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श्रीशालग्राम-माहात्म्य

कर्तव्यं सततं भक्त्या शालग्रामशिलार्चनम् । शालग्रामशिलारूपी यत्र तिष्ठति केशवः ॥
शालग्रामशिला स्पर्शात् कोटिजन्माघनाशनम् किं पुनर्यजनं तत्र हरिसान्निध्यकारकम् ॥ (पद्मपुराण)

यह हमारा कर्तव्य है कि अनन्य भक्तिपूर्वक श्रीशालग्रामजीका पूजनार्चन करें; क्योंकि जहाँ श्रीहरिस्वरूप श्रीशालग्रामजी विराजित है, वहाँ भगवान् श्रीकेशय भी स्वयं विराजमान रहते हैं।

श्रीशालग्रामजीके स्पर्शमात्र से ही कोटिजन्मार्जित पापसमूह समूल नष्ट होते हैं। पूजनार्चनकी तो बात ही क्या है? पूजनार्चन तो श्रीहरिके सान्निध्यको प्राप्त कराता है।

[ प्रस्तुति - श्रीकृष्णकुमारजी रस्तोगी ]



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shreeshaalagraama-maahaatmya

kartavyan satatan bhaktya shaalagraamashilaarchanam . shaalagraamashilaaroopee yatr tishthati keshavah ..
shaalagraamashila sparshaat kotijanmaaghanaashanam kin punaryajanan tatr harisaannidhyakaarakam .. (padmapuraana)

yah hamaara kartavy hai ki anany bhaktipoorvak shreeshaalagraamajeeka poojanaarchan karen; kyonki jahaan shreeharisvaroop shreeshaalagraamajee viraajit hai, vahaan bhagavaan shreekeshay bhee svayan viraajamaan rahate hain.

shreeshaalagraamajeeke sparshamaatr se hee kotijanmaarjit paapasamooh samool nasht hote hain. poojanaarchanakee to baat hee kya hai? poojanaarchan to shreeharike saannidhyako praapt karaata hai.

[ prastuti - shreekrishnakumaarajee rastogee ]

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