee 'ganesha' ]

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राधे मोरी बंसी कहा खो गयी,
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प्रीतम बोलो कब आओगे॥
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श्याम बुलाये राधा नहीं आये,
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