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भक्त कूर्मदास की मार्मिक कथा
भक्त कूर्मदास की अधबुत कहानी - Full Story of भक्त कूर्मदास (हिन्दी)

[भक्त चरित्र -भक्त कथा/कहानी - Full Story] [भक्त कूर्मदास]- भक्तमाल


कूर्मदास ज्ञानदेव-नामदेवके समकालीन एक ब्राह्मण थे। ये पैठणमें रहते थे। जन्मसे ही इनके हाथ-पैर नहीं थे। जहाँ कहीं भी पड़े रहते, और जो कोई जो कुछ लाकर खिला देता, उसीसे निर्वाह करते थे। एक दिन पैठणमें कहीं हरिकथा हो रही थी। इन्होंने दूरसे उसकी ध्वनि सुनी और पेटके बल रेंगते हुए वहाँ पहुँचे। वहाँ उन्होंने पण्ढरपुरकी आषाढी-कार्तिकी यात्राका माहात्म्य सुना । कार्तिकी एकादशीमें अभी चार महीनेकी अवधिथी। कूर्मदासने पेटके बल चलकर तबतक पण्ढरपुर पहुँचनेका निश्चय किया। बस, उसी क्षण वहाँसे चल पड़े। एक कोससे अधिक वे दिनभरमें नहीं रेंग सकते थे। रातको कहीं ठहर जाते और भगवान्‌की उपस्थितिसे कोई-न-कोई उन्हें अन्न-जल देनेवाला मिल ही जाता था। इस तरह चार महीनेमें वे लहुल नामक स्थानमें पहुँचे। बस, अब कल ही एकादशी है और पण्ढरपुर यहाँसे सात कोस है। किसी तरहसे भी कूर्मदास वहाँएकादशीको पहुँच नहीं सकते। झुंड-के-झुंड यात्री चले जा रहे हैं, पर कूर्मदास लाचार हैं। 'क्या इस अभागेको भगवान्‌के दर्शन कल नहीं होंगे? मैं तो वहाँतक कल नहीं पहुँच सकता। पर क्या भगवान् यहाँतक नहीं आ सकते? वे तो चाहे जो कर सकते हैं।' यह सोचकर उन्होंने एक चिट्ठी लिखी, 'हे भगवन्! मैं बे हाथ-पैरका आपका दास यहाँ पड़ा हूँ, मैं कलतक आपके पास नहीं पहुँच सकता। इसलिये आप ही दया करके यहाँ आयें और मुझे दर्शन दें।' यह चिट्ठी उन्होंने एक यात्रीके हाथ भगवान्‌के पास भेज दी। दूसरे दिन, एकादशीको भगवान्‌के दर्शनकरके उस यात्रीने वह चिट्ठी भगवान्‌के चरणोंमें रख | दी। लहुलमें कूर्मदास भगवान्‌की प्रतीक्षा कर रहे थे, जोर-जोरसे पुकार रहे थे- 'भगवन्! कब दर्शन दोगे? अभीतक क्यों नहीं आये? मैं तो आपका हूँ न ?' इस प्रकार अत्यन्त व्याकुल होकर वे भगवान्‌को पुकारने लगे। परमकारुणिक पण्ढरीनाथ श्रीविट्ठल ज्ञानदेव, नामदेव और साँवता माली, इन तीनोंके साथ कूर्मदासके | सामने आकर खड़े हो गये। कूर्मदासने उनके चरण | पकड़ लिये। तबसे भगवान्, जबतक कूर्मदास वहाँ थे, वहीं रहे। वहाँ श्रीविट्ठलभगवान्का जो मन्दिर हैं, वह | इन्हीं कूर्मदासपर भगवान्का मूर्त अनुग्रह है।



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koormadaas jnaanadeva-naamadevake samakaaleen ek braahman the. ye paithanamen rahate the. janmase hee inake haatha-pair naheen the. jahaan kaheen bhee pada़e rahate, aur jo koee jo kuchh laakar khila deta, useese nirvaah karate the. ek din paithanamen kaheen harikatha ho rahee thee. inhonne doorase usakee dhvani sunee aur petake bal rengate hue vahaan pahunche. vahaan unhonne pandharapurakee aashaadhee-kaartikee yaatraaka maahaatmy suna . kaartikee ekaadasheemen abhee chaar maheenekee avadhithee. koormadaasane petake bal chalakar tabatak pandharapur pahunchaneka nishchay kiyaa. bas, usee kshan vahaanse chal pada़e. ek kosase adhik ve dinabharamen naheen reng sakate the. raatako kaheen thahar jaate aur bhagavaan‌kee upasthitise koee-na-koee unhen anna-jal denevaala mil hee jaata thaa. is tarah chaar maheenemen ve lahul naamak sthaanamen pahunche. bas, ab kal hee ekaadashee hai aur pandharapur yahaanse saat kos hai. kisee tarahase bhee koormadaas vahaanekaadasheeko pahunch naheen sakate. jhunda-ke-jhund yaatree chale ja rahe hain, par koormadaas laachaar hain. 'kya is abhaageko bhagavaan‌ke darshan kal naheen honge? main to vahaantak kal naheen pahunch sakataa. par kya bhagavaan yahaantak naheen a sakate? ve to chaahe jo kar sakate hain.' yah sochakar unhonne ek chitthee likhee, 'he bhagavan! main be haatha-pairaka aapaka daas yahaan pada़a hoon, main kalatak aapake paas naheen pahunch sakataa. isaliye aap hee daya karake yahaan aayen aur mujhe darshan den.' yah chitthee unhonne ek yaatreeke haath bhagavaan‌ke paas bhej dee. doosare din, ekaadasheeko bhagavaan‌ke darshanakarake us yaatreene vah chitthee bhagavaan‌ke charanonmen rakh | dee. lahulamen koormadaas bhagavaan‌kee prateeksha kar rahe the, jora-jorase pukaar rahe the- 'bhagavan! kab darshan doge? abheetak kyon naheen aaye? main to aapaka hoon n ?' is prakaar atyant vyaakul hokar ve bhagavaan‌ko pukaarane lage. paramakaarunik pandhareenaath shreevitthal jnaanadev, naamadev aur saanvata maalee, in teenonke saath koormadaasake | saamane aakar khada़e ho gaye. koormadaasane unake charan | pakada़ liye. tabase bhagavaan, jabatak koormadaas vahaan the, vaheen rahe. vahaan shreevitthalabhagavaanka jo mandir hain, vah | inheen koormadaasapar bhagavaanka moort anugrah hai.

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