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सुतीक्ष्ण मुनि की मार्मिक कथा
सुतीक्ष्ण मुनि की अधबुत कहानी - Full Story of सुतीक्ष्ण मुनि (हिन्दी)

[भक्त चरित्र -भक्त कथा/कहानी - Full Story] [सुतीक्ष्ण मुनि]- भक्तमाल


राम सदा सेवक रूचि राखी वेद पुरान संत सब साखी ॥

महर्षि अगस्त्यके शिष्य सुतीक्ष्णजी जब विद्याध्ययन कर चुके, तब गुरुदेवसे उन्होंने दक्षिणाके लिये प्रार्थना की। महर्षिने कहा- 'तुमने जो मेरी सेवा की, वही बहुत बड़ी दक्षिणा है। मैं तुमसे प्रसन्न हूँ।' किंतु सुतीक्ष्णजीका संतोष गुरुदेवको कुछ सेवा किये बिना नहीं हो सकता था। वे बार-बार आग्रह करने लगे। उनका हठ देखकर सर्वज्ञ महर्षिने उन्हें आज्ञा दी- 'दक्षिणा में तुम मुझे भगवान्के दर्शन कराओ।' गुरुको आज्ञा स्वीकार करके सुतीक्ष्णजी उनके आश्रमसे दूर उत्तर ओर दण्डकारण्यके प्रारम्भमें ही आश्रम बनाकर रहने लगे। उन्होंने गुरुदेवसे सुना था कि भगवान् श्रीराम अयोध्या में अवतार लेकर इसी मार्गसे रावणका वध करने लंका जायेंगे। अतः वे वहाँ तपस्या तथा भगवान्‌का भजन करते हुए उनके पधारनेकी प्रतीक्षा करने लगे। जब श्रीरामने पिताकी आज्ञासे वनवास स्वीकार किया और चित्रकूट से विराधको भूमिमें गाड़कर सहति देते शरभंगऋषिके आश्रम से आगे बढ़े, तव सुतीक्ष्णजीको उनके आनेका समाचार मिला। समाचार पाते ही वे उसी ओर दौड़ पड़े। उनका चित्त भाव निमग्न हो गया। वे सोच रहे थे

हे विधि दीनबंधु रघुराया मोसे सठ पर करिहहिं दाया ।। सहित अनुज मोहि राम गोसाई मिलिहहिं निज सेवकको नाई ।। मोरे जिये भरोस दृढ नाहीं। भगति बिरति न ग्यान मन माहीं।। नहिं सतसंग जोग जप जागा नहिं दृढ चरन कमल अनुरागा एक यानि करुनानिधान की सो प्रिय जाकें गति न आन की ।।

होइहैं सुफल आजु मम लोचन देखि बदन पंकज भव मोचन ॥ प्रेमकी इतनी बाढ़ हृदयमें आयी कि मुनि अपनेको भूल ही गये। उन्हें यह भी स्मरण नहीं रहा कि वे कौन हैं, कहाँ हैं, क्या कर रहे हैं और कहाँ जा रहे हैं। कभी वे कुछ दूर आगे चलते, कभी खड़े होकर श्रीराम, रघुनाथ, कौसल्यानन्दन' आदि दिव्य नाम लेकर कोर्तन| करते हुए नृत्य करने लगते और कभी पीछे लौट पड़ते। श्रीराम, लक्ष्मण और जानकीजी वृक्षकी आड़में छिपकर | मुनिको यह अद्भुत प्रेम-विभोर दशा देख रहे थे। नृत्य करते-करते सुतीक्ष्णजीके हृदयमें श्रीरामको दिव्य झाँकी हुई। वे मार्ग में ही बैठकर ध्यानस्थ हो गये। आनन्दके मारे उनका एक-एक रोम खिल उठा। उसी समय श्रीराम उनके पास आ गये। उन्होंने मुनिको पुकारा, हिलाया, अनेक प्रकारसे जगानेका प्रयत्न किया; किंतु वे तो समाधिदशामें थे। अन्तमें श्रीरामने जब उनके हृदयसे उनका आराध्य द्विभुज रूप दूर करके वहाँ अपना चतुर्भुजरूप प्रकट किया, तब मुनिने व्याकुल होकर नेत्र खोल दिये और अपने सम्मुख ही श्रीजानकीजी तथा लक्ष्मणजीसहित श्रीरामको देखकर वे प्रभुके चरणोंमें गिर पड़े। श्रीरघुनाथजीने दोनों हाथोंसे उठाकर उन्हें हृदयसे लगा लिया।

सुतीक्ष्णजी बड़े आदरसे श्रीरामको अपने आश्रमपर ले आये। वहाँ उन्होंने प्रभुकी पूजा की, कन्द-मूल फलसे उनका सत्कार किया और उनकी स्तुति की। श्रीरामने उन्हें वरदान दिया-

अबिरल भगति ग्यान बिग्याना होहु सकल गुन ग्यान निधाना।। कुछ दिन श्रीराम मुनिसे पूजित-सत्कृत होकर उनके आश्रममें रहे। वहाँसे जब वे महर्षि अगस्त्यके पास जाने लगे, तब मुनिने साथ चलनेकी अनुमति माँगी। उनका तात्पर्य समझकर प्रभुने हँसकर आज्ञा दे दी। जब प्रभु अगस्त्याश्रमके पास पहुँचे, तब आगे जाकर दण्डवत् प्रणाम करके सुतीक्ष्णजीने अपने गुरुदेवसे निवेदन किया नाथ कोसलाधीस कुमारा आए मिलन जगत आधारा ॥

राम अनुज समेत वैदेही निसि दिन देव जपत हहु जेही गुरुदेवकी गुरुदक्षिणाके रूपमें इस प्रकार उनके द्वारपर सर्वेश्वर, सर्वाधार श्रीरामको लाकर खड़ा कर देनेवाले सुतीक्ष्णमुनि धन्य है और धन्य है उनकी भक्तिका प्रताप!



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raam sada sevak roochi raakhee ved puraan sant sab saakhee ..

maharshi agastyake shishy suteekshnajee jab vidyaadhyayan kar chuke, tab gurudevase unhonne dakshinaake liye praarthana kee. maharshine kahaa- 'tumane jo meree seva kee, vahee bahut baड़ee dakshina hai. main tumase prasann hoon.' kintu suteekshnajeeka santosh gurudevako kuchh seva kiye bina naheen ho sakata thaa. ve baara-baar aagrah karane lage. unaka hath dekhakar sarvajn maharshine unhen aajna dee- 'dakshina men tum mujhe bhagavaanke darshan karaao.' guruko aajna sveekaar karake suteekshnajee unake aashramase door uttar or dandakaaranyake praarambhamen hee aashram banaakar rahane lage. unhonne gurudevase suna tha ki bhagavaan shreeraam ayodhya men avataar lekar isee maargase raavanaka vadh karane lanka jaayenge. atah ve vahaan tapasya tatha bhagavaan‌ka bhajan karate hue unake padhaaranekee prateeksha karane lage. jab shreeraamane pitaakee aajnaase vanavaas sveekaar kiya aur chitrakoot se viraadhako bhoomimen gaada़kar sahati dete sharabhangarishike aashram se aage badha़e, tav suteekshnajeeko unake aaneka samaachaar milaa. samaachaar paate hee ve usee or dauda़ pada़e. unaka chitt bhaav nimagn ho gayaa. ve soch rahe the

he vidhi deenabandhu raghuraaya mose sath par karihahin daaya .. sahit anuj mohi raam gosaaee milihahin nij sevakako naaee .. more jiye bharos dridh naaheen. bhagati birati n gyaan man maaheen.. nahin satasang jog jap jaaga nahin dridh charan kamal anuraaga ek yaani karunaanidhaan kee so priy jaaken gati n aan kee ..

hoihain suphal aaju mam lochan dekhi badan pankaj bhav mochan .. premakee itanee baadha़ hridayamen aayee ki muni apaneko bhool hee gaye. unhen yah bhee smaran naheen raha ki ve kaun hain, kahaan hain, kya kar rahe hain aur kahaan ja rahe hain. kabhee ve kuchh door aage chalate, kabhee khada़e hokar shreeraam, raghunaath, kausalyaanandana' aadi divy naam lekar kortana| karate hue nrity karane lagate aur kabhee peechhe laut pada़te. shreeraam, lakshman aur jaanakeejee vrikshakee aada़men chhipakar | muniko yah adbhut prema-vibhor dasha dekh rahe the. nrity karate-karate suteekshnajeeke hridayamen shreeraamako divy jhaankee huee. ve maarg men hee baithakar dhyaanasth ho gaye. aanandake maare unaka eka-ek rom khil uthaa. usee samay shreeraam unake paas a gaye. unhonne muniko pukaara, hilaaya, anek prakaarase jagaaneka prayatn kiyaa; kintu ve to samaadhidashaamen the. antamen shreeraamane jab unake hridayase unaka aaraadhy dvibhuj roop door karake vahaan apana chaturbhujaroop prakat kiya, tab munine vyaakul hokar netr khol diye aur apane sammukh hee shreejaanakeejee tatha lakshmanajeesahit shreeraamako dekhakar ve prabhuke charanonmen gir pada़e. shreeraghunaathajeene donon haathonse uthaakar unhen hridayase laga liyaa.

suteekshnajee bada़e aadarase shreeraamako apane aashramapar le aaye. vahaan unhonne prabhukee pooja kee, kanda-mool phalase unaka satkaar kiya aur unakee stuti kee. shreeraamane unhen varadaan diyaa-

abiral bhagati gyaan bigyaana hohu sakal gun gyaan nidhaanaa.. kuchh din shreeraam munise poojita-satkrit hokar unake aashramamen rahe. vahaanse jab ve maharshi agastyake paas jaane lage, tab munine saath chalanekee anumati maangee. unaka taatpary samajhakar prabhune hansakar aajna de dee. jab prabhu agastyaashramake paas pahunche, tab aage jaakar dandavat pranaam karake suteekshnajeene apane gurudevase nivedan kiya naath kosalaadhees kumaara aae milan jagat aadhaara ..

raam anuj samet vaidehee nisi din dev japat hahu jehee gurudevakee gurudakshinaake roopamen is prakaar unake dvaarapar sarveshvar, sarvaadhaar shreeraamako laakar khada़a kar denevaale suteekshnamuni dhany hai aur dhany hai unakee bhaktika prataapa!

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