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श्रीमद्देवमुरारीजी की मार्मिक कथा
श्रीमद्देवमुरारीजी की अधबुत कहानी - Full Story of श्रीमद्देवमुरारीजी (हिन्दी)

[भक्त चरित्र -भक्त कथा/कहानी - Full Story] [श्रीमद्देवमुरारीजी]- भक्तमाल


दारागंज - (प्रयाग) में श्रीमद्देवमुरारीजी महाराजका स्थान प्रमुख बावनद्वारा गद्दियोंमें एक है। प्रयागमें विष्णु, 1 शिव, ब्रह्मा - इन तीनोंकी पुरियाँ है। अरैल यमुनापार जहाँ आदिमाधव भगवान् हैं, वह विष्णुपुरी है। झूसीमें गङ्गापार ब्रह्मपुरी है। वेणीमाधव - भरद्वाज आश्रम जहाँ है, वह शिवपुरी है। पहले इन पुरियोंमें अनेक सिद्ध योगी औघड़ रहा करते थे। झूसीके समुद्रकूपकी गुफामें सिद्धनाथ आदि औघड़ोंका दल था। ये किसी वैष्णव संत महात्माको प्रयागमें टिकने ही नहीं देते थे। श्रीमद्देवमुरारीजी महाराज जब प्रयाग आये, तब इन औघड़ोंके गिरोहने आपपर आक्रमण किया। परंतु श्रीमद्देवमुरारीने अपने साधनबलसे इन सबको परास्त कर दिया।

प्रयागकी मकर संक्रान्तिका एक इतिहास है। श्रीमद्देवमुरारीजी एक बार सङ्गमपर स्नान-सन्ध्या कर रहे थे। सिद्धनाथ नामक औघड़ने मगरका रूप धरकर जलमें आपके पैरको पकड़ लिया। आप समझ गये बात क्याहै। अतएव अपने तपोबलसे उसे अपने पैरोंके नीचे दबा दिया। अब तो औघड़ मण्डलीमें खलबली मच गयी और सभी आकर आपसे क्षमा माँगने लगे। उसी समयसे प्रयागसे औघड़ोंका उन्मूलन हुआ और वैष्णव रहने लगे। मकर संक्रान्तिके समयमें तभीसे वहाँ वैष्णव जुटने लगे।

जिस समय श्रीमद्देवमुरारीजी प्रयाग आये, उसी समय किला बन रहा था। किला बनता था और गङ्गाजी उसे बहा ले जाती थीं। इसलिये अकबरने मानसिंहजीको देवमुरारीजीकी सेवामें भेजा। देवमुरारीजीने तुलसीका एक सूखा वृक्ष देकर कहा कि 'इसे नींवमें देकर किला 'बनवाओ।' इसके बाद किलेको कोई क्षति नहीं पहुँची। आपकी शिष्यपरम्पराके प्रमुख शिष्योंमें श्रीमलूकदासजी, पूर्णदासजी, मानदासजी, उद्धवदासजी, गोपालदासजी, सीतारामदासजी, भरतदासजी, हरिनारायणदासजी और राजारामदासजीके नाम विशेष उल्लेखनीय हैं। इसका | सम्बन्ध श्रीतोताद्रिमठसे है।



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