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महाराज श्रीरामदासजी की मार्मिक कथा
महाराज श्रीरामदासजी की अधबुत कहानी - Full Story of महाराज श्रीरामदासजी (हिन्दी)

[भक्त चरित्र -भक्त कथा/कहानी - Full Story] [महाराज श्रीरामदासजी]- भक्तमाल


श्रीरामदासजीका जन्म काठियावाड़ के बटावदर गाँवमें एक अहीरके घर हुआ था। चार वर्षकी उसमें उनकी माता स्वर्गवासिनी हो गयीं और दादीने उनको पाल-पोसकर बड़ा किया। जब दस वर्षके हुए, तब दादी भी स्वर्ग सिधार गयी और पिताका भी देहान्त हो गया। फिर तो वे भगवानूपर भरोसा करके जंगलकी और चल दिये। शाम हो गयी और कोई गाँव समीप न देखकर वे एक पेड़के नीचे बैठकर रोने लगे। वहाँ अचानक उनको एक साधुका दर्शन हुआ। साधुने पूछा- 'बेटा! तू क्यों रो रहा है और अकेला यहाँ कैसे आया?' रामदासने जवाब दिया-'बाबा! मेरे माता-पिता नहीं हैं, मैं असहाय हैं। क्या करूँ, कहाँ जाऊँ, कुछ सूझता नहीं। इसीलिये रो रहा हूँ।'

साधुने दयादृष्टिसे देखा और कहा-'बेटा! जिसको कोई नहीं होता, उसके भगवान् हैं। इसलिये घबरा मत। वाणियामें रामबाई रहती है तू उसके पास जा और वह जैसा कहे, वैसा कर।' बालक सबेरे ववाणिया पहुँचा। रामबाई उसकी मौसी थी। उसे पहचानकर उसने पास रख लिया। एक दिन रामबाईने उससे कहा कि 'रामा। आज तू रामायण बाँच' पर वह तो अपढ़ था, बाँचता कैसे। उसे साधु महाराजकी बात याद आ गयी, उसने रामायण हाथमें ली और दोहा चौपाई रागसे गाकर भावभरे अर्थ करने लगा। यह देखकर लोग चकित हो गये।

एक रातको भीरभजन महादेव स्वप्रमें आये और बोले कि तुम सायला जाओ और यहाँ लालजी महाराजसे दीक्षा लो और अपने रामनामको सार्थककरो।' रामदास सायला गये। लालजी महाराजने अपने शिष्य कृष्णदाससे दीक्षा करा दी और कहा-'जा भाई ! साधु होकर अभिमान न करना, साधु तो जगत्की सेवाके लिये जन्म लेता है। इसलिये तुम ववाणिया लौट जाओ और वहाँ साधुओं तथा जगत्की सेवा करो।'

रामदास ववाणिया लौट गये और भजन-साधनमें लग गये। वे जहाँ रहते, नाम-स्मरणकी माला उनके हाथमें रहती । रातको प्रायः लोग उनको बैठकर माला जपते देखते थे। उनके यहाँ नित्य रामायणकी कथा होती थी और बहुत-से लोग कथा सुनने आते थे। उन्होंने ववाणिया और समीपके नवलखी बन्दर - दोनों जगह सदाव्रत बाँटनेका काम लगा दिया था।

सवंत् 1956 में बड़ा भारी अकाल पड़ा। महाराज रामदास रोज सिझाया हुआ चना बाँटने जाते थे। कोठारीने कहा -'महाराज ! रोज दस मन चने लगते हैं, यों कहाँतक काम चलेगा। कोई दूसरा रास्ता देखना चाहिये।' उन्होंने जवाब दिया- ' भाई ! तुम साधु होकर ऐसा क्यों कहते हो। हमसे तुमसे कहीं कोई काम चलता है। हजार हाथवाले समर्थ प्रभु ही सब काम पूरा कर सकते हैं।'

उन्होंने त्याग, वैराग्य, भक्ति और ज्ञानोपदेशसे भरे हुए भजन बनाये। उनकी राम भजनावली नामकी पुस्तक छपी है। बहुत सुन्दर वाणी कही है। उनका जीवन बड़ा चमत्कारी था। संवत् 1970 के फाल्गुन मासमें श्रीसीतारामका स्मरण करते-करते आपने अपनी आत्माको श्रीरामके चरणोंमें समर्पित कर दिया।



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shreeraamadaasajeeka janm kaathiyaavaaड़ ke bataavadar gaanvamen ek aheerake ghar hua thaa. chaar varshakee usamen unakee maata svargavaasinee ho gayeen aur daadeene unako paala-posakar bada़a kiyaa. jab das varshake hue, tab daadee bhee svarg sidhaar gayee aur pitaaka bhee dehaant ho gayaa. phir to ve bhagavaanoopar bharosa karake jangalakee aur chal diye. shaam ho gayee aur koee gaanv sameep n dekhakar ve ek peड़ke neeche baithakar rone lage. vahaan achaanak unako ek saadhuka darshan huaa. saadhune poochhaa- 'betaa! too kyon ro raha hai aur akela yahaan kaise aayaa?' raamadaasane javaab diyaa-'baabaa! mere maataa-pita naheen hain, main asahaay hain. kya karoon, kahaan jaaoon, kuchh soojhata naheen. iseeliye ro raha hoon.'

saadhune dayaadrishtise dekha aur kahaa-'betaa! jisako koee naheen hota, usake bhagavaan hain. isaliye ghabara mata. vaaniyaamen raamabaaee rahatee hai too usake paas ja aur vah jaisa kahe, vaisa kara.' baalak sabere vavaaniya pahunchaa. raamabaaee usakee mausee thee. use pahachaanakar usane paas rakh liyaa. ek din raamabaaeene usase kaha ki 'raamaa. aaj too raamaayan baancha' par vah to apadha़ tha, baanchata kaise. use saadhu mahaaraajakee baat yaad a gayee, usane raamaayan haathamen lee aur doha chaupaaee raagase gaakar bhaavabhare arth karane lagaa. yah dekhakar log chakit ho gaye.

ek raatako bheerabhajan mahaadev svapramen aaye aur bole ki tum saayala jaao aur yahaan laalajee mahaaraajase deeksha lo aur apane raamanaamako saarthakakaro.' raamadaas saayala gaye. laalajee mahaaraajane apane shishy krishnadaasase deeksha kara dee aur kahaa-'ja bhaaee ! saadhu hokar abhimaan n karana, saadhu to jagatkee sevaake liye janm leta hai. isaliye tum vavaaniya laut jaao aur vahaan saadhuon tatha jagatkee seva karo.'

raamadaas vavaaniya laut gaye aur bhajana-saadhanamen lag gaye. ve jahaan rahate, naama-smaranakee maala unake haathamen rahatee . raatako praayah log unako baithakar maala japate dekhate the. unake yahaan nity raamaayanakee katha hotee thee aur bahuta-se log katha sunane aate the. unhonne vavaaniya aur sameepake navalakhee bandar - donon jagah sadaavrat baantaneka kaam laga diya thaa.

savant 1956 men bada़a bhaaree akaal pada़aa. mahaaraaj raamadaas roj sijhaaya hua chana baantane jaate the. kothaareene kaha -'mahaaraaj ! roj das man chane lagate hain, yon kahaantak kaam chalegaa. koee doosara raasta dekhana chaahiye.' unhonne javaab diyaa- ' bhaaee ! tum saadhu hokar aisa kyon kahate ho. hamase tumase kaheen koee kaam chalata hai. hajaar haathavaale samarth prabhu hee sab kaam poora kar sakate hain.'

unhonne tyaag, vairaagy, bhakti aur jnaanopadeshase bhare hue bhajan banaaye. unakee raam bhajanaavalee naamakee pustak chhapee hai. bahut sundar vaanee kahee hai. unaka jeevan bada़a chamatkaaree thaa. sanvat 1970 ke phaalgun maasamen shreeseetaaraamaka smaran karate-karate aapane apanee aatmaako shreeraamake charanonmen samarpit kar diyaa.

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