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गिलहरीपर श्रीरामकृपा

कहा जाता है कि जब लंका विजयके लिये नल नील समुद्रपर सेतु बनानेमें लगे थे और अपार वानर भालुसमुदाय गिरिशिखर तथा वृक्षसमूह ला- लाकर उन्हें दे रहा था, एक गिलहरी भी मर्यादापुरुषोत्तमके कार्य में सहायता करने वृक्षसे उतरकर वहाँ आ गयी। नन्हीं-सी गिलहरी - उससे न वृक्षकी शाखा उठ सकती थी और न शिलाखण्ड। लेकिन उसने अपने उपयुक्त एक कार्य निकाल लिया। वह बार-बार समुद्रके जलमें स्नान करके रेतपर लोट-पोट होती और सेतुपर दौड़ जाती। वहाँ वह अपने शरीरमें लगी सारी रेत झाड़ देती और फिर स्नान करने दौड़ती। अविराम उसका यह कार्य चलता रहा।

गिलहरीकी चेष्टा बड़े कुतूहलसे, बड़ी एकाग्रतासे मर्यादापुरुषोत्तम देख रहे थे। उस क्षुद्र जीवकी ओर दूसरे किसीका ध्यान नहीं था। श्रीराघवेन्द्रने हनुमान्जीको संकेतसे पास बुलाकर उस गिलहरीको उठा लानेका आदेश दिया। हनुमान्जीने गिलहरीको पकड़कर उठा लिया और लाकर रघुनाथजीके किसलय-कोमल बन्धूकारुण हाथपर रख दिया उसे। प्रभुने उस नन्हें प्राणी से पूछा- 'तू सेतुपर क्या कर रही थी ? तुझे भय नहीं लगता कि कपियों या रीछोंके पैरके नीचे आ सकती है या कोई वृक्ष अथवा शिलाखण्ड तुझे कुचल दे सकता है ?"

गिलहरीने हर्षसे रोम फुलाये, पूँछ उठाकर श्रीराघवके करपर गिरायी और बोली-'मृत्यु दो बार तो आती नहीं, आपके सेवकोंके चरणोंके नीचे मेरी मृत्यु हो जाय, यह तो मेरा सौभाग्य होगा। सेतुमें बहुत बड़े-बड़े शिलाखण्ड तथा वृक्ष लगाये जा रहे हैं। बहुत श्रम करनेपर भी नल नील सेतुको पूरा समतल नहीं कर पा रहे हैं। ऊँची नीची विषम भूमिपर चलनेमें आपके कोमल चरणोंको बड़ा कष्ट होगा, यह सोचकर पुलके छोटे-छोटे गड्ढे रेतसे भर देनेका प्रयत्न कर रही थी।'

मर्यादापुरुषोत्तम प्रसन्न हो गये। उन्होंने वाम हस्तपर गिलहरीको बैठा रखा था। उस क्षुद्र जीवको वह आसन दे रखा था, जिसकी कल्पना त्रिभुवनमें कोई कर ही नहीं सकता। अब दाहिने हाथकी तीन अँगुलियोंसे उन्होंने गिलहरीकी पीठ थपथपा दी । कहते हैं कि गिलहरीकी पीठपर श्रीरामकी अँगुलियोंके चिह्नस्वरूप तीन श्वेत रेखाएँ बन गयीं और तभीसे सभी गिलहरियोंको वे रेखाएँ भूषित करती हैं।

[ संकलित ]



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gilahareepar shreeraamakripaa

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gilahareene harshase rom phulaaye, poonchh uthaakar shreeraaghavake karapar giraayee aur bolee-'mrityu do baar to aatee naheen, aapake sevakonke charanonke neeche meree mrityu ho jaay, yah to mera saubhaagy hogaa. setumen bahut bada़e-bada़e shilaakhand tatha vriksh lagaaye ja rahe hain. bahut shram karanepar bhee nal neel setuko poora samatal naheen kar pa rahe hain. oonchee neechee visham bhoomipar chalanemen aapake komal charanonko bada़a kasht hoga, yah sochakar pulake chhote-chhote gaddhe retase bhar deneka prayatn kar rahee thee.'

maryaadaapurushottam prasann ho gaye. unhonne vaam hastapar gilahareeko baitha rakha thaa. us kshudr jeevako vah aasan de rakha tha, jisakee kalpana tribhuvanamen koee kar hee naheen sakataa. ab daahine haathakee teen anguliyonse unhonne gilahareekee peeth thapathapa dee . kahate hain ki gilahareekee peethapar shreeraamakee anguliyonke chihnasvaroop teen shvet rekhaaen ban gayeen aur tabheese sabhee gilahariyonko ve rekhaaen bhooshit karatee hain.

[ sankalit ]

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