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भक्त कवि अखा की मार्मिक कथा
भक्त कवि अखा की अधबुत कहानी - Full Story of भक्त कवि अखा (हिन्दी)

[भक्त चरित्र -भक्त कथा/कहानी - Full Story] [भक्त कवि अखा]- भक्तमाल


संसारके महापुरुषोंकी जीवनीको यदि ध्यानसे देखा जाय तो मालूम होता है कि कुछ छोटी-सी घटनाओं उनके जीवनमें महान् परिवर्तन किये। अग्रिम पड़े सुवर्णकी तरह उन्होंने अन्तर्निहित दैवी शक्तिका अनुभव किया और विश्वमें समय-समयपर अनेक क्रान्तियाँ हुई। सूर, तुलसी और कालिदासको जीवनियोंको देखें तो बुतिपरम्पराओंके अनुसार इन्होंने अपनी प्रियतमाओंसे प्रेरणा प्राप्त की। इन्होंने संसारको वह साहित्य प्रदान किया है, जो कालातीत कहा जा सकता है। भक्त अखा भी इसी सुवर्णशृङ्खलाकी एक लड़ी हैं, जिन्होंने छोटी सी सांसारिक घटनासे प्रेरणा प्राप्तकर इस संसारका मोह त्याग दिया।

इनका जन्म संवत् 1649 के लगभग हुआ था। इनके पिताका नाम रहियो था। माताका बचपनमें ही देहान्त हो गया था। इनका विवाह बचपनमें कर दिया गया था। ये पंद्रह वर्षकी उम्र में ही जेतलपुरसे अहमदाबादमें आकर रहने लगे थे। कहते हैं कि ये अहमदाबादमें देसाईको पोलमें रहते थे। इनका पूरा नाम अखेराय था। आज भी सर चिनुभाईके डेरेके पास कुएँवाले खाँचेमें एक मकानपर 'अखानो ओरडो' (घर) ऐसा लिखा है। गुजरातमें यह तो स्वतः सिद्ध बात मानी जाती है कि अखा अहमदाबाद के शहरमें रहते थे। गुजरातमें प्रचलित परम्पराके अनुसार अखा सुनारका काम किया करते थे। समाजमें उनपर लोगोंको अटल विश्वास था। एक बार एक स्त्रीने उनके पास तीन सौ रुपयेकी धरोहर रखी। कुछ समय बाद उसी स्त्रीने भक्तराज अखासे कहा कि 'मुझे तुम इतने रुपयोंकी कण्ठमाला बना दो। अखा उससे बहनकी तरह स्नेह करते थे इसलिये उन्होंने एक सौ रुपयेका सुवर्ण अपनी ओरसे मिलाकर एक सुन्दर माला बनाकर दी। परंतु उस स्त्रीको यह सूझा कि अखा वृत्तिका सुनार है, इसलिये उसने इस मालामें कुछ गड़बड़ अवश्य की होगी। वह परीक्षाके लिये उसे दूसरे सुनारके पास ले गयी। उसने उसमेंसे एक सोनेकी लड़ी काट ली और उसकी कीमत कम बतायी। वह स्त्री अखाके पास आकर उन्हें कोसने लगी। सरलहृदय अखाका चित्त खिन्न हो गया। मोहने वैराग्यका रूप धारण किया। उसने कहा-'संसार साचानो न थी।' इन्होंने वैराग्यकी अनुभूति नगरमें रहते हुए प्राप्त की, जंगलमें तपस्या करते हुए नहीं।

विरक्त होकर इन्होंने सुनारके सब हथियार कुएँमें फेंक दिये और साधु-संतोंकी खोजमें ये घरसे निकल पड़े, जिस-जिस रास्तेसे वे निकले, उन्हें ठगबाजी ही दिखायी दी। एक बार वे अपना नाम और वेश बदलकर एक मन्दिरमें गये। वहाँ उन्हें धक्के मारकर बाहर निकाल दिया गया। गुसाईंजीको इन्होंने कहा कि 'आप पैसेवालोंके ही साथी हैं; निर्धनका कौन साथी है। इस विषयपर इनकी एक साखी प्रसिद्ध है

गुरु कीधा में गोकुलनाथ घरदा बळदने घाली नाथ।

धन हरे. धोको नव हरे, एवो गुरु कल्याण शुं करे ।।

संत कवियोंकी तरह इन्होंने गुजराती साहित्यको अपूर्व देन दी है। हिंदी-साहित्यके आदिकालकी तरह गुजरातमें भी संतकवियोंने भक्तिधाराका प्रवाह चलाया। इन्होंने अपनी संस्कृतिका प्रचार कविता-वाड्मयद्वारा किया। नरसी, मीरा, प्रेमानन्द, शामल तथा दयाराम आदि संतकवि सुप्रसिद्ध हैं। इनमें अखाका अपना स्थान है। इनकी कृतियोंमें 'गीता' सुप्रसिद्ध है। अनुभवबिन्दु इनकी दूसरी सम्मानित रचना है। इसके अतिरिक्त भी गुरु-माहात्म्य, गुरु गोविन्द- एकता, मायानुं स्वरूप, भक्ति-ज्ञान-वैराग्यनुं माहात्म्य, सर्वात्मभाव, प्रेमलक्षणा, जीवन्मुक्तदशा, ब्रह्मवस्तु निरूपण, ब्रह्म-ईश्वर-जीवनी एकता, वितण्डावादो नुं वर्णन, षड्दर्शनचिकित्सा और सत्संगमहत्ता आदि ग्यारह ग्रन्थ हैं, जो भक्ति, ज्ञान और वैराग्यसे सने हुए हैं।

संवत् 1730 के आस-पास इनका देहान्त हुआ था,
ऐसा माना जाता है।



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sansaarake mahaapurushonkee jeevaneeko yadi dhyaanase dekha jaay to maaloom hota hai ki kuchh chhotee-see ghatanaaon unake jeevanamen mahaan parivartan kiye. agrim paड़e suvarnakee tarah unhonne antarnihit daivee shaktika anubhav kiya aur vishvamen samaya-samayapar anek kraantiyaan huee. soor, tulasee aur kaalidaasako jeevaniyonko dekhen to butiparamparaaonke anusaar inhonne apanee priyatamaaonse prerana praapt kee. inhonne sansaarako vah saahity pradaan kiya hai, jo kaalaateet kaha ja sakata hai. bhakt akha bhee isee suvarnashrinkhalaakee ek lada़ee hain, jinhonne chhotee see saansaarik ghatanaase prerana praaptakar is sansaaraka moh tyaag diyaa.

inaka janm sanvat 1649 ke lagabhag hua thaa. inake pitaaka naam rahiyo thaa. maataaka bachapanamen hee dehaant ho gaya thaa. inaka vivaah bachapanamen kar diya gaya thaa. ye pandrah varshakee umr men hee jetalapurase ahamadaabaadamen aakar rahane lage the. kahate hain ki ye ahamadaabaadamen desaaeeko polamen rahate the. inaka poora naam akheraay thaa. aaj bhee sar chinubhaaeeke dereke paas kuenvaale khaanchemen ek makaanapar 'akhaano orado' (ghara) aisa likha hai. gujaraatamen yah to svatah siddh baat maanee jaatee hai ki akha ahamadaabaad ke shaharamen rahate the. gujaraatamen prachalit paramparaake anusaar akha sunaaraka kaam kiya karate the. samaajamen unapar logonko atal vishvaas thaa. ek baar ek streene unake paas teen sau rupayekee dharohar rakhee. kuchh samay baad usee streene bhaktaraaj akhaase kaha ki 'mujhe tum itane rupayonkee kanthamaala bana do. akha usase bahanakee tarah sneh karate the isaliye unhonne ek sau rupayeka suvarn apanee orase milaakar ek sundar maala banaakar dee. parantu us streeko yah soojha ki akha vrittika sunaar hai, isaliye usane is maalaamen kuchh gaड़baड़ avashy kee hogee. vah pareekshaake liye use doosare sunaarake paas le gayee. usane usamense ek sonekee lada़ee kaat lee aur usakee keemat kam bataayee. vah stree akhaake paas aakar unhen kosane lagee. saralahriday akhaaka chitt khinn ho gayaa. mohane vairaagyaka roop dhaaran kiyaa. usane kahaa-'sansaar saachaano n thee.' inhonne vairaagyakee anubhooti nagaramen rahate hue praapt kee, jangalamen tapasya karate hue naheen.

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guru keedha men gokulanaath gharada baladane ghaalee naatha.

dhan hare. dhoko nav hare, evo guru kalyaan shun kare ..

sant kaviyonkee tarah inhonne gujaraatee saahityako apoorv den dee hai. hindee-saahityake aadikaalakee tarah gujaraatamen bhee santakaviyonne bhaktidhaaraaka pravaah chalaayaa. inhonne apanee sanskritika prachaar kavitaa-vaadmayadvaara kiyaa. narasee, meera, premaanand, shaamal tatha dayaaraam aadi santakavi suprasiddh hain. inamen akhaaka apana sthaan hai. inakee kritiyonmen 'geetaa' suprasiddh hai. anubhavabindu inakee doosaree sammaanit rachana hai. isake atirikt bhee guru-maahaatmy, guru govinda- ekata, maayaanun svaroop, bhakti-jnaana-vairaagyanun maahaatmy, sarvaatmabhaav, premalakshana, jeevanmuktadasha, brahmavastu niroopan, brahma-eeshvara-jeevanee ekata, vitandaavaado nun varnan, shaddarshanachikitsa aur satsangamahatta aadi gyaarah granth hain, jo bhakti, jnaan aur vairaagyase sane hue hain.

sanvat 1730 ke aasa-paas inaka dehaant hua tha,
aisa maana jaata hai.

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