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ठाकुर उद्धारणदत्त की मार्मिक कथा
ठाकुर उद्धारणदत्त की अधबुत कहानी - Full Story of ठाकुर उद्धारणदत्त (हिन्दी)

[भक्त चरित्र -भक्त कथा/कहानी - Full Story] [ठाकुर उद्धारणदत्त]- भक्तमाल


पंद्रहवीं शताब्दीके अन्तमें बंगालके हुगली जिलेमें सरस्वती नदीके तटपर स्थित सप्तग्राम नामक एक समृद्धिशाली नगर था। श्रीकरदत्त नामक एक ऐश्वर्यशाली व्यापारी वहाँ आकर निवास करने लगे। श्रीकरदत्त शाण्डिल्यगोत्रिय प्रसिद्ध वैश्य थे। वे अपनी सदाशयता और दयाधर्मपरायणताके कारण वहाँके निवासियोंके अत्यन्त श्रद्धापात्र हो गये थे। वे भूखों, अनाथों और दुःखियोंकी सहायता करनेमें कुछ भी उठा नहीं रखते थे। उनकी धर्मपत्नी भद्रावती भी सुशीला, सच्चरित्रा, पतिपरायणा एवं दया-धर्मशीला थीं। इन्हीं भद्रावती देवीके गर्भसे शाके 1403 में महाभागवत श्रीउद्धारणदत्तका जन्म हुआ। समय पाकर इनकी शिक्षा दीक्षा हुई। पिताकी मृत्युके बाद उद्धारणदत्त ही उनकी सम्पूर्ण सम्पत्तिके अधिकारी हुए। इसी समय उद्धारणदत्तने एक जमींदारी खरीदकर और उसे बसाकर अपने नामानुसार उसका नाम उद्धारणपुर रखा, जो आज भी कटवेके समीप विद्यमान है। पिताके समान पुत्र भी पूर्ण सदाचारी, परोपकारी और भगवद्भक्त निकला। इनके दया भावके कारण बंगालके तत्कालीन नवाब सुलतान हुसैनशाह इनका बहुत सम्मान करते थे। जिस समय भगवान् चैतन्यदेवके परमप्रिय सहचरश्रीनित्यानन्दजी बंगालमें हरिनामामृत पान करा रहे थे. उस समय उनसे हरि-नामकी दीक्षा लेकर ठाकुर उद्धारणदत्त प्रेम-निमग्न हो गये और अपने पुत्र श्रीनिवासको अतुल सम्पत्तिका मालिक बनाकर श्रीनीलाचलधामको चल पड़े और श्रीमहाप्रभुका प्रसाद पाते हुए सुखपूर्वक वहीं निवास करने लगे । वहाँसे फिर श्रीवृन्दावनधाममें आकर रहने लगे। ऐसी किंवदन्ती है कि इनकी भक्तिसे प्रसन्न होकर परमाराध्या, महाविद्या, शक्तिस्वरूपिणी मा इन्हें समय-समयपर प्रत्यक्ष दर्शन दिया करती थीं। उद्धारणदत्त जातिके स्वर्णवणिक् थे। उन्होंने श्रीनित्यानन्दजीके साथ बंगालके बहुत-से भागों में भ्रमण करके परम गुह्य वैष्णवधर्मका प्रचार किया था। जीवोंपर दया, भगवन्नाममें रुचि और विष्णुसेवा' - यही उनके प्रचारके विषय थे।

इस प्रकार 1460 शकमें 57 वर्षकी अवस्थामें श्रीवृन्दावनधाममें इन्होंने इहलीला समाप्त की। आज भी श्रीवृन्दावनधाममें वंशीवटके निकट श्रीउद्धारणदत्तका प्रसिद्ध समाधि-मन्दिर बना है और प्रतिवर्ष हजारों यात्री उनके समाधि-मन्दिरपर श्रद्धापूर्ण पुष्पाञ्जलि चढ़ाकर अपनेको सौभाग्यशाली समझते हैं।



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is prakaar 1460 shakamen 57 varshakee avasthaamen shreevrindaavanadhaamamen inhonne ihaleela samaapt kee. aaj bhee shreevrindaavanadhaamamen vansheevatake nikat shreeuddhaaranadattaka prasiddh samaadhi-mandir bana hai aur prativarsh hajaaron yaatree unake samaadhi-mandirapar shraddhaapoorn pushpaanjali chadha़aakar apaneko saubhaagyashaalee samajhate hain.

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