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रणवारीवाले सिद्ध श्रीकृष्णदासजी की मार्मिक कथा
रणवारीवाले सिद्ध श्रीकृष्णदासजी की अधबुत कहानी - Full Story of रणवारीवाले सिद्ध श्रीकृष्णदासजी (हिन्दी)

[भक्त चरित्र -भक्त कथा/कहानी - Full Story] [रणवारीवाले सिद्ध श्रीकृष्णदासजी]- भक्तमाल


रणवारीवाले श्रीकृष्णदासजीका जन्म बंगालके यशोहर जनपदके मुहम्मदपुर ग्राममें एक कुलीन ब्राह्मण श्रीगोकुलचन्द्रजी चट्टोपाध्यायके घर हुआ था उनका बचपनका नाम कृष्णप्रसाद चट्टोपाध्याय था घरमें भगवान्‌के श्रीविग्रहकी सेवा थी। अतएव उनका मन भगवान्‌के प्रति पूर्णरूपसे आसक्त हो चला, विवाहका प्रस्ताव सुनते ही उनके मनमें वैराग्यका उदय हुआ। वे वृन्दावन चले आये और इसके बाद रणवारीमें भजन करने लगे। कृष्णदासजी गोवर्धनवालेसे भी उनका विशेष सौहार्द था।

कुछ दिनोंके बाद उनके मनमें चारों धामकी यात्रा करनेकी इच्छा हुई, पर श्रीराधारानीने स्वप्रमें निषेध किया। उन्होंने स्वप्नकी ओर विशेष ध्यान न देकर तीर्थयात्रा आरम्भ की, द्वारका पहुँचकर तप्तमुद्रा धारण करनेपर उनके चित्तमें विक्षेप हुआ और वे वृन्दावन लौट आये। श्रीराधाजीने फिर स्वप्न दिया कि 'तप्तमुद्दाछापके कारण तुम द्वारकाके परिकरमें सम्मिलित हो गये हो, तुमने व्रजवासका अधिकार खो दिया है।' महाराजजीने स्वप्नको सच माना, उनको बड़ी आत्मग्लानि हुई। 'राधारानीकी चरण सेवाका सुख न मिलेगा' यह सोचकर वे बहुत दुःखी हुए। उनका हृदय विरहानलमें जलने लगा। तीन मासतक बिना कुछ खाये पीये पड़े रहे, भीतरका विरह-ताप बाहर प्रकट हो चला, सारा का सारा कृश शरीर झुलस उठा, वक्षःस्थलतक शरीरके दह्यमान होनेपर भी उनका हरिनाम उच्चारण बंद नहीं हुआ। ग्रामवासी उनकी स्तुति करने लगे। महाराजने आशीर्वाद दिया कि इस ग्राममें कभी महामारी और दुर्भिक्षका प्रकोप नहीं होगा।

उन्होंने पौष मासकी अमावस्याको संसार त्याग किया। इस पुण्य तिथिपर रणवारीमें उनकी समाधिपर प्रत्येक वर्ष उत्सव मनाया जाता है।



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