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संत श्रीनानाजीपर नर्मदाजीकी प्रत्यक्ष कृपा

संतका यही प्रयास रहता है कि वह शरणागतके मनसे भौतिकताकी छायाको धूमिल करके उसके मनमें भक्तिका प्रकाश फैला दे । इसलिये जब कोई मनुष्य भक्तवत्सल सच्चे संतका दर्शन करता है तो उसे ईश्वरके सामीप्यका आभास कुछ अंशमें होने लगता है। उसकी भक्ति प्रबल होती जाती है, दैविक शक्ति प्रबल होने लगती है और भौतिक छाया धूमिल पड़ने लगती है। उसे सात्त्विकताका आभास होने लगता है। ऐसे ही एक संत हुए हैं- श्रीनानाजी महाराज, जिनकी अनेक गाथाएँ सुनने को मिलती हैं। आज वे देहरूपमें विद्यमान न रहते हुए भी अपने भक्तोंके हृदयमें बसे हुए हैं।

श्री नानाजीके एक रतलामनिवासी भक्त थे । आजसे २५-२६ वर्ष पहले मराठी भाषामें लिखी एक हस्तलिखित कृति उन्होंने मुझे पढ़नेको दी थी, उसमें श्रीनानाजीकी नर्मदा परिक्रमाका अविस्मरणीय वर्णन पढ़नेको मिला। घटना कुछ इस प्रकार है

श्रीनानाजीको परिक्रमा करते-करते तीन दिन हो गये थे । प्रातः स्नान, दर्शन, सायंकाल पुनः दर्शन-संध्या आदि करते हुए दिनभर चलते रहते, पर भोजनका एक ग्रास भी नहीं मिला, थककर वे एक जगह बैठ गये । थोड़ी ही देरमें कुछ दूरीपर मनुष्योंकी बातचीतकी धीमी आवाज उनको सुनायी दी। श्रीनानाजी उस ओर चल पड़े। उन्होंने देखा कि एक घने पेड़की छायामें एक चूल्हा जल रहा था, पास ही एक कुटिया भी थी। कईव्यक्ति आस-पास रखे पत्थरोंपर बैठे कुछ खा रहे थे। पास आनेपर उन्होंने एक बुढ़ियाको देखा, जो चूल्हेपर रखी कड़ाही में भजिये तल रही थी और बड़े-बड़े पत्तेमें रखकर उन्हें खानेको दे रही थी। श्रीनानाजीको देखकर उस बुढ़ियाने बड़े प्रेमसे उन्हें भी भजिये खानेको दिये और कहा पेटभरके खाओ। भजिये स्वादिष्ट थे। श्री नानाजीने दो-तीन बार लेकर खाये, जल पिया। विश्राम किया। इस पूरे समयमें बुढ़िया नानाको बड़े प्यारसे देखती जाती थी। श्रीनानाजीने थोड़ा विश्राम किया, फिर भजियेके पैसे देनेके लिये तत्पर हुए तो बुढ़िया बड़ी मधुर वाणीमें बोली- 'बेटा! मैं यहीं रहती हूँ और परिक्रमा करनेवालोंको भोजन देकर पुण्य अर्जित करती हूँ; क्योंकि इस क्षेत्रमें दो-तीन दिनतक चलनेके बाद भी भोजनकी व्यवस्था नहीं हैं। श्रीनानाजीने उन्हें नमन किया और आगे चल पड़े। कुछ दूर जानेपर श्री नानाजीको अचानक अपने झोलेकी याद आयी। उन्हें लगा कि वे शायद कुटियाके पास भजिये खाकर, पानी | पीनेके बाद वहीं भूल आये। वे वापस झोला लेने वहाँ गये, पर यह क्या! वे आश्चर्यचकित रह गये-झोला तो वहीं पर था, पर वह झोपड़ी, वे लोग, चूल्हा कड़ाही, वह बुढ़िया - सब गायब। श्रीनानाजी समझ गये कि यह सब माता नर्मदाकी कृपा है। उन्होंने नीचे प्रवाहित होती माता नर्मदाको नमन किया और मुसकुराते हुए परिक्रमाहेतु आगे चल पड़े, इस तरह नर्मदामाताने पूज्य नानाजीको दर्शन दिये।

[ श्रीरामचन्द्रजी सहारिया ]



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sant shreenaanaajeepar narmadaajeekee pratyaksh kripaa

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[ shreeraamachandrajee sahaariya ]

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