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सुन्दरकाण्डके पारायणसे पूरा हुआ मनोरथ

मनुष्य जीवनमें कुछ घटनाएँ ऐसी होती हैं, जो सदैव हृदय-पटलपर अंकित हो जाती हैं। मेरे जीवनकी एक ऐसी ही घटना है, जिसने सुन्दरकाण्डकी महत्ताको मेरे मन-मन्दिरमें सदा-सदाके लिये अंकित कर दिया। गोस्वामी तुलसीदासजीद्वारा रचित कालजयी ग्रन्थ श्रीरामचरितमानसकी हर चौपाई, दोहा, सोरठा, छंद, श्लोक सभी मन्त्र ही हैं, जो मनुष्यकी मनोकामना पूर्ण करनेवाले हैं।

घटना १९८३-८४ की है। मेरी नियुक्ति स्टेट बैंक ऑफ बीकानेर एण्ड जयपुर (अब भारतीय स्टेट बँक) की एकल शाखा रटलाई, जिला झालावाड़ (राज०) में शाखाप्रबन्धकके पदपर थी। यह ग्राम झालावाड़से लगभग पैंतीस किलोमीटर दूर स्थित है। उस समय यहाँ आवागमनके साधन बहुत कम थे। केवल एक बस सुबहके समय आती थी और वही बस शामको लौटती थी । बैंककी दृष्टिसे यह स्थान 'कठिन स्थान' की श्रेणीमें माना जाता था। इस बैंक शाखामें मैं और एक चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी ही थे। जो भी शाखाप्रबन्धक यहाँ नियुक्त किया जाता था, उसको दो वर्ष वहाँ रहना ही पड़ता था। बड़ी विषम स्थिति थी। कोई अधिकारी स्वेच्छासे इस शाखा में आनेको तैयार नहीं होता था; क्योंकि यहाँ रहनेके लिये आवास व्यवस्था भी ठीक नहीं थी, परिवारको साथ रखना तो दूरकी बात थी। हमेशा मेरे मनमें यही भाव रहता था कि पता नहीं यहाँसेकब स्थानान्तरण होगा। लेकिन यदि आपकी ईश्वरमें श्रद्धा है, आस्था है तो ईश्वरीय कृपासे सारे रास्ते खुल जाते हैं। मैंने इस समस्याके बारेमें अपने सद्गुरुदेवको बताया तो उन्होंने मुझे एक उपाय सुझाया कि तुम प्रत्येक शनिवार रात्रिके ग्यारह बजे तेलका दीपक जलाकर श्रीहनुमान्जीके चित्रके सामने रखकर पूर्ण श्रद्धा एवं निष्ठासे इस समस्याके निवारणार्थ सुन्दरकाण्डके नौ अखण्ड पाठ करो तो तुम्हारी मनोकामना हनुमान्जीकी कृपासे अवश्य पूरी होगी।

मेरे बैंक-कार्यमें अधिक व्यस्त रहनेके कारण मेरी धर्मपत्नीने मेरी समस्याके निवारणार्थ श्रद्धा एवं विश्वासपूर्वक इस अनुष्ठानको पूरा किया। जैसे ही नौ पारायण पूर्ण हुए, मेरे स्थानान्तरणका आदेश रटलाईसे कोटाके लिये प्राप्त हो गया, वह भी मेरे आवासके पासकी बैंक शाखामें होना सुन्दरकाण्डके पारायणका ही सुफल था।

किष्किन्धाकाण्डकी यह चौपाई कवन सो काज कठिन जग माहीं। जो नहिं होइ तात तुम्ह पाहीं ॥

शतप्रतिशत हनुमान्जीकी कृपासे फलीभूत हुई। मेरे सद्गुरुके बताये सुन्दरकाण्डके पारायण-अनुष्ठानसे मेरा मनोरथ पूर्ण हुआ।

वास्तवमें सुन्दरकाण्डका पारायण तुरंत फल देनेवाला है। हनुमान्जीकी कृपा शीघ्र फलीभूत होती है, चाहिये मनमें श्रद्धा-विश्वास एवं प्रगाढ़ आस्था जय श्रीराम ! [ श्रीप्रह्लादवनजी गोस्वामी ]



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sundarakaandake paaraayanase poora hua manoratha

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ghatana 1983-84 kee hai. meree niyukti stet baink ऑph beekaaner end jayapur (ab bhaarateey stet banka) kee ekal shaakha ratalaaee, jila jhaalaavaada़ (raaja0) men shaakhaaprabandhakake padapar thee. yah graam jhaalaavaada़se lagabhag paintees kilomeetar door sthit hai. us samay yahaan aavaagamanake saadhan bahut kam the. keval ek bas subahake samay aatee thee aur vahee bas shaamako lautatee thee . bainkakee drishtise yah sthaan 'kathin sthaana' kee shreneemen maana jaata thaa. is baink shaakhaamen main aur ek chaturth shrenee karmachaaree hee the. jo bhee shaakhaaprabandhak yahaan niyukt kiya jaata tha, usako do varsh vahaan rahana hee pada़ta thaa. bada़ee visham sthiti thee. koee adhikaaree svechchhaase is shaakha men aaneko taiyaar naheen hota thaa; kyonki yahaan rahaneke liye aavaas vyavastha bhee theek naheen thee, parivaarako saath rakhana to doorakee baat thee. hamesha mere manamen yahee bhaav rahata tha ki pata naheen yahaansekab sthaanaantaran hogaa. lekin yadi aapakee eeshvaramen shraddha hai, aastha hai to eeshvareey kripaase saare raaste khul jaate hain. mainne is samasyaake baaremen apane sadgurudevako bataaya to unhonne mujhe ek upaay sujhaaya ki tum pratyek shanivaar raatrike gyaarah baje telaka deepak jalaakar shreehanumaanjeeke chitrake saamane rakhakar poorn shraddha evan nishthaase is samasyaake nivaaranaarth sundarakaandake nau akhand paath karo to tumhaaree manokaamana hanumaanjeekee kripaase avashy pooree hogee.

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