⮪ All भगवान की कृपा Experiences

भगवान कहते हैं - अपने ऐसे भक्त उद्धार मैं स्वयं करता हूँ

यद्यपि भगवत्कृपा साधनसाध्य नहीं है, 'यमेवैष वृणुते तेन लभ्यः' जिनपर सर्वेश्वर श्यामसुन्दर स्वयं कृपाकटाक्ष कर दें, वे ही उनके कृपाभाजन हो सकते हैं। फिर भी जो प्राणी अत्यन्त दैन्य भावसे उनके अनन्य शरण हो जाता है, वह उनकी कृपाका विशेष पात्र हो सकता है। इसीका संकेत सुदर्शनचक्रावतार श्रीनिम्बार्क भगवान्ने ‘कृपास्य दैन्यादियुजि प्रजायते 'का उपदेश प्रदानकर कृपाप्राप्तिका सुलभ साधन दैन्यभाव (दीनता) को बताया है।

वस्तुतः जिन भक्तोंमें दीनता, प्रपन्नता, सरलता, साधुता है, वे ही यथार्थ भक्त हैं। ऐसे भक्त सर्वदा विनम्रता धारण किये प्रतिक्षण अपने प्रेमास्पदको पानेके लिये उत्कण्ठित रहते हैं। और वे सतत अपने उपास्यदेवके चिन्तनमें संलग्न रहते हुए उन्हें प्राप्त भी कर लेते हैं। ऐसे स्वाराध्यनिष्ठ भक्तोंकी दिव्यावस्थाका निरूपण 'श्रीब्रह्मपुराण' में बड़ी ही कमनीयतासे किया है

कृष्णे रताः कृष्णमनुस्मरन्ति रात्रौ च कृष्णं पुनरुत्थिता ये ।
तेऽभिन्नदेहाः प्रविशन्ति कृष्णे हविर्यथा मन्त्रहुतं हुताशे॥

अर्थात् जो सदा ही श्यामसुन्दर श्रीकृष्णमें अपने मनको लगाये रहते हैं और प्रात:सायं प्रतिक्षण उन्हींका स्मरण करते हैं, वे दिव्यात्मा रसिक भक्त जिस प्रकार मन्त्रप्रयुक्त हवि अग्निस्वरूपताको प्राप्त कर लेती है, वैसे ही अपने प्राणधन जीवन सर्वेश्वरको पा लेते हैं। इसी कथनको वे अनन्तकृपापयोधि भगवान् श्रीकृष्ण 'श्रीमद्भगवद्गीता' में निर्देश करते हैं

तेषामहंसमुद्धर्तामृत्युसंसारसागरात् ।
भवामि नचिरात्पार्थ मय्यावेशितचेतसाम् ॥

हे प्रिय अर्जुन! मेरे प्रति अपने अन्तर्मनको जो भक्त अर्पित कर देता है अर्थात् अपने अनन्य चित्तसे मेरी निश्छल भक्ति करता है, उनका मैं बहुत शीघ्र ही इस मृत्युस्वरूप भवार्णवसे सहज ही समुद्धार कर देता हूँ । ऐसा करनेमें तत्पर हो जाना मेरा स्वाभाविक स्वरूप है। वस्तुतः उन अनन्तकोष सर्वेश्वर श्रीहरिकी कृपा ही स्पष्टतः परिलक्षित होती है।

अतः साधक भक्तको उपर्युक्त दैन्यभावसे संवलित होकर निरन्तर अपने उपास्यकी आराधनामें तत्पर रहना ही भगवत्कृपाप्राप्तिका सर्वोत्तम सर्वसुलभ साधन है।



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te'bhinnadehaah pravishanti krishne haviryatha mantrahutan hutaashe..

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bhavaami nachiraatpaarth mayyaaveshitachetasaam ..

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atah saadhak bhaktako uparyukt dainyabhaavase sanvalit hokar nirantar apane upaasyakee aaraadhanaamen tatpar rahana hee bhagavatkripaapraaptika sarvottam sarvasulabh saadhan hai.

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