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श्रीविट्ठलविपुलदेवजी की मार्मिक कथा
श्रीविट्ठलविपुलदेवजी की अधबुत कहानी - Full Story of श्रीविट्ठलविपुलदेवजी (हिन्दी)

[भक्त चरित्र -भक्त कथा/कहानी - Full Story] [श्रीविट्ठलविपुलदेवजी]- भक्तमाल


महात्मा विट्ठलविपुलदेव बड़े भगवद्भक्त और रसिक थे। उनके नेत्र, कान और अधर आदि भगवान्‌की रूप रस-माधुरीसे सदा संप्लावित रहते थे। वे रसिकराज स्वामी हरिदासजीके शिष्य थे, समकालीन थे। उनकी अनन्य गुरुनिष्ठा थी। स्वामीजीके वे विशेष कृपापात्र थे।

विट्ठलविपुलदेव हरिदासजीके ममेरे भाई थे। उनसे अवस्थामें कई वर्ष बड़े थे। ये कभी-कभी हरिदासजीके साथ उनकी बाल्यावस्थाके समय भगवल्लीलानुकरणमें सम्मिलित हो जाया करते थे, उनके संस्कार पहलेसे ही पवित्र और शुद्ध थे। तीस वर्षकी अवस्थामें विट्ठलविपुलदेव वृन्दावन गये, उन्हें कुञ्ज-कुञ्जमें भगवान् श्रीकृष्णकी लीलामाधुरीकी सरस अनुभूति होने लगी। साथ-ही साथ स्वामी हरिदासके सम्पर्क और सत्सङ्गका भी उनपर विशेष प्रभाव पड़ा। अपने गुरु आशुधीरजी महाराजकी आज्ञासे हरिदासजीने उन्हें दीक्षित कर लिया। वे उनकी कृपासे वृन्दावनके मुख्य रसिकोंमें गिने जाने लगे। वे परमोत्कृष्ट त्यागी और सुदृढ़ रसोपासक थे।

दीक्षित होनेके बाद उन्होंने वृन्दावनको ही अपना स्थायी निवासस्थान चुना। सं0 1631 में स्वामी हरिदासके नित्यधाम पधारनेपर संतों और महन्तोंने उन्हें उनकी गद्दी सौंपी, बड़े आग्रह और अनुनय-विनयके बाद उन्होंने उत्तराधिकारी होना स्वीकार किया। गुरुविरहके दुःखसे कातर होकर उन्होंने आँखोंमें पट्टी बाँध ली थी। जिन नेत्रोंने रसिकराजेश्वर हरिदासके दिव्य अङ्गोंका माधुर्य पान किया था, उनसे संसारका दर्शन करना उनके लिये
सर्वथा असह्य था।

वे बड़े भावुक और सहृदय थे। एक बार वृन्दावनकी संत मण्डलीने रासलीलाका आयोजन किया। सर्वसम्मति से महात्मा विट्ठलविपुलदेवको बुलानेका निश्चय किया गया। रसिकप्रवर व्यासजीके विशेष आग्रहपर वे रास-दर्शनके लिये उपस्थित हुए। उनके नेत्रोंसे अश्रुओंकी धारा बह रही थी, शरीर वशमें नहीं था, रास आरम्भ हुआ। प्रिया प्रियतमकी अद्भुत पदनृपुरध्वनिपर उनका मन नाच उठा। दिव्य दर्शनके लिये उनके हृदयमें तीव्र लालसा जाग उठी। विलम्ब असह्य हो गया। भगवान् से भक्तकी विरह पीड़ा न सही गयी। उनकी आह्लादिनी शक्ति रसमयी रासस्थित श्रीरासेश्वरीने कहा, 'मेरे दर्शन करो! मैं राधा हूँ।' नित्यकेलिके साहचर्य रसके स्मरणमात्रने भावावेशमें उन्हें दर्शनके लिये विवश किया। उन्होंने पट्टी हटा दी। नेत्रोंने रासरसिक-शेखर नन्दनन्दन और राधारानीका रूप | देखा। वे खुले तो खुले ही रह गये, पट्टी अपने स्थानपर पड़ी रह गयी। विट्ठलविपुलदेवने रासस्थ भगवान् और उनकी भगवत्ता स्वरूप, साक्षात् राधारानीके दर्शन किये। उनके अधरोंपर स्फुरण था- 'हे रासेश्वरी! तुम करुणा करके मुझे अपनी नित्य लीलामें स्थान दो। अब मेरे प्राण संसारमें नहीं रहना चाहते हैं।' बस वे नित्यलीला में सदाके लिये सम्मिलित हो गये। उनकी रसोपासनाने पूर्ण सिद्धि अपनायी। वे भगवान्के रासरसके सच्चे अधिकारी थे, रसिक संत और विरक्त महात्मा थे। भगवान्ने उन्हें अपना लिया, कितना बड़ा सौभाग्य था उनका !



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[Bhakt Charitra - Bhakt Katha/Kahani - Full Story] [shreevitthalavipuladevajee]- Bhaktmaal


mahaatma vitthalavipuladev bada़e bhagavadbhakt aur rasik the. unake netr, kaan aur adhar aadi bhagavaan‌kee roop rasa-maadhureese sada sanplaavit rahate the. ve rasikaraaj svaamee haridaasajeeke shishy the, samakaaleen the. unakee anany gurunishtha thee. svaameejeeke ve vishesh kripaapaatr the.

vitthalavipuladev haridaasajeeke mamere bhaaee the. unase avasthaamen kaee varsh bada़e the. ye kabhee-kabhee haridaasajeeke saath unakee baalyaavasthaake samay bhagavalleelaanukaranamen sammilit ho jaaya karate the, unake sanskaar pahalese hee pavitr aur shuddh the. tees varshakee avasthaamen vitthalavipuladev vrindaavan gaye, unhen kunja-kunjamen bhagavaan shreekrishnakee leelaamaadhureekee saras anubhooti hone lagee. saatha-hee saath svaamee haridaasake sampark aur satsangaka bhee unapar vishesh prabhaav pada़aa. apane guru aashudheerajee mahaaraajakee aajnaase haridaasajeene unhen deekshit kar liyaa. ve unakee kripaase vrindaavanake mukhy rasikonmen gine jaane lage. ve paramotkrisht tyaagee aur sudridha़ rasopaasak the.

deekshit honeke baad unhonne vrindaavanako hee apana sthaayee nivaasasthaan chunaa. san0 1631 men svaamee haridaasake nityadhaam padhaaranepar santon aur mahantonne unhen unakee gaddee saunpee, bada़e aagrah aur anunaya-vinayake baad unhonne uttaraadhikaaree hona sveekaar kiyaa. guruvirahake duhkhase kaatar hokar unhonne aankhonmen pattee baandh lee thee. jin netronne rasikaraajeshvar haridaasake divy angonka maadhury paan kiya tha, unase sansaaraka darshan karana unake liye
sarvatha asahy thaa.

ve bada़e bhaavuk aur sahriday the. ek baar vrindaavanakee sant mandaleene raasaleelaaka aayojan kiyaa. sarvasammati se mahaatma vitthalavipuladevako bulaaneka nishchay kiya gayaa. rasikapravar vyaasajeeke vishesh aagrahapar ve raasa-darshanake liye upasthit hue. unake netronse ashruonkee dhaara bah rahee thee, shareer vashamen naheen tha, raas aarambh huaa. priya priyatamakee adbhut padanripuradhvanipar unaka man naach uthaa. divy darshanake liye unake hridayamen teevr laalasa jaag uthee. vilamb asahy ho gayaa. bhagavaan se bhaktakee virah peeda़a n sahee gayee. unakee aahlaadinee shakti rasamayee raasasthit shreeraaseshvareene kaha, 'mere darshan karo! main raadha hoon.' nityakelike saahachary rasake smaranamaatrane bhaavaaveshamen unhen darshanake liye vivash kiyaa. unhonne pattee hata dee. netronne raasarasika-shekhar nandanandan aur raadhaaraaneeka roop | dekhaa. ve khule to khule hee rah gaye, pattee apane sthaanapar pada़ee rah gayee. vitthalavipuladevane raasasth bhagavaan aur unakee bhagavatta svaroop, saakshaat raadhaaraaneeke darshan kiye. unake adharonpar sphuran thaa- 'he raaseshvaree! tum karuna karake mujhe apanee nity leelaamen sthaan do. ab mere praan sansaaramen naheen rahana chaahate hain.' bas ve nityaleela men sadaake liye sammilit ho gaye. unakee rasopaasanaane poorn siddhi apanaayee. ve bhagavaanke raasarasake sachche adhikaaree the, rasik sant aur virakt mahaatma the. bhagavaanne unhen apana liya, kitana bada़a saubhaagy tha unaka !

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