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धर्मराज युधिष्ठिरको सूर्यकृपानुभूति

धर्मपरायण पाण्डवोंसे उनके सभी प्रजाजन प्रसन्न थे, ब्राह्मणोंकी तो उनपर अत्यधिक कृपा थी। धर्मराज युधिष्ठिर ब्राह्मण एवं अतिथियोंकी सेवामें सदैव तत्पर रहते थे।

पाण्डवोंके विपत्तिके दिन आये, उन्हें बारह वर्ष वनवासके व्यतीत करने थे। उस कष्टप्रद समयमै ब्राह्मणोंने उनका साथ छोड़ना स्वीकार नहीं किया। वे भी उनके साथ हो लिये। धर्मराज उनके पोषणके लिये अत्यन्त चिन्तित हुए। वे तो कन्दमूल खाकर किसी भी तरह काम चला सकते थे; परंतु 'ब्राह्मणोंको कैसे तृप्त किया जाय ?' यह सोचकर वे दुखी हो उठे और अपने पुरोहित धौम्यमुनिके पास गये। धौम्यमुनिने कहा- 'राजन्! सृष्टिके प्रारम्भ में सभी प्राणी भूखसे व्याकुल थे, उस समय कृपालु भगवान् सूर्यनारायणने पिताकी तरह सब प्राणियोंपर दया करके जल बरसाया तथा अन्न एवं ओषधियाँ उत्पन्न की थीं। भगवान् भास्कर ही पितृवत् परम दयालु हैं, आप उनकी शरणमें जायें।'

महाराज युधिष्ठिर महर्षि धौम्यको आज्ञा शिरोधार्यकर सूर्यभगवान्की आराधनामें संलग्न हो गये। वे एकाग्रचित्त हो भगवान् दिवाकरकी पूजा करते। गंगाजीमें स्नान करके उन्हें पुष्प एवं नैवेद्य समर्पित करते। पुनः मनको एकाग्र करके वे सूर्यभगवान्‌का इस प्रकार स्तवन करते

त्वं भानो जगतश्चक्षुस्त्वमात्मा सर्वदेहिनाम् । त्वं योनिः सर्वभूतानां त्वमाचारः क्रियावताम् ॥

त्वं ममापन्नकामस्य सर्वातिथ्यं चिकीर्षतः अन्नमन्नपते दातुमभितः श्रद्धपार्हसि

(महा० वन० ३३६, ६७)

'सूर्यदेव! आप सम्पूर्ण जगत्के नेत्र तथा समस्त प्राणियोंके आत्मा हैं। आप ही सब जीवोंके उत्पत्ति स्थान और कर्मानुष्ठानमें लगे पुरुषोंके सदाचारहैं। अन्नपते में श्रद्धापूर्वक सबका आतिथ्य करनेकी इच्छासे अन्न प्राप्त करना चाहता हूँ। आप मुझे अन्न देनेकी दया करें।'

धर्मराजके नित्य स्तवन-पूजनसे भगवान् सूर्य बहुत प्रसन्न हुए और एक दिन उनके सम्मुख प्रकट हो गये। उनके श्री अंग प्रज्वलित अग्निके समान उद्भासित हो रहे थे। भगवान् सूर्यके दर्शनकर युधिष्ठिर उनके चरणोंमें गिर पड़े। भगवान् भास्करने कहा- 'धर्मराज ! मैं तुमसे बहुत प्रसन्न हूँ तुम्हारे वन-वासकी अवधि में तुम्हें अन्नका कोई कष्ट नहीं होगा। मेरी दी हुई यह बटलोई लो, इस पात्रमें बने हुए भोजनके जो भी पदार्थ होंगे, वे सब जबतक द्रौपदी स्वयं भोजन न कर लेगी, तबतक अक्षय रहेंगे। आजसे चौदहवें वर्ष तुम अपना राज्य पुनः प्राप्त कर लोगे।' इतना कहकर भगवान् सूर्य अन्तर्धान हो गये। धर्मराज युधिष्ठिर भगवान् सूर्यकी विलक्षण कृपा प्राप्तकर ब्राह्मण-सेवा और अतिथि सत्कारके लिये सदैव निश्चिन्त रहे, उन्हें अन्नका कष्ट कभी नहीं हुआ।



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Real Life Experience प्रभुकृपा


dharmaraaj yudhishthirako sooryakripaanubhooti

dharmaparaayan paandavonse unake sabhee prajaajan prasann the, braahmanonkee to unapar atyadhik kripa thee. dharmaraaj yudhishthir braahman evan atithiyonkee sevaamen sadaiv tatpar rahate the.

paandavonke vipattike din aaye, unhen baarah varsh vanavaasake vyateet karane the. us kashtaprad samayamai braahmanonne unaka saath chhoड़na sveekaar naheen kiyaa. ve bhee unake saath ho liye. dharmaraaj unake poshanake liye atyant chintit hue. ve to kandamool khaakar kisee bhee tarah kaam chala sakate the; parantu 'braahmanonko kaise tript kiya jaay ?' yah sochakar ve dukhee ho uthe aur apane purohit dhaumyamunike paas gaye. dhaumyamunine kahaa- 'raajan! srishtike praarambh men sabhee praanee bhookhase vyaakul the, us samay kripaalu bhagavaan sooryanaaraayanane pitaakee tarah sab praaniyonpar daya karake jal barasaaya tatha ann evan oshadhiyaan utpann kee theen. bhagavaan bhaaskar hee pitrivat param dayaalu hain, aap unakee sharanamen jaayen.'

mahaaraaj yudhishthir maharshi dhaumyako aajna shirodhaaryakar sooryabhagavaankee aaraadhanaamen sanlagn ho gaye. ve ekaagrachitt ho bhagavaan divaakarakee pooja karate. gangaajeemen snaan karake unhen pushp evan naivedy samarpit karate. punah manako ekaagr karake ve sooryabhagavaan‌ka is prakaar stavan karate

tvan bhaano jagatashchakshustvamaatma sarvadehinaam . tvan yonih sarvabhootaanaan tvamaachaarah kriyaavataam ..

tvan mamaapannakaamasy sarvaatithyan chikeershatah annamannapate daatumabhitah shraddhapaarhasi

(mahaa0 vana0 336, 67)

'sooryadeva! aap sampoorn jagatke netr tatha samast praaniyonke aatma hain. aap hee sab jeevonke utpatti sthaan aur karmaanushthaanamen lage purushonke sadaachaarahain. annapate men shraddhaapoorvak sabaka aatithy karanekee ichchhaase ann praapt karana chaahata hoon. aap mujhe ann denekee daya karen.'

dharmaraajake nity stavana-poojanase bhagavaan soory bahut prasann hue aur ek din unake sammukh prakat ho gaye. unake shree ang prajvalit agnike samaan udbhaasit ho rahe the. bhagavaan sooryake darshanakar yudhishthir unake charanonmen gir pada़e. bhagavaan bhaaskarane kahaa- 'dharmaraaj ! main tumase bahut prasann hoon tumhaare vana-vaasakee avadhi men tumhen annaka koee kasht naheen hogaa. meree dee huee yah bataloee lo, is paatramen bane hue bhojanake jo bhee padaarth honge, ve sab jabatak draupadee svayan bhojan n kar legee, tabatak akshay rahenge. aajase chaudahaven varsh tum apana raajy punah praapt kar loge.' itana kahakar bhagavaan soory antardhaan ho gaye. dharmaraaj yudhishthir bhagavaan sooryakee vilakshan kripa praaptakar braahmana-seva aur atithi satkaarake liye sadaiv nishchint rahe, unhen annaka kasht kabhee naheen huaa.

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