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भक्त भलराजजी की मार्मिक कथा
भक्त भलराजजी की अधबुत कहानी - Full Story of भक्त भलराजजी (हिन्दी)

[भक्त चरित्र -भक्त कथा/कहानी - Full Story] [भक्त भलराजजी]- भक्तमाल


भलराजजी राजस्थान (मारवाड़) के बिलाड़ा परगनेके भावी ग्राममें वि0 सं0 1595 के लगभग जन्मे थे। बाल्यावस्थासे ही इनको ईश्वरभक्तिका आनन्द आ गया, जिसके फलस्वरूप भलराजजी मारवाड़के तत्कालीन भक्त कूबाजी कुम्हारके पक्के मित्र हो गये। जैसा कि प्रसिद्ध है - 'झींथड़ामें कूबौ बसे, भावीमें भलराज ।'

भलराजजी संत-महात्माओंका अतिथि सत्कार बड़े प्रेमसे करते थे। ऐसी प्रसिद्धि है कि एक बार स्वयंभगवान् साधुका वेष धारणकर बहुत-से साधु-महात्माओंके साथ भलराजजीके घर पधारे। भलराजजी उन महात्माओंको अपनी 'हथाई' पर बड़े प्रेमपूर्वक बिठाकर घरमें गये और वे उनके लिये भोजनकी व्यवस्था करने लगे। किंतु घरमें अनाज नहीं था और न पासमें पैसा (रुपये) ही। ऐसी विकट परिस्थितिमें अपना कर्तव्य निभाते हुए भलराजजीकी धर्मपत्नीने अपने पैरोंकी कड़ियाँ (चाँदीका गहना) निकालकर उन्हें दे दीं। भक्त भलराजजीने अपनीधर्मपत्नीकी कड़ियाँ बेचकर उनसे प्राप्त दामोंमें अनाज लाकर घरपर आये हुए संतोंको भोजन कराया। रातभर भलराजजीके यहाँ साधुओंकी सङ्गति होती रही और वापस जाते समय एक बूढ़े साधुने अपनी झोली में से मुट्ठीभर अनाज भलराजजीको दिया और कहा कि 'इस अनाजको अपने घरकी 'कोठी' में डाल दो और ऊपरसे ढक्कन दे दो। तुम्हारे घरमें अनाजकी कभी कमी नहीं आयेगी। इसके अतिरिक्त तुम अपने घरके द्वार (दरवाजे) सदा खुले रखना - कभी चोरी नहीं होगी।'

एक बार कुछ धाड़ायतों (लुटेरों) ने भावीपर हमला बोलकर लूट-मार आरम्भ कर दी। जब भक्त भलराजजीके घरमें लुटेरे घुसे, तब वे सब अन्धे हो गये। वे बड़ी कठिनाईसे घरके बाहर निकल पाये। उन्होंने लूटा हुआ सारा माल वापस लौटा दिया और भावीमें लूट-मार नकरनेकी शपथ ले ली। भलराजजीके वंशज आज भी जिन घरोंमें रहते आये हैं, उनको 'अड़ियाँवाले घर' कहते हैं—जिसका अर्थ बिना किंवाड़के घर हैं।

भलराजजी भगवान् श्रीकृष्णके परम भक्त थे। इसी कारण उन्होंने अपने घरके पास ही चारभुजाजीका एक मन्दिर बनवाया, जो आज भी विद्यमान है। इस मन्दिरका जीर्णोद्धार संवत् 1996 में हुआ ।

सौ वर्षकी आयु भोगकर संवत् 1695 के माघकी शुक्ला पञ्चमीको भावीके तालाबकी पोलपर इन्होंने जीतेजी समाधि ले ली थी। भलराजजीके धार्मिक कृत्योंकी प्रशंसामें निम्नलिखित पद्य प्रचलित है

'अठी गंगा उठी जमुना, बीचे धरम री पाल ।

'केवल कूबो' यँ कहे, भावी में भलराज ॥'

ऐसे भक्त संसारमें बिरले ही होते हैं।



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bhalaraajajee raajasthaan (maaravaada़) ke bilaada़a paraganeke bhaavee graamamen vi0 san0 1595 ke lagabhag janme the. baalyaavasthaase hee inako eeshvarabhaktika aanand a gaya, jisake phalasvaroop bhalaraajajee maaravaada़ke tatkaaleen bhakt koobaajee kumhaarake pakke mitr ho gaye. jaisa ki prasiddh hai - 'jheenthada़aamen koobau base, bhaaveemen bhalaraaj .'

bhalaraajajee santa-mahaatmaaonka atithi satkaar bada़e premase karate the. aisee prasiddhi hai ki ek baar svayanbhagavaan saadhuka vesh dhaaranakar bahuta-se saadhu-mahaatmaaonke saath bhalaraajajeeke ghar padhaare. bhalaraajajee un mahaatmaaonko apanee 'hathaaee' par bada़e premapoorvak bithaakar gharamen gaye aur ve unake liye bhojanakee vyavastha karane lage. kintu gharamen anaaj naheen tha aur n paasamen paisa (rupaye) hee. aisee vikat paristhitimen apana kartavy nibhaate hue bhalaraajajeekee dharmapatneene apane paironkee kada़iyaan (chaandeeka gahanaa) nikaalakar unhen de deen. bhakt bhalaraajajeene apaneedharmapatneekee kada़iyaan bechakar unase praapt daamonmen anaaj laakar gharapar aaye hue santonko bhojan karaayaa. raatabhar bhalaraajajeeke yahaan saadhuonkee sangati hotee rahee aur vaapas jaate samay ek boodha़e saadhune apanee jholee men se muttheebhar anaaj bhalaraajajeeko diya aur kaha ki 'is anaajako apane gharakee 'kothee' men daal do aur ooparase dhakkan de do. tumhaare gharamen anaajakee kabhee kamee naheen aayegee. isake atirikt tum apane gharake dvaar (daravaaje) sada khule rakhana - kabhee choree naheen hogee.'

ek baar kuchh dhaada़aayaton (luteron) ne bhaaveepar hamala bolakar loota-maar aarambh kar dee. jab bhakt bhalaraajajeeke gharamen lutere ghuse, tab ve sab andhe ho gaye. ve bada़ee kathinaaeese gharake baahar nikal paaye. unhonne loota hua saara maal vaapas lauta diya aur bhaaveemen loota-maar nakaranekee shapath le lee. bhalaraajajeeke vanshaj aaj bhee jin gharonmen rahate aaye hain, unako 'ada़iyaanvaale ghara' kahate hain—jisaka arth bina kinvaada़ke ghar hain.

bhalaraajajee bhagavaan shreekrishnake param bhakt the. isee kaaran unhonne apane gharake paas hee chaarabhujaajeeka ek mandir banavaaya, jo aaj bhee vidyamaan hai. is mandiraka jeernoddhaar sanvat 1996 men hua .

sau varshakee aayu bhogakar sanvat 1695 ke maaghakee shukla panchameeko bhaaveeke taalaabakee polapar inhonne jeetejee samaadhi le lee thee. bhalaraajajeeke dhaarmik krityonkee prashansaamen nimnalikhit pady prachalit hai

'athee ganga uthee jamuna, beeche dharam ree paal .

'keval koobo' yan kahe, bhaavee men bhalaraaj ..'

aise bhakt sansaaramen birale hee hote hain.

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