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भक्तिमती श्रीगोपी मा की मार्मिक कथा
भक्तिमती श्रीगोपी मा की अधबुत कहानी - Full Story of भक्तिमती श्रीगोपी मा (हिन्दी)

[भक्त चरित्र -भक्त कथा/कहानी - Full Story] [भक्तिमती श्रीगोपी मा]- भक्तमाल


वह प्राणी धन्य है, जिसकी सेवा-शुश्रूषाके लिये | विशेष परिस्थितिमें स्वयं भगवान् ही प्रकट हो जाते हैं। श्रीगोपी मा भगवान्की एक ऐसी ही उपासिका थीं। उनके जीवनमें सरलता, भक्तसुलभ विनम्रता और उदारता - कूट-कूटकर भरी हुई थी। त्याग और निःस्वार्थकी तो वे - सजीव मूर्ति ही थीं।

परम पवित्र भगवती सरयूके तटपर श्री अयोध्यामें ह उनका जन्म हुआ था। उनके जीवनका अधिकांश लाहौरमें बीता। वे भाटीद्वार कन्यापाठशालामें सिलाई- - कटाईकी अध्यापिका थीं। जीविका-निर्वाहके लिये थोड़ा सा बचाकर शेष वेतन गरीब, असहाय और रोगियोंकी सेवामें लगा देनेमें उनको बड़ा आनन्द मिलता था। ग्रीष्म ऋतुमें विद्यार्थिनी बालिकाओंको अपने पैसेसे मिश्रीका शरबत पिलाती थीं। अध्यापन-कार्यसे अवकाश ग्रहण करनेपर वे अयोध्या चली आयीं। उनके इष्टदेव भगवान् श्रीराम थे; पर उनके हृदयको श्यामसुन्दरके रूपने अपनी ओर पूर्णतया आकृष्ट कर लिया, उनके नयन कालिन्दीके श्वेत बालुकामय तटपर रास करनेवाले नन्दनन्दनकी छवि देखनेके लिये उत्सुक हो उठे, कान स‍ शत-शत काम -विचुम्बित चरणोंकी रसमयी पायलध्वनि सुननेके लिये लालायित हो उठे। अतः उनके चरणवृन्दावनमें विचरण करनेके लिये चल पड़े, वे व्रजमें आ पहुँच, भगवान् गोपीनाथने गोपी माका चित्त चुरा लिया उन्होंने गोपीनाथ बाजारमें बंगाली बासेमें आठ आने किराये पर एक कोठरी ले ली; वे दिन-रात श्रीगोपीनाथके भजन-पूजन और चिन्तनमें अपने अमूल्य समयका सदुपयोग करने लगीं। यमुना-स्नान, भगवत्सेवा, संकीर्तन आदिमें ही नित्य उनका दैनिक कार्यक्रम पूरा हो जाता था।

एक समय उनको मलेरिया ज्वरने आ घेरा। सिवा | भगवान्के उनको और किसीका सहारा नहीं था। उन्होंने ज्वराक्रान्त स्थितिमें भगवान्‌को उलाहना देना आरम्भ किया कि 'यदि मैं अयोध्यामें होती तो परिवारवाले सेवा-शुश्रूषा तो करते, मैं तुम्हारे भरोसे यहाँ आ गयी और तुम ध्यानतक नहीं देते?' वे यों कहते-कहते सो गर्यो। भक्तने भगवान्‌को सच्चे हृदयसे पुकारा था। भगवान्ने स्वप्रमें दर्शन देकर दूध पिलाया, मलाई खिलायी। आँख खुलते ही गोपी माने देखा कि मलाईका कुछ अंश मुखमें शेष है दूधके मधुर स्वादकी याद थी, मिट्टीका कुल्हड़ पासमें ही पड़ा था। उन्होंने अपने सौभाग्यकी सराहना की। इस घटनाके पश्चात् भी वे कुछ दिनोंतक जीवित रहीं। सात-आठ साल पहले उन्होंने परमधामकी यात्रा की।



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[Bhakt Charitra - Bhakt Katha/Kahani - Full Story] [bhaktimatee shreegopee maa]- Bhaktmaal


vah praanee dhany hai, jisakee sevaa-shushrooshaake liye | vishesh paristhitimen svayan bhagavaan hee prakat ho jaate hain. shreegopee ma bhagavaankee ek aisee hee upaasika theen. unake jeevanamen saralata, bhaktasulabh vinamrata aur udaarata - koota-kootakar bharee huee thee. tyaag aur nihsvaarthakee to ve - sajeev moorti hee theen.

param pavitr bhagavatee sarayooke tatapar shree ayodhyaamen h unaka janm hua thaa. unake jeevanaka adhikaansh laahauramen beetaa. ve bhaateedvaar kanyaapaathashaalaamen silaaee- - kataaeekee adhyaapika theen. jeevikaa-nirvaahake liye thoda़a sa bachaakar shesh vetan gareeb, asahaay aur rogiyonkee sevaamen laga denemen unako bada़a aanand milata thaa. greeshm ritumen vidyaarthinee baalikaaonko apane paisese mishreeka sharabat pilaatee theen. adhyaapana-kaaryase avakaash grahan karanepar ve ayodhya chalee aayeen. unake ishtadev bhagavaan shreeraam the; par unake hridayako shyaamasundarake roopane apanee or poornataya aakrisht kar liya, unake nayan kaalindeeke shvet baalukaamay tatapar raas karanevaale nandanandanakee chhavi dekhaneke liye utsuk ho uthe, kaan sa‍ shata-shat kaam -vichumbit charanonkee rasamayee paayaladhvani sunaneke liye laalaayit ho uthe. atah unake charanavrindaavanamen vicharan karaneke liye chal pada़e, ve vrajamen a pahunch, bhagavaan gopeenaathane gopee maaka chitt chura liya unhonne gopeenaath baajaaramen bangaalee baasemen aath aane kiraaye par ek kotharee le lee; ve dina-raat shreegopeenaathake bhajana-poojan aur chintanamen apane amooly samayaka sadupayog karane lageen. yamunaa-snaan, bhagavatseva, sankeertan aadimen hee nity unaka dainik kaaryakram poora ho jaata thaa.

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