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अमोघ ओषधि 'नारायणकवच'

तीन साल पहलेकी बात है। मेरे घुटनेमें अचानक भयानक दर्द होने लगा। मैंने साधारण रोग समझकर ग्रामीण जड़ी-बूटियोंसे प्राथमिक उपचार किया, परंतु दर्द कुछ भी कम नहीं हुआ। वरं उत्तरोत्तर बढ़ने लगा। यहाँतक कि चलने-फिरनेमें लाठीका सहारा लेनेपर भी कठिनता होने लगी। इसके बाद मेँ शहरी डॉक्टरोंकी शरणमें गया। बहुत-से डॉक्टरोंने रोगकी परीक्षा की। किसीने कालान्तरमें कैन्सरकी सम्भावना बतायी तो किसीने हड्डी में टी०बी० । किसीने एक-डेढ़ साल लगातार इंजेक्शन दिलानेकी सलाह दी तो किसीने पाँव कटवानेतककी राय दी। पचास-साठ इंजेक्शन भी लगातार लगाये गये। परंतु दर्द तो कम हुआ ही नहीं, नये-नये रोगोंने ताण्डव करना शुरू किया। शायद इंजेक्शनकी प्रतिक्रिया थी। कुछ भी हो, अन्ततोगत्वा मेँ हताश होकर पड़ा रहने लगा।एक दिन मेरे गुरु, जिनसे मैंने व्याकरण आदि पढ़े थे, आये और उन्होंने कहा कि "तुम अब इन सब डॉक्टरी प्रपंचोंको छोड़कर श्रीमद्भागवतके षष्ठस्कन्धस्थ 'नारायणकवच'का पाठ करो। भगवान्‌की कृपासे तुम्हें लाभ होगा" - इस उपदेशके अनुसार मैंने 'नारायणकवच' का पाठ शुरू किया। यथाशक्ति स्नान-सन्ध्याके बाद कवचकी एक आवृत्ति मैं प्रतिदिन करने लगा। क्रमशः रोग भी क्षीण होने लगा। तबसे प्रायः छः महीने बीत गये। आज भी मेरा पाठका नियम चल रहा है और मैं पूर्ण स्वस्थ हूँ। दर्द किस स्थानमें था, इसका भी पता नहीं है। इसीसे मैं 'कल्याण' के द्वारा सभी भाइयोंसे हाथ जोड़कर प्रार्थना करता हूँ कि वे भी आवश्यक होनेपर इस सर्वभय व्याधिनाशक 'नारायणकवच' का पाठ करें और परम दयालु परमात्मा नारायणके शरण होकर सारी आधि व्याधिसे मुक्त हों

[ श्रीभवनाथजी ढकाल ]



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amogh oshadhi 'naaraayanakavacha'

teen saal pahalekee baat hai. mere ghutanemen achaanak bhayaanak dard hone lagaa. mainne saadhaaran rog samajhakar graameen jada़ee-bootiyonse praathamik upachaar kiya, parantu dard kuchh bhee kam naheen huaa. varan uttarottar badha़ne lagaa. yahaantak ki chalane-phiranemen laatheeka sahaara lenepar bhee kathinata hone lagee. isake baad men shaharee daॉktaronkee sharanamen gayaa. bahuta-se daॉktaronne rogakee pareeksha kee. kiseene kaalaantaramen kainsarakee sambhaavana bataayee to kiseene haddee men tee0bee0 . kiseene eka-dedha़ saal lagaataar injekshan dilaanekee salaah dee to kiseene paanv katavaanetakakee raay dee. pachaasa-saath injekshan bhee lagaataar lagaaye gaye. parantu dard to kam hua hee naheen, naye-naye rogonne taandav karana shuroo kiyaa. shaayad injekshanakee pratikriya thee. kuchh bhee ho, antatogatva men hataash hokar pada़a rahane lagaa.ek din mere guru, jinase mainne vyaakaran aadi padha़e the, aaye aur unhonne kaha ki "tum ab in sab daॉktaree prapanchonko chhoda़kar shreemadbhaagavatake shashthaskandhasth 'naaraayanakavacha'ka paath karo. bhagavaan‌kee kripaase tumhen laabh hogaa" - is upadeshake anusaar mainne 'naaraayanakavacha' ka paath shuroo kiyaa. yathaashakti snaana-sandhyaake baad kavachakee ek aavritti main pratidin karane lagaa. kramashah rog bhee ksheen hone lagaa. tabase praayah chhah maheene beet gaye. aaj bhee mera paathaka niyam chal raha hai aur main poorn svasth hoon. dard kis sthaanamen tha, isaka bhee pata naheen hai. iseese main 'kalyaana' ke dvaara sabhee bhaaiyonse haath joda़kar praarthana karata hoon ki ve bhee aavashyak honepar is sarvabhay vyaadhinaashak 'naaraayanakavacha' ka paath karen aur param dayaalu paramaatma naaraayanake sharan hokar saaree aadhi vyaadhise mukt hon

[ shreebhavanaathajee dhakaal ]

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