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परमहंस रामदासजी की मार्मिक कथा
परमहंस रामदासजी की अधबुत कहानी - Full Story of परमहंस रामदासजी (हिन्दी)

[भक्त चरित्र -भक्त कथा/कहानी - Full Story] [परमहंस रामदासजी]- भक्तमाल


परमहंस रामदासजी बाबा रघुनाथदासजीके प्रिय शिष्य थे। आपकी जन्मभूमि छपरा थी और आपने ब्राह्मणकुलको सुशोभित किया था बहुत छोटी अवस्थामें ही आपको वैराग्य हुआ और आपने चारों धामकी प्रदक्षिणा वारह वर्षोंमें समाप्त की। इसके अनन्तर आप अयोध्या आकर अपने गुरु महाराजकी सेवामें रहने लगे। चित्रकूटके बनमें जाकर एकान्तवासके साथ-साथ आपने योगाभ्यास किया। काशीके स्वामी विशुद्धानन्दजीसे आपको बड़ी सहायता मिली। परमहंस लक्ष्मणदासजी, रामकृष्ण परमहंस श्रीझकझकिया बाबा आदि प्रसिद्ध महात्माओंसे आपने भेंट की। इसके बाद आपने अनसूया आश्रममें जाकर तपस्या की और तीन महीनेतक आप केवल नीमकी पत्ती खाकर रहे। बारह वर्ष आप केवल फल और दूधपर रहे। परंतु इससे भी आपको संतोष नहीं हुआ आप वृन्दावन गये। वहाँ तीन वर्ष यमुनाके किनारे बिना कपड़े पहने अवधूतकी तरह नंग-धड़ंग रहे कोई 1 कुछ खानेको देता, वही पाकर अलमस्त डोलते। क्याजेठकी गर्मी और क्या माघका जाड़ा, आप सदा दिगम्बर ही रहे। तीन वर्षकी इस परमहंसावस्थाका रस लेकर आपने पुनः कण्ठी-तिलक धारण किया।

आपके पास जो कोई भी, जिस किसी भी कामके लिये साधन पूछता, आप उसे भगवान्‌का नाम ही बतलाते। कितने श्रोत्रियोंने इनकी प्रेरणासे कण्ठी-माला ली। आपको नंगे पैर देशाटनका बहुत शौक था। साथमें केवल एक तुमड़ी और कुछ पोथियोंकी झोली रखते थे। आपने एकान्तवासके हेतु कुछ समय गयामें बिताया। वहाँ इनकी विभूतियोंका दर्शन पहले-पहल हुआ। कितने ही लोगोंका आपके द्वारा बहुत अधिक कल्याण हुआ। सेमरियाघाटमें आपके योगाश्रमका नाम रामबाग था। योगके साथ-साथ आप अनेक विद्याओंके स्रोत थे। आपने भक्ति-प्रेम योग-सम्बन्धी बहुत सुन्दर पद रचे हैं। आपका जीवन अनेकों विचित्र चमत्कारी घटनाओंसे पूर्ण है। स्थानाभावसे वे सब यहाँ नहीं लिखी जातीं।



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