⮪ All भगवान की कृपा Experiences

श्रीसत्यनारायणव्रतकी कृपानुभूति

भगवान्की कृपाका यह संस्मरण मुझे मेरी माताजी श्रीमती ब्रजमणी देवीसे प्राप्त हुआ। उनके शब्दोंमें घटना इस प्रकार है— मेरे पिताजीके घनिष्ठ मित्रके यहाँ सत्यनारायणभगवान्की कथाका आयोजन किया गया था, मैं अपनी ताईजी तथा अपने छोटे भाईके साथ वहाँ गयी थी। कथा समाप्त होते-होते रात्रिके बारह बज गये। हम लोग प्रसाद लेकर वापस आने लगे। उसी बीच भाई बोला,'भगवान्‌का चरणामृत एवं माला तो लिया ही नहीं।' अत: हम फिर वापस चरणामृत लेने गये। उसकी इस भक्ति-भावनासे हम लोग बहुत प्रभावित हुए। उस समय घरोंमें विद्युत्-प्रकाशकी व्यवस्था नहीं थी। लालटेनसे ही काम चलाया जाता था। मुख्य द्वारपर भी वही व्यवस्था थी। संयोगवश आते समय वहाँ प्रकाश नहीं था। भोला बालक प्रसाद पाकर अति प्रसन्न मुद्रामें आगे-आगे बढ़ रहा था । पराये घरमें दिशाज्ञान न होनेके कारण वह अन्धकारमें मुख्य द्वारके सदृश दीखनेवाले पासके दूसरे द्वारसे जाने लगा। हम लोग पीछेसे चिल्लाने लगे 'उधरसे मत जाओ, वह रास्ता नहीं है।' वह मार्ग पुराने कुएँकी ओर जाता था, जो जमीनकी सतहपर था। दुर्भाग्यसे समारोहकी व्यस्ततामें किसीने उसका ढक्कन खुला छोड़ दिया था। हम लोगोंकी आवाज उसतक पहुँचे, उसके पहले ही वह कुएँमें जा गिरा। चारों तरफ हाहाकार मच गया। उसको निकालनेका सब असफल प्रयत्न करने लगे। मध्यरात्रिका समय, कहाँसे क्या व्यवस्था की जाय ! लोगोंके चेहरेपर विवशता झलक रही थी। मुँहमाँगा दाम देकर गोताखोरोंको बुलाया गया, किंतु सावन-भादोंके भरे कुएँमें छलाँग लगानेका साहस वे भी नहीं कर सके। हम सब असहाय-निरुपाय रोते-रोते भगवान्‌का स्मरण करने लगे 'प्रभो! तुम्हारे अनुष्ठानमें यह कैसी लीला ?' उसी समय कुएँसे गूँजती आवाज आयी। 'आप लोग कुएँमें रस्सी या धोती लटकाइये, तत्काल एक सज्जनने अपनी धोती लटका दी फिर आवाज आयी - 'यह हमारे पास नहीं पहुँच रही है। एक-दो धोती और बाँध दीजिये ।' तत्काल वैसा ही किया गया। फिर बालककी आवाज आयी, 'अब सावधानीके साथ धोती खींचिये ।' लोगोंने वैसा ही किया। कुछ ही क्षणोंमें बालक कुएँसे बाहर आ गया। सब चकित थे कि इतने छोटे बालकको यह बुद्धि कहाँसे आयी ? उसका बाल भी बाँका नहीं हुआ था। उसने सावधानीके साथ धोतीका छोर अपने हाथों में बाँध रखा था। लोगोंके पूछनेपर कि 'वह कुएँमें कहाँ और किस स्थितिमें था ?' उसने बताया- 'मुझे तो ऐसा लग रहा था कि मेरे पैरोंके नीचे किसीने अपने हाथ लगा दिये हों।' निश्चय ही उन भगवान् सत्यनारायणने ही उसकी रक्षा की थी, जिनकी कथा सुनने एवं प्रसाद लेने वह बड़ी श्रद्धा-लगनसे आया था।

[ श्रीमती मंजूरानीजी गुटगुटिया ]



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[ shreematee manjooraaneejee gutagutiya ]

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