⮪ All भगवान की कृपा Experiences

धन्यवाद है तुझे हे ईश्वर !

परमात्मा के साक्षात् दर्शन तो इन आँखोंसे कभी हमने नहीं किये हैं, लेकिन उनकी अनुभूति हमें जीवनमें बार-बार हुई है। वे हमारे माता-पिता, बन्धु सब कुछ हैं, हम निश्छल, निष्कपट जीवनयापन करें तो पग पगपर उनकी कृपा प्राप्त होती है।

बात अप्रैल १९८० ई० की है। गुजरातके वडोदरा (अब नर्मदा) जिलेमें वोरा नामक एक छोटा-सा गाँव है। गाँवमें दिनेशभाई नामके एक पण्डितजी रहते थे, जो छोटे बड़े कर्मकाण्ड किया करते थे। गाँवमें एक माध्यमिक विद्यालय है, उसमें मैं अध्यापक था। उस समय मैं युवा था। भगवान् श्रीकृष्णमें मेरी आस्था थी। दिनेशभाई स्वभावसे हँसोड़, मिलनसार और भले आदमी थे। आसपासके गाँवों में कोई पुरोहित नहीं था, इसलिये दिनेशभाई आस-पासके सभी गाँवोंमें शादी-ब्याह, सत्यनारायण कथा तथा अन्य कर्मकाण्ड करवाते थे। लोग उनका सम्मान करते थे। गाँव में एक रणछोड़जी (श्रीकृष्णजी) - का मन्दिर था, उसकी पूजा-आरती भी दिनेशभाई ही करते थे।

दिनेशभाईके परिवारमें पत्नी, पुत्र और बड़े भाई थे। बड़े भाईकी शादी नहीं हुई थी। वे भी यदाकदा थोड़ा बहुत कर्मकाण्ड किया करते थे। आमदनी नकद रुपयों में कम होती थी, लेकिन लोग अनाज, सब्जी खूब देते थे । जिससे उनका गुजारा ठीक तरहसे चलता था। उनके बड़े भाई जो बहुत कम काम करते थे, उन्हें सिगरेट पीनेकी बुरी आदत थी। दिनभर सिगरेट पिया करते थे । घरमें नकद पैसे नहीं होते थे तो घरमेंसे किलो-दो किलो अनाज ले जाते और दुकानदारसे बदलेमें सिगरेट खरीद लेते थे। बड़े भाईकी इस गैरजिम्मेदाराना हरकतसे कभी-कभी घरमें अनाजकी तंगी हो जाती थी।

अप्रैल १९८० में मैं घरमें अकेला था। धर्मपत्नी बच्चोंके साथ मायके में थी। एक दिन शामको सन्ध्या-आरती करके मैं घर के बाहर निकला तो देखा कि दिनेशभाई घरके पास बैठे हुए हैं। वे अपनी व्यथा किसीसे नहीं कहते थे, न किसीसे कुछ माँगते थे। उस वक्त अल्हड़ जवानीकी वजहसे मैं दान-पुण्यमें खास विश्वास नहीं करता था। लेकिन उस दिन न जाने कहाँसे मेरे मनमें दिनेशभाईको कुछ देनेका विचार आया तो मैंने कुछ रुपये दिनेशभाईको दिये। थोड़ी देर बाद दिनेशभाई घरकी ओर चल दिये।

दूसरे दिन दिनेशभाई मिले और उन्होंने जो कुछ कहा, उसे सुनकर मेरी आँखोंसे आँसू निकल आये। उन्होंने कहा- 'भैया! अगर आपने पैसे नहीं दिये होते तो कल हमारे परिवारको भूखा सोना पड़ता । घरमें अनाज और पैसा कुछ भी नहीं था। उन पैसोंसे चावल खरीदकर हमने खाना खाया।' मैंने सोचा- 'हे ईश्वर! तुझे धन्यवाद है। अपने बच्चोंको भूखा न सोना पड़े, इसलिये तूने मुझे माध्यम बनाया।'

वस्तुतः यह भगवान्की मुझपर कृपा ही थी कि उन्होंने मुझे अपना उपकरण बनाकर अमित आत्मसन्तोष प्रदान किया।
[ श्रीभगवान सिंहजी व परमार ]



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dhanyavaad hai tujhe he eeshvar !

paramaatma ke saakshaat darshan to in aankhonse kabhee hamane naheen kiye hain, lekin unakee anubhooti hamen jeevanamen baara-baar huee hai. ve hamaare maataa-pita, bandhu sab kuchh hain, ham nishchhal, nishkapat jeevanayaapan karen to pag pagapar unakee kripa praapt hotee hai.

baat aprail 1980 ee0 kee hai. gujaraatake vadodara (ab narmadaa) jilemen vora naamak ek chhotaa-sa gaanv hai. gaanvamen dineshabhaaee naamake ek panditajee rahate the, jo chhote bada़e karmakaand kiya karate the. gaanvamen ek maadhyamik vidyaalay hai, usamen main adhyaapak thaa. us samay main yuva thaa. bhagavaan shreekrishnamen meree aastha thee. dineshabhaaee svabhaavase hansoda़, milanasaar aur bhale aadamee the. aasapaasake gaanvon men koee purohit naheen tha, isaliye dineshabhaaee aasa-paasake sabhee gaanvonmen shaadee-byaah, satyanaaraayan katha tatha any karmakaand karavaate the. log unaka sammaan karate the. gaanv men ek ranachhoड़jee (shreekrishnajee) - ka mandir tha, usakee poojaa-aaratee bhee dineshabhaaee hee karate the.

dineshabhaaeeke parivaaramen patnee, putr aur bada़e bhaaee the. bada़e bhaaeekee shaadee naheen huee thee. ve bhee yadaakada thoड़a bahut karmakaand kiya karate the. aamadanee nakad rupayon men kam hotee thee, lekin log anaaj, sabjee khoob dete the . jisase unaka gujaara theek tarahase chalata thaa. unake bada़e bhaaee jo bahut kam kaam karate the, unhen sigaret peenekee buree aadat thee. dinabhar sigaret piya karate the . gharamen nakad paise naheen hote the to gharamense kilo-do kilo anaaj le jaate aur dukaanadaarase badalemen sigaret khareed lete the. bada़e bhaaeekee is gairajimmedaaraana harakatase kabhee-kabhee gharamen anaajakee tangee ho jaatee thee.

aprail 1980 men main gharamen akela thaa. dharmapatnee bachchonke saath maayake men thee. ek din shaamako sandhyaa-aaratee karake main ghar ke baahar nikala to dekha ki dineshabhaaee gharake paas baithe hue hain. ve apanee vyatha kiseese naheen kahate the, n kiseese kuchh maangate the. us vakt alhada़ javaaneekee vajahase main daana-punyamen khaas vishvaas naheen karata thaa. lekin us din n jaane kahaanse mere manamen dineshabhaaeeko kuchh deneka vichaar aaya to mainne kuchh rupaye dineshabhaaeeko diye. thoda़ee der baad dineshabhaaee gharakee or chal diye.

doosare din dineshabhaaee mile aur unhonne jo kuchh kaha, use sunakar meree aankhonse aansoo nikal aaye. unhonne kahaa- 'bhaiyaa! agar aapane paise naheen diye hote to kal hamaare parivaarako bhookha sona pada़ta . gharamen anaaj aur paisa kuchh bhee naheen thaa. un paisonse chaaval khareedakar hamane khaana khaayaa.' mainne sochaa- 'he eeshvara! tujhe dhanyavaad hai. apane bachchonko bhookha n sona pada़e, isaliye toone mujhe maadhyam banaayaa.'

vastutah yah bhagavaankee mujhapar kripa hee thee ki unhonne mujhe apana upakaran banaakar amit aatmasantosh pradaan kiyaa.
[ shreebhagavaan sinhajee v paramaar ]

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