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भक्त नरहरि सुनार की मार्मिक कथा
भक्त नरहरि सुनार की अधबुत कहानी - Full Story of भक्त नरहरि सुनार (हिन्दी)

[भक्त चरित्र -भक्त कथा/कहानी - Full Story] [भक्त नरहरि सुनार]- भक्तमाल


नरहरि सुनार रहनेवाले थे पण्ढरपुरके ही, पर थे शिवजीके भक्त-ऐसे भक्त जो कभी श्रीविट्ठलजीके दर्शन ही नहीं करते थे। पण्ढरपुरमें रहकर भी कभी इन्होंने पण्ढरीनाथ श्रीपाण्डुरङ्गके दर्शन नहीं किये। शिवभक्तिका ऐसा विलक्षण गौरव इन्हें प्राप्त था। एक बार ऐसा संयोग हुआ कि एक सज्जनने इन्हें श्रीविट्ठलके कमरकी करधनी बनानेको सोना ला दिया और कमरका नाप भी बता दिया। इन्होंने करधनी तैयार की, पर वह कमरसे चार अंगुल बड़ी हो गयी। उसे छोटी करनेको कहा गया तो वह कमरसे चार अंगुल छोटी हो गयी। फिर वह बड़ी की गयी तो चार अंगुल बढ़ गयी; फिर छोटी की गयी तो चार अंगुल घट गयी। इस प्रकार चार बार हुआ। लाचार नरहरि सुनारने स्वयं चलकर नाप लेनेका निश्चय किया । पर कहीं श्रीविट्ठल भगवान्के दर्शन न हो जायँ, इसलिये इन्होंने अपनी आँखोंपर पट्टीबाँध ली और हाथ आगे बढ़ाकर जो टटोलने लगे तो उनके हाथोंको पाँच मुख, दस हाथ, सर्पालङ्कार, मस्तकपर जटा और जटामें गङ्गा – ऐसी शङ्करमूर्तिका स्पर्श हुआ। उन्हें निश्चय हो गया कि ये तो श्रीशङ्कर ही हैँ। इसलिये उन्होंने आँखोंकी पट्टी खोल दी और देखा तो श्रीविट्ठलके दर्शन हो गये। फिर आँखें बंद करके टटोलने लगे तो फिर उन्हीं पञ्चवक्त्र चन्द्रशेखर श्रीशङ्करका आलिङ्गन हुआ। आँखें खोलनेपर विट्ठल और आँखें बंद करनेपर शङ्कर! तीन बार ऐसा ही हुआ। तब नरहरि सुनारको यह बोध हो गया कि जो शङ्कर हैं, वे ही विट्ठल (विष्णु) हैं और जो विट्ठल हैं, वे ही शङ्कर हैं; दोनों एक ही हरि-हर हैं। तब उनकी उपासना, जो एकदेशीय थी, अति उदार, व्यापक हो गयी और वे श्रीविट्ठलभक्तोंके वारकरी-मण्डलमें सम्मिलित हो गये। सुनारी इनकी वृत्ति थी। इसी वृत्तिमें रहकर 'स्वकर्मणा'भगवान्‌का अर्चन करनेका बोध इन्हें किस प्रकार हुआ, इसका निदर्शक इनका एक अभंग है, जिसमें नरहरि सुनार कहते हैं - 'भगवन्! मैं आपका सुनार हूँ, आपके नामका व्यवहार करता हूँ। यह देह गलेका हार है, इसका अन्तरात्मा सोना है । त्रिगुणका साँचा बनाकर उसमें ब्रह्मरस भर दिया। विवेकका हथौड़ालेकर उससे काम-क्रोधको चूर किया और मन बुद्धिकी कैंचीसे राम-नाम बराबर चुराता रहा। ज्ञानके काँटेसे दोनों अक्षरोंको तौला और थैलीमें रखकर थैली | कंधेपर उठाये रास्ता पार कर गया। यह नरहरि सुनार, हे हरि! आपका दास है, रात-दिन आपका ही भजन करता है।'



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narahari sunaar rahanevaale the pandharapurake hee, par the shivajeeke bhakta-aise bhakt jo kabhee shreevitthalajeeke darshan hee naheen karate the. pandharapuramen rahakar bhee kabhee inhonne pandhareenaath shreepaandurangake darshan naheen kiye. shivabhaktika aisa vilakshan gaurav inhen praapt thaa. ek baar aisa sanyog hua ki ek sajjanane inhen shreevitthalake kamarakee karadhanee banaaneko sona la diya aur kamaraka naap bhee bata diyaa. inhonne karadhanee taiyaar kee, par vah kamarase chaar angul bada़ee ho gayee. use chhotee karaneko kaha gaya to vah kamarase chaar angul chhotee ho gayee. phir vah bada़ee kee gayee to chaar angul badha़ gayee; phir chhotee kee gayee to chaar angul ghat gayee. is prakaar chaar baar huaa. laachaar narahari sunaarane svayan chalakar naap leneka nishchay kiya . par kaheen shreevitthal bhagavaanke darshan n ho jaayan, isaliye inhonne apanee aankhonpar patteebaandh lee aur haath aage badha़aakar jo tatolane lage to unake haathonko paanch mukh, das haath, sarpaalankaar, mastakapar jata aur jataamen ganga – aisee shankaramoortika sparsh huaa. unhen nishchay ho gaya ki ye to shreeshankar hee hain. isaliye unhonne aankhonkee pattee khol dee aur dekha to shreevitthalake darshan ho gaye. phir aankhen band karake tatolane lage to phir unheen panchavaktr chandrashekhar shreeshankaraka aalingan huaa. aankhen kholanepar vitthal aur aankhen band karanepar shankara! teen baar aisa hee huaa. tab narahari sunaarako yah bodh ho gaya ki jo shankar hain, ve hee vitthal (vishnu) hain aur jo vitthal hain, ve hee shankar hain; donon ek hee hari-har hain. tab unakee upaasana, jo ekadesheey thee, ati udaar, vyaapak ho gayee aur ve shreevitthalabhaktonke vaarakaree-mandalamen sammilit ho gaye. sunaaree inakee vritti thee. isee vrittimen rahakar 'svakarmanaa'bhagavaan‌ka archan karaneka bodh inhen kis prakaar hua, isaka nidarshak inaka ek abhang hai, jisamen narahari sunaar kahate hain - 'bhagavan! main aapaka sunaar hoon, aapake naamaka vyavahaar karata hoon. yah deh galeka haar hai, isaka antaraatma sona hai . trigunaka saancha banaakar usamen brahmaras bhar diyaa. vivekaka hathauda़aalekar usase kaama-krodhako choor kiya aur man buddhikee kaincheese raama-naam baraabar churaata rahaa. jnaanake kaantese donon aksharonko taula aur thaileemen rakhakar thailee | kandhepar uthaaye raasta paar kar gayaa. yah narahari sunaar, he hari! aapaka daas hai, raata-din aapaka hee bhajan karata hai.'

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