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प्रयागपावनी श्रीसरयूजी

महाराज विक्रमादित्यने शकोंपर विजय प्राप्त करनेके लिये भगवान् श्रीरामकी उपासनाका आश्रय लिया था। श्रीराममन्त्र के जपके प्रभावसे उनको शकोंपर महान् विजय प्राप्त हुई। उसी समय उन्होंने अयोध्यापुरीमें श्रीरामजन्मभूमि जाकर एक भव्य मन्दिर बनानेका संकल्प किया था, वे जब अयोध्या आये, तब सरयूतटपर एक वृक्षके नीचे बैठकर विश्राम करने लगे, वहाँ उन्होंने एक विस्मयकारी दृश्य देखा। उन्होंने देखा कि श्रीसरयूजीकी धारामें काले घोड़ेपर सवार एक काले व्यक्तिने प्रवेश किया। वह थोड़ी ही देरमें घोड़ेसहित ऊपर भी आ गया, किंतु अब वह घोड़ा कालेसे श्वेत हो चुका था और वह व्यक्ति भी कालेसे गौरवर्णका हो चुका था। उस देवतुल्य व्यक्तिसे सम्राट् विक्रमादित्यने उसका परिचय पूछा। उस घुड़सवार व्यक्तिने बताया‘मैं तीर्थराज प्रयाग हूँ। जो पापी प्रयाग आकर स्नानादि करते हैं, वे अपने सभी पाप मुझे दे जाते हैं, जिस कारण मेरा वर्ण काला पड़ जाता है। इसी कारण मैं नित्यप्रति इसी समय अयोध्या आकर सरयूमें स्नान करता हूँ और सरयूजीके प्रभावसे मैं तत्काल निष्पाप हो जाता हूँ।'

सरयूजीकी महिमा जानकर राजा गद्गद हो गये। कालान्तरमें महाराज विक्रमादित्यने तीर्थराज प्रयागकी कृपासे सरयूतटवर्ती अयोध्याजीके समस्त प्राचीन तीर्थोंका | रहस्य जानकर उनकी पुनःस्थापना और जीर्णोद्धारका महत्कार्य सम्पन्न किया। प्रसिद्ध ही है-

कोटि कल्प काशी बसै मथुरा कल्प निवास ।

एक निमिष सरयू बसैं तुलै न तुलसी दास ॥

[ संकलित ]



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prayaagapaavanee shreesarayoojee

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koti kalp kaashee basai mathura kalp nivaas .

ek nimish sarayoo basain tulai n tulasee daas ..

[ sankalit ]

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