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भगवान् शेष की मार्मिक कथा
भगवान् शेष की अधबुत कहानी - Full Story of भगवान् शेष (हिन्दी)

[भक्त चरित्र -भक्त कथा/कहानी - Full Story] [भगवान् शेष]- भक्तमाल


शास्त्रोंमें भगवान्के पञ्चविध स्वरूप माने गये हैं। इनमें एक रूप 'व्यूह' के नामसे परिचित है। यह रूप सृष्टि, पालन और संहार करनेके लिये, संसारीजनोंका संरक्षण करनेके लिये और उपासकोंपर अनुग्रह करनेके लिये ग्रहण किया जाता है। वासुदेव, संकर्षण, प्रद्युम्न और अनिरुद्ध-ये चार व्यूह हैं। वास्तवमें संकर्षणादि तीन ही व्यूह हैं। वासुदेव तो व्यूहमण्डलमें आकर व्यूहरूपमें केवल गिने जाते हैं। इनमेंसे संकर्षण जीवतत्त्वके अधिष्ठाता हैं। इनमें ज्ञान और बल- इन दो गुणोंकी प्रधानता है। यही 'शेष' अथवा 'अनन्त' के रूपमें पातालमूलमें रहते हैं और प्रलयकालमें इन्हींके मुखमेंसे संवर्तक अग्नि प्रकट होकर सारे जगत्को भस्म कर देती । ये ही भगवान् आदिपुरुष नारायणके पर्यङ्क रूपमें क्षीरसागरमें रहते हैं। ये अपने सहस्र मुखोंके द्वारा निरन्तर भगवान्का गुणानुवाद करते रहते हैं और अनादि कालसे यों करते रहनेपर भी अघाते या ऊबते नहीं। ये भक्तोंके परम सहायक हैं और जीवकोभगवान्‌की शरणमें ले जाते हैं। इनकी सारे देवता वन्दना करते हैं और इनके बल, पराक्रम, प्रभाव और | स्वरूपको जानने अथवा वर्णन करनेकी सामर्थ्य किसी में भी नहीं है। गन्धर्व, अप्सरा, सिद्ध, किन्नर, नाग आदि कोई भी इनके गुणोंकी थाह नहीं लगा सकते -इसीसे इन्हें 'अनन्त' कहते हैं। ये पञ्चविध ज्योतिः सिद्धान्तके प्रवर्तक माने गये हैं। ये सारे विश्वके आधारभूत भगवान् नारायणके श्रीविग्रहको धारण करनेके कारण सब लोकोंमें पूज्य और धन्यतम कहे जाते हैं। ये सारे ब्रह्माण्डको अपने मस्तकपर धारण किये रहते हैं। ये भगवान् के निवास - शय्या, आसन, पादुका, वस्त्र, पादपीठ, तकिया तथा छत्रके रूपमें शेष अर्थात् अङ्गीभूत होनेके कारण 'शेष' कहलाते हैं। त्रेतायुगमें श्रीलक्ष्मणजीके रूपमें और द्वापरमें श्रीबलरामजीके रूपमें ये ही अवतीर्ण होकर भगवान्‌की लीला में सहायक बनते हैं। ये भगवान्‌के नित्य परिकर, नित्यमुक्त | एवं अखण्ड ज्ञानसम्पन्न माने जाते हैं।



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shaastronmen bhagavaanke panchavidh svaroop maane gaye hain. inamen ek roop 'vyooha' ke naamase parichit hai. yah roop srishti, paalan aur sanhaar karaneke liye, sansaareejanonka sanrakshan karaneke liye aur upaasakonpar anugrah karaneke liye grahan kiya jaata hai. vaasudev, sankarshan, pradyumn aur aniruddha-ye chaar vyooh hain. vaastavamen sankarshanaadi teen hee vyooh hain. vaasudev to vyoohamandalamen aakar vyooharoopamen keval gine jaate hain. inamense sankarshan jeevatattvake adhishthaata hain. inamen jnaan aur bala- in do gunonkee pradhaanata hai. yahee 'shesha' athava 'ananta' ke roopamen paataalamoolamen rahate hain aur pralayakaalamen inheenke mukhamense sanvartak agni prakat hokar saare jagatko bhasm kar detee . ye hee bhagavaan aadipurush naaraayanake paryank roopamen ksheerasaagaramen rahate hain. ye apane sahasr mukhonke dvaara nirantar bhagavaanka gunaanuvaad karate rahate hain aur anaadi kaalase yon karate rahanepar bhee aghaate ya oobate naheen. ye bhaktonke param sahaayak hain aur jeevakobhagavaan‌kee sharanamen le jaate hain. inakee saare devata vandana karate hain aur inake bal, paraakram, prabhaav aur | svaroopako jaanane athava varnan karanekee saamarthy kisee men bhee naheen hai. gandharv, apsara, siddh, kinnar, naag aadi koee bhee inake gunonkee thaah naheen laga sakate -iseese inhen 'ananta' kahate hain. ye panchavidh jyotih siddhaantake pravartak maane gaye hain. ye saare vishvake aadhaarabhoot bhagavaan naaraayanake shreevigrahako dhaaran karaneke kaaran sab lokonmen poojy aur dhanyatam kahe jaate hain. ye saare brahmaandako apane mastakapar dhaaran kiye rahate hain. ye bhagavaan ke nivaas - shayya, aasan, paaduka, vastr, paadapeeth, takiya tatha chhatrake roopamen shesh arthaat angeebhoot honeke kaaran 'shesha' kahalaate hain. tretaayugamen shreelakshmanajeeke roopamen aur dvaaparamen shreebalaraamajeeke roopamen ye hee avateern hokar bhagavaan‌kee leela men sahaayak banate hain. ye bhagavaan‌ke nity parikar, nityamukt | evan akhand jnaanasampann maane jaate hain.

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