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भगवान् शंकरकी कृपा

मैं एक साधारण ब्राह्मण परिवारमें पैदा हुआ। मेरे बाबाजी कर्मकाण्डी पण्डित थे, वे आयुर्वेद और ज्योतिषशास्त्र के ज्ञाता भी थे। उनका अधिकांश जीवन मन्दिरमें रहकर ही व्यतीत हुआ। मेरे पिताजीके जन्मके कुछ साल बाद से ही वे मन्दिरमें रहकर पूजा-पाठ करने लगे थे। मुझे संस्कार और पूजा- पाठके प्रति रुचि उन्हींसे प्राप्त हुई और मैं शनैः-शनैः भगवान् शंकरकी भक्तिमें लीन रहने लगा। जब भी कभी कोई उलझनआती, मैं 'ॐ नमः शिवाय' का जप करता और मेरी वह उलझन दूर हो जाती। यह बात सन् १९७५ ई० की है, जब मैंने जनपद बिजनौरके सिविल लाइन क्षेत्रमें एक बनी-बनायी कोठी खरीदनेका विचार बनाया। कोठी आगेसे चौड़ी और पीछेसे पतली थी, जिसे विद्वान् लोग शेरदाह अथवा नागफनी कहते हैं। यह कोठी मुख्य स्थानपर स्थित थी और बड़े अच्छे पैसोंमें मिल रही थी, मजबूत बनी हुई थी, लेकिन कुछ परेशानियोंकी वजहसेकोठीके मालिक उसे बेचकर चण्डीगढ़ जाना चाहते थे। अतः मेरे और उनके बीचमें कोठीका सौदा होनेकी बात चली, मुझसे कई लोगोंने कहा कि यह कोठी नागफनी है। अतः सोच-विचारकर लेना। मैं अपने जनपदके एक प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्यके पास गया और उनसे पूछा कि मैं वह कोठी ले लूँ। उन्होंने सुनते ही कहा, कि वह कोठी मत लेना, तुम्हें पता है ! कोठीके मालिक माथुरकी मुथरी बन गयी है। मुथरीसे उनका आशय अँगूठीसे था, वह कोठी भाग्यवान् नहीं है। ऐसे ही और भी एक दो लोगोंने मना किया, किंतु मेरे पिताजीकी अनुमति थी। अतः मैंने हिम्मत करके कोठी ले ली और कोठी लेनेके साथ ही मैंने एक विशाल मूर्ति भगवान् शंकरकी बनवायी तथा उसे कोठीके मुख्य कमरेमें स्थापित किया। मैंने भगवान् शंकरसे प्रार्थना की कि प्रभु इसके नागफनी होनेका दोष आपको निवारण करना है और आपकी पूजा-भक्ति मुझे करनी है। मेरा या परिवारका कोई अनिष्ट नहीं होना चाहिये। इसी कारण मैं आपको कोठीके मुख्य कमरेमें स्थापित कर रहा हूँ कि आपअनिष्ट करनेवाले नागका फन दबाये रहें। भगवान् शंकरकी कृपाके फलस्वरूप उसी दौरान अचानक बदरिकाश्रमके शंकराचार्यजी पधारे। अनायास ही उनके आनेसे मुझे बहुत प्रसन्नता हुई और मैं एक क्षणको हतप्रभ भी हुआ कि भगवान् शंकरके आशीर्वादसे ही शंकराचार्यजी मेरे निवास स्थानपर स्वतः आये हैं। तबसे आजतक भगवान् शंकरकी वह विशाल मूर्ति मेरी कोठीमें विराजमान है, मैं और मेरी पत्नी निरन्तर प्रात:कालसे ही पूजा-पाठमें लगे रहते हैं और मैं अब भी, जब भी कोई उलझन होती है तो 'ॐ नमः शिवाय'की दो माला जप करता हूँ। हजारोंमें ली गयी उस कोठीकी कीमत आज करोड़ोंमें है तथा मैं और मेरा परिवार उसमें काफी सुखी है। मेरे पुत्रोंने भी काफी उन्नति की है तथा मैं भी अपने क्षेत्रमें वांछित स्थानपर हूँ। यह सब भगवान् शंकरकी कृपा है। मेरा मानना है कि जो भी अवढरदानी भगवान् शंकरकी पूजा हृदयसे करते हैं, उनके कष्ट तो कम होते ही हैं, सुख समृद्धि भी सदैव प्राप्त होती है।[ श्रीहितेश कुमारजी शर्मा]



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bhagavaan shankarakee kripaa

main ek saadhaaran braahman parivaaramen paida huaa. mere baabaajee karmakaandee pandit the, ve aayurved aur jyotishashaastr ke jnaata bhee the. unaka adhikaansh jeevan mandiramen rahakar hee vyateet huaa. mere pitaajeeke janmake kuchh saal baad se hee ve mandiramen rahakar poojaa-paath karane lage the. mujhe sanskaar aur poojaa- paathake prati ruchi unheense praapt huee aur main shanaih-shanaih bhagavaan shankarakee bhaktimen leen rahane lagaa. jab bhee kabhee koee ulajhanaaatee, main 'oM namah shivaaya' ka jap karata aur meree vah ulajhan door ho jaatee. yah baat san 1975 ee0 kee hai, jab mainne janapad bijanaurake sivil laain kshetramen ek banee-banaayee kothee khareedaneka vichaar banaayaa. kothee aagese chauda़ee aur peechhese patalee thee, jise vidvaan log sheradaah athava naagaphanee kahate hain. yah kothee mukhy sthaanapar sthit thee aur bada़e achchhe paisonmen mil rahee thee, majaboot banee huee thee, lekin kuchh pareshaaniyonkee vajahasekotheeke maalik use bechakar chandeegadha़ jaana chaahate the. atah mere aur unake beechamen kotheeka sauda honekee baat chalee, mujhase kaee logonne kaha ki yah kothee naagaphanee hai. atah socha-vichaarakar lenaa. main apane janapadake ek prasiddh jyotishaachaaryake paas gaya aur unase poochha ki main vah kothee le loon. unhonne sunate hee kaha, ki vah kothee mat lena, tumhen pata hai ! kotheeke maalik maathurakee mutharee ban gayee hai. muthareese unaka aashay angootheese tha, vah kothee bhaagyavaan naheen hai. aise hee aur bhee ek do logonne mana kiya, kintu mere pitaajeekee anumati thee. atah mainne himmat karake kothee le lee aur kothee leneke saath hee mainne ek vishaal moorti bhagavaan shankarakee banavaayee tatha use kotheeke mukhy kamaremen sthaapit kiyaa. mainne bhagavaan shankarase praarthana kee ki prabhu isake naagaphanee honeka dosh aapako nivaaran karana hai aur aapakee poojaa-bhakti mujhe karanee hai. mera ya parivaaraka koee anisht naheen hona chaahiye. isee kaaran main aapako kotheeke mukhy kamaremen sthaapit kar raha hoon ki aapaanisht karanevaale naagaka phan dabaaye rahen. bhagavaan shankarakee kripaake phalasvaroop usee dauraan achaanak badarikaashramake shankaraachaaryajee padhaare. anaayaas hee unake aanese mujhe bahut prasannata huee aur main ek kshanako hataprabh bhee hua ki bhagavaan shankarake aasheervaadase hee shankaraachaaryajee mere nivaas sthaanapar svatah aaye hain. tabase aajatak bhagavaan shankarakee vah vishaal moorti meree kotheemen viraajamaan hai, main aur meree patnee nirantar praata:kaalase hee poojaa-paathamen lage rahate hain aur main ab bhee, jab bhee koee ulajhan hotee hai to 'oM namah shivaaya'kee do maala jap karata hoon. hajaaronmen lee gayee us kotheekee keemat aaj karoda़onmen hai tatha main aur mera parivaar usamen kaaphee sukhee hai. mere putronne bhee kaaphee unnati kee hai tatha main bhee apane kshetramen vaanchhit sthaanapar hoon. yah sab bhagavaan shankarakee kripa hai. mera maanana hai ki jo bhee avadharadaanee bhagavaan shankarakee pooja hridayase karate hain, unake kasht to kam hote hee hain, sukh samriddhi bhee sadaiv praapt hotee hai.[ shreehitesh kumaarajee sharmaa]

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वृन्दावन धाम अपार, जपे जा राधे राधे,
राधे सब वेदन को सार, जपे जा राधे राधे।
सांवरियो है सेठ, म्हारी राधा जी सेठानी
यह तो जाने दुनिया सारी है
आज बृज में होली रे रसिया।
होरी रे रसिया, बरजोरी रे रसिया॥
वृंदावन में हुकुम चले बरसाने वाली का,
कान्हा भी दीवाना है श्री श्यामा
बाँस की बाँसुरिया पे घणो इतरावे,
कोई सोना की जो होती, हीरा मोत्यां की जो
मेरे बांके बिहारी बड़े प्यारे लगते
कही नज़र न लगे इनको हमारी
दुनिया से मैं हारा तो आया तेरे दवार,
यहाँ से जो मैं हारा तो कहा जाऊंगा मैं
वृदावन जाने को जी चाहता है,
राधे राधे गाने को जी चाहता है,
सज धज कर जिस दिन मौत की शहजादी आएगी,
ना सोना काम आएगा, ना चांदी आएगी।
बोल कान्हा बोल गलत काम कैसे हो गया,
बिना शादी के तू राधे श्याम कैसे हो गया
मेरी करुणामयी सरकार पता नहीं क्या दे
क्या दे दे भई, क्या दे दे
बृज के नंदलाला राधा के सांवरिया,
सभी दुःख दूर हुए, जब तेरा नाम लिया।
दिल लूटके ले गया नी सहेलियो मेरा
मैं तक्दी रह गयी नी सहेलियो लगदा बड़ा
अपने दिल का दरवाजा हम खोल के सोते है
सपने में आ जाना मईया,ये बोल के सोते है
श्यामा प्यारी मेरे साथ हैं,
फिर डरने की क्या बात है
लाली की सुनके मैं आयी
कीरत मैया दे दे बधाई
तू राधे राधे गा ,
तोहे मिल जाएं सांवरियामिल जाएं
ये तो बतादो बरसानेवाली,मैं कैसे
तेरी कृपा से है यह जीवन है मेरा,कैसे
मैं तो तुम संग होरी खेलूंगी, मैं तो तुम
वा वा रे रासिया, वा वा रे छैला
मन चल वृंदावन धाम, रटेंगे राधे राधे
मिलेंगे कुंज बिहारी, ओढ़ के कांबल काली
राधा कट दी है गलिआं दे मोड़ आज मेरे
श्याम ने आना घनश्याम ने आना
सांवरे से मिलने का, सत्संग ही बहाना है,
चलो सत्संग में चलें, हमें हरी गुण गाना
जय राधे राधे, राधे राधे
जय राधे राधे, राधे राधे
गोवर्धन वासी सांवरे, गोवर्धन वासी
तुम बिन रह्यो न जाय, गोवर्धन वासी
तमन्ना यही है के उड के बरसाने आयुं मैं
आके बरसाने में तेरे दिल की हसरतो को
तीनो लोकन से न्यारी राधा रानी हमारी।
राधा रानी हमारी, राधा रानी हमारी॥
मीठी मीठी मेरे सांवरे की मुरली बाजे,
होकर श्याम की दीवानी राधा रानी नाचे
आप आए नहीं और सुबह हो मई
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