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भक्त गजेन्द्र की मार्मिक कथा
भक्त गजेन्द्र की अधबुत कहानी - Full Story of भक्त गजेन्द्र (हिन्दी)

[भक्त चरित्र -भक्त कथा/कहानी - Full Story] [भक्त गजेन्द्र]- भक्तमाल


यः कश्चनेशो बलिनो ऽन्तकोरगात्

प्रचण्डवेगादभिधावतो भृशम्।

भीतं प्रपन्नं परिपाति यद्धया

मृत्युः प्रधावत्यरणं तमीमहि ॥

(श्रीमद्भा0 8 । 2 । 33)

'अत्यन्त बलवान्, प्रचण्ड वेगसे निरन्तर दौड़ते हुए कालरूपी अजगरके भी जो स्वामी हैं, जो भयभीत होकर शरणमें आये हुएकी रक्षा करते हैं, जिनके भयसे मृत्यु भी दौड़ती है-क्रियाशील है, मैं उन्हीं परम रक्षककी शरण हूँ।'

द्रविड़ देशमें पहले पाण्ड्यराज्यके एक राजा थे इन्द्रद्युम्न। वे सदा भगवान्‌के स्मरण, ध्यान, पूजन तथानामजपमें ही लगे रहते थे। एक बार वे कुलाचल पर्वतपर मौन होकर वानप्रस्थ आश्रम स्वीकार करके श्रीहरिकी अर्चा करते थे। उसी समय वहाँ शिष्योंके साथ अगस्त्यजी पधारे। राजा उस समय भगवान्‌के पूजनमें लगे थे, अतः न तो कुछ बोले और न उन्होंने उठकर मुनिका सत्कार ही किया। अगस्त्यजीको इससे क्रोध आ गया। उन्होंने शाप देते हुए कहा- 'यह मूर्ख मतवाले हाथीकी भाँति बन गया है, ब्राह्मणका यह अपमान करता है; अतः इसे हाथीकी योनि प्राप्त हो । '

शाप देकर अगस्त्यजी चले गये। उनके शापके प्रभावसे शरीर छूटनेपर राजा इन्द्रद्युम्न क्षीरसागरके मध्यत्रिकूट पर्वतपर हाथी हुए। वे बड़े ही बलवान् थे। उनके भयसे वहाँ व्याघ्र, सिंह भी गुफाओंमें छिप जाते थे। एक बार वे गजराज अपने यूथकी हथिनियों, दूसरे हाथियों और कलभों (हाथीके बच्चों) के साथ वनमें घूम रहे थे। धूप लगनेपर जब प्यास लगी, तब कमलकी गन्ध सूँघते हुए वह यूथ वहाँके सरोवरमें पहुँचा। वह सरोवर बहुत ही विशाल था । उसमें स्वच्छ जल भरा था। कमल खिले थे। सभी हाथियोंने जल पिया, स्नान किया और परस्पर सूँड़में जल लेकर उछालते हुए जलक्रीडा करने लगे।

उस सरोवरमें महर्षि देवलके शापसे ग्राह होकर हूहू नामक गन्धर्व रहता था। वह ग्राह जलक्रीडा करते हुए गजराजके पास चुपकेसे आया और पैर पकड़कर उन्हें जलमें खींचने लगा। गजराजने चिग्घाड़ मारी, दूसरे हाथियोंने भी सहारा देना चाहा; किंतु ग्राह बहुत बलवान् था। दूसरे हाथी शीघ्र ही थक गये। कभी ग्राह जलकी ओर खींच ले जाता और कभी गजराज उसे किनारेके पास खींच लाते। इस प्रकार बराबर दोनों एक-दूसरेको खींचते रहे। गजराजमें हजारों हाथियोंके समान बल था, पर वह घटता जाता था। वे थकते जाते थे। ग्राह तो जलका प्राणी था। वह इनसे जलमें बलवान् पड़ने लगा। जब ग्राहके द्वारा खींचे जाते गजेन्द्र बिलकुल थक गये, उन्हें लगा कि वे अब डूब जायँगे, तब उन्होंनेभगवान्‌की शरण लेनेका निश्चय किया। पूर्वजन्मकी आराधनाके प्रभावसे उनकी बुद्धि भगवान्‌में लगी। पाससे एक कमल-पुष्प तोड़कर सूँड़में उठाकर स्तुति करने लगे । वे भगवान्‌की जब कोई अत्यन्त कातर होकर भगवान्‌को पुकारता है, तब वे दयामय' एक क्षणकी भी देर नहीं करते। कातर कण्ठसे गजराज भगवान्‌की स्तुति * कर रहे थे। देवता भी उनके स्वरमें स्वर मिलाकर भगवान्का स्तवन कर रहे थे। उसी समय भगवान् गरुड़पर बैठे वहाँ प्रकट हुए। भगवान्‌का दर्शन करके गजराजने वह पुष्प ऊपर उछालकर कहा-'नारायण! निखिल जगत्के गुरु, भगवन्! आपको नमस्कार!'

आते ही भगवान्ने एक हाथसे गजराजको ग्राहके सहित जलमेंसे निकालकर पृथ्वीपर रख दिया। अपने चक्रसे ग्राहका मुख फाड़कर भगवान्ने गजराजको छुड़ाया। भगवान्‌के चक्रसे मरकर ग्राह ऋषिके शापसे छूटकर फिर गन्धर्व हो गया। उसने भगवान्‌की स्तुति की और उनकी आज्ञा लेकर अपने लोकको चला गया। गजराजको भगवान्का स्पर्श मिला था। उनके अज्ञानका बन्धन तत्काल नष्ट हो गया। उनका हाथीका शरीर सुन्दर दिव्य चतुर्भुजरूपमें परिणत हो गया। भगवत्पार्षदोंका रूप पाकर वे भगवान् के साथ उनके नित्य-धाममें पहुँच गये।



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yah kashchanesho balino 'ntakoragaat

prachandavegaadabhidhaavato bhrisham.

bheetan prapannan paripaati yaddhayaa

mrityuh pradhaavatyaranan tameemahi ..

(shreemadbhaa0 8 . 2 . 33)

'atyant balavaan, prachand vegase nirantar dauda़te hue kaalaroopee ajagarake bhee jo svaamee hain, jo bhayabheet hokar sharanamen aaye huekee raksha karate hain, jinake bhayase mrityu bhee dauda़tee hai-kriyaasheel hai, main unheen param rakshakakee sharan hoon.'

dravida़ deshamen pahale paandyaraajyake ek raaja the indradyumna. ve sada bhagavaan‌ke smaran, dhyaan, poojan tathaanaamajapamen hee lage rahate the. ek baar ve kulaachal parvatapar maun hokar vaanaprasth aashram sveekaar karake shreeharikee archa karate the. usee samay vahaan shishyonke saath agastyajee padhaare. raaja us samay bhagavaan‌ke poojanamen lage the, atah n to kuchh bole aur n unhonne uthakar munika satkaar hee kiyaa. agastyajeeko isase krodh a gayaa. unhonne shaap dete hue kahaa- 'yah moorkh matavaale haatheekee bhaanti ban gaya hai, braahmanaka yah apamaan karata hai; atah ise haatheekee yoni praapt ho . '

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