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चोखा मेळा की मार्मिक कथा
चोखा मेळा की अधबुत कहानी - Full Story of चोखा मेळा (हिन्दी)

[भक्त चरित्र -भक्त कथा/कहानी - Full Story] [चोखा मेळा]- भक्तमाल


चोखा मेळा महार जातिके थे। मङ्गलवेढा नामक स्थानमें रहते थे। बस्तीसे मरे हुए जानवर उठा ले जाना ही इनका धंधा था। बचपनसे ही ये बड़े सरल और धर्मभीरु थे। श्रीविट्ठलजीके दर्शनोंके लिये बीच-बीचमें ये पण्ढरपुर जाया करते थे। पण्ढरपुरमें इन्होंने नामदेवजीके कीर्तन सुने। यहीं उनकी शिक्षा-दीक्षा हुई। नामदेवजीको इन्होंने अपना गुरु माना। अपने सब काम करते हुए ये भगवन्नाममें रत रहने लगे। इनपर बड़े-बड़े संकट आये, पर भगवन्नामके प्रतापसे ये संकटोंके ऊपर ही उठते गये। पण्ढरपुरके श्रीविट्ठल- मन्दिरका महाद्वार इन्हें अपना परम आश्रय जान पड़ता था और भगवद्भक्तोंके चरणोंकी धूल अपना महाभाग्य। उस धूलमें ये लोटा करते थे। इनकी अनन्य भक्तिसे भगवान् इनके हो गये। एक बार श्रीविट्ठल इन्हें मन्दिरके भीतर लिवा लाये और अपने दिव्य दर्शन देकर कृतार्थ किया। अपने गलेका रत्नहार और तुलसी माला भगवान्ने इनके गलेमें डाल दी। पुजारी जागे, जो अबतक सोये हुए थे। 'चोखा, एक महार, बेखटके घुसा चला आया मन्दिरके भीतर! इसकी यह हिम्मत? और भगवान्‌के गलेका रत्न- हार इसके गलेमें? इसने ठाकुरजीको भ्रष्ट कर दिया और रत्नहार चुरा लिया।' यह कहकर पुजारियोंने उसे बेतरह पीटा, रत्नहार छीन लिया और धक्के देकर बाहर निकाल दिया। इस प्रसङ्गपर संत जनाबाईने एक अभंगमें कहा है, 'चोखा मेळाकी ऐसी करनी कि भगवान् भी उसके ऋणी हो गये। जाति तो इसकी हीन है, पर सच्ची भक्तिमें तो यही लीन है। इसने ठाकुरजीको भ्रष्ट किया, यह सुनकरतो यह जनी हँसने और गाने लगती है। चोखा मेळा ही तो एक अनामिक भक्त है, जो भक्तराज कहाने योग्य है। चोखा मेळा वह भक्त है, जिसने भगवान्‌को मोह लिया। चोखा मेळाके लिये स्वयं जगत्पति मरे हुए जानवर ढोने लगे।' चोखाजी ज्ञानेश्वर महाराजकी संतमण्डलीमें एक थे। इनकी भक्तिपर सभी मुग्ध थे। निरन्तर भगवन्नाम चिन्तन करनेवाले चोखाजी भगवन्नामकी महिमा गाते हुए एक जगह कहते हैं कि 'इस नामके प्रतापसे मेरा संशय नष्ट हो गया। इस देहमें ही भगवान्‌से भेंट हो गयी।' इनकी पत्नी सोयराबाई और बहिन निर्मलाबाई भी बड़ी भक्तिमती थीं। सोयराबाईकी प्रसूतिमें सारी सेवा स्वयं भगवान्ने की, ऐसा कहा गया है। इनके बेटेका नाम कर्म मेळा था, वह भी भक्त था। बंका महार नामक भक्त इनके साले थे। चोखाजी भगवान्के बड़े लाडिले भक्त माने जाते हैं। मंगलवेढ़ामें एक बार गाँवकी प्राचीरकी । मरम्मत हो रही थी। उस काममें चोखा मेळा भी लगे। 5 थे। एकाएक प्राचीर ढह गयी, कई महार दबकर मर गये; उसीमें (सन् 1338 ई0 में) चोखाजीका भी देहान्त । हो गया। भक्तोंने चोखाजीकी अस्थियाँ ढूँढ़ीं, नामदेवजी साथ थे। इनकी अस्थियोंकी पहचान यह मानी गयी कि जिस अस्थिमेंसे विट्ठल-ध्वनि निकले, उसीको चोखाजीकी अस्थि जानें। इन अस्थियोंको नामदेवजी पण्ढरपुर ले आये और मन्दिरके महाद्वारपर वे गाड़ी गयीं और उनपर समाधि बनी। जिनकी अस्थियोंमेंसे भी 'विट्ठल' नाम निकल रहा था, उन चोखाजीका सब भक्तोंने जय जयकार किया।



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chokha mela mahaar jaatike the. mangalavedha naamak sthaanamen rahate the. basteese mare hue jaanavar utha le jaana hee inaka dhandha thaa. bachapanase hee ye bada़e saral aur dharmabheeru the. shreevitthalajeeke darshanonke liye beecha-beechamen ye pandharapur jaaya karate the. pandharapuramen inhonne naamadevajeeke keertan sune. yaheen unakee shikshaa-deeksha huee. naamadevajeeko inhonne apana guru maanaa. apane sab kaam karate hue ye bhagavannaamamen rat rahane lage. inapar bada़e-bada़e sankat aaye, par bhagavannaamake prataapase ye sankatonke oopar hee uthate gaye. pandharapurake shreevitthala- mandiraka mahaadvaar inhen apana param aashray jaan pada़ta tha aur bhagavadbhaktonke charanonkee dhool apana mahaabhaagya. us dhoolamen ye lota karate the. inakee anany bhaktise bhagavaan inake ho gaye. ek baar shreevitthal inhen mandirake bheetar liva laaye aur apane divy darshan dekar kritaarth kiyaa. apane galeka ratnahaar aur tulasee maala bhagavaanne inake galemen daal dee. pujaaree jaage, jo abatak soye hue the. 'chokha, ek mahaar, bekhatake ghusa chala aaya mandirake bheetara! isakee yah himmata? aur bhagavaan‌ke galeka ratna- haar isake galemen? isane thaakurajeeko bhrasht kar diya aur ratnahaar chura liyaa.' yah kahakar pujaariyonne use betarah peeta, ratnahaar chheen liya aur dhakke dekar baahar nikaal diyaa. is prasangapar sant janaabaaeene ek abhangamen kaha hai, 'chokha melaakee aisee karanee ki bhagavaan bhee usake rinee ho gaye. jaati to isakee heen hai, par sachchee bhaktimen to yahee leen hai. isane thaakurajeeko bhrasht kiya, yah sunakarato yah janee hansane aur gaane lagatee hai. chokha mela hee to ek anaamik bhakt hai, jo bhaktaraaj kahaane yogy hai. chokha mela vah bhakt hai, jisane bhagavaan‌ko moh liyaa. chokha melaake liye svayan jagatpati mare hue jaanavar dhone lage.' chokhaajee jnaaneshvar mahaaraajakee santamandaleemen ek the. inakee bhaktipar sabhee mugdh the. nirantar bhagavannaam chintan karanevaale chokhaajee bhagavannaamakee mahima gaate hue ek jagah kahate hain ki 'is naamake prataapase mera sanshay nasht ho gayaa. is dehamen hee bhagavaan‌se bhent ho gayee.' inakee patnee soyaraabaaee aur bahin nirmalaabaaee bhee bada़ee bhaktimatee theen. soyaraabaaeekee prasootimen saaree seva svayan bhagavaanne kee, aisa kaha gaya hai. inake beteka naam karm mela tha, vah bhee bhakt thaa. banka mahaar naamak bhakt inake saale the. chokhaajee bhagavaanke bada़e laadile bhakt maane jaate hain. mangalavedha़aamen ek baar gaanvakee praacheerakee . marammat ho rahee thee. us kaamamen chokha mela bhee lage. 5 the. ekaaek praacheer dhah gayee, kaee mahaar dabakar mar gaye; useemen (san 1338 ee0 men) chokhaajeeka bhee dehaant . ho gayaa. bhaktonne chokhaajeekee asthiyaan dhoondha़een, naamadevajee saath the. inakee asthiyonkee pahachaan yah maanee gayee ki jis asthimense vitthala-dhvani nikale, useeko chokhaajeekee asthi jaanen. in asthiyonko naamadevajee pandharapur le aaye aur mandirake mahaadvaarapar ve gaada़ee gayeen aur unapar samaadhi banee. jinakee asthiyonmense bhee 'vitthala' naam nikal raha tha, un chokhaajeeka sab bhaktonne jay jayakaar kiyaa.

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