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गुरुभक्त कल्याणस्वामी की मार्मिक कथा
गुरुभक्त कल्याणस्वामी की अधबुत कहानी - Full Story of गुरुभक्त कल्याणस्वामी (हिन्दी)

[भक्त चरित्र -भक्त कथा/कहानी - Full Story] [गुरुभक्त कल्याणस्वामी]- भक्तमाल


श्रीशिवाजी महाराजके सद्गुरु श्रीसमर्थ रामदासस्वामी महाराजका नाम सभी जानते हैं। श्रीसमर्थ महाराजने अनेकों मठोंकी स्थापना की और उनमें अपने शिष्योंको नियुक्त किया। इन शिष्योंने श्रीशिवाजी महाराजको राजनीतिक क्षेत्रमें सहायता दी तथा मुसलमानोंसे आतङ्कित हिंदू-जनताको निर्भय किया।

एक समयकी बात है, श्रीसमर्थ महाराज और उनका शिष्यपरिवार कुछ दिनोंके लिये एकत्रित हुआ। शिष्योंमें परस्पर होड़-सी लगी थी कि सद्गुरुकी सबसे बढ़कर सेवा कौन करता है और सभी प्रायः अपनेको सर्वोपरि सेवकके रूपमें परिचय देनेके लिये लालायित थे। श्रीसद्गुरुसे भला यह बात कैसे छिपी रह सकती थी। इसलिये उन्होंने 'सच्ची कसौटीपर कौन शिष्य खरा उतरता है' इसकी परीक्षाके लिये एक लीला रची। एक दिन, जब कि समस्त शिष्यमण्डल उपस्थित था, वे जोरसे कराहने लगे। मानो कहीं उनके बड़ी पीड़ा होरही हो। समस्त शिष्य घबरा गये और सबने समर्थ महाराजसे इसका कारण पूछा। स्वामीजीने कहा—'पुत्रो! मेरी पिंडलीमें एक बड़ा भारी फोड़ा हो गया है और उसमें असह्य पीड़ा हो रही है।' शिष्यमण्डलीमें हलचल सी मच गयी। सभी शीघ्र चिकित्सा कराकर गुरुजीको आराम पहुँचानेके लिये आतुर हो उठे। कोई कुछ तो कोई कुछ उपचार करनेके लिये कहने लगा। स्वामीजीने कहा -'सुनो पुत्रो ! यह मेरा फोड़ा साधारण नहीं है और यह तुम्हारे किसी भी बाह्योपचारसे ठीक नहीं हो सकेगा।' शिष्य आग्रहपूर्वक बोले- 'महाराज ! कुछ-न कुछ उपचार तो अवश्य ही होना चाहिये ।' स्वामी महाराजने उत्तर दिया—'हाँ, वत्सो ! इसके लिये एक ही उपचार हो सकता है और उससे तुरंत ही मेरी पीड़ा मिट जायगी; परंतु वह दुःसाध्य है।' इतना कहकर वे चीख चीखकर पुनः कराहने लगे। यह देखकर शिष्य बोले 'महाराज ! कैसा भी दुःसाध्य उपचार क्यों न हो, उसेकरनेमें हमें अपने प्राणोंकी भी चिन्ता नहीं है; आप बतायें तो सही।' स्वामीजी सब शिष्योंसे यही तो कहलवाना चाहते थे। उनके इतना कहते ही स्वामीजी बोले- 'सुनो, इसका उपचार यह है कि कोई मनुष्य मेरे इस फोड़ेको मुँह लगाकर चूस ले। बस, मेरी वेदना तुरंत मिट जायगी, परंतु वह चूसनेवाला मर जायगा।' स्वामीजीकी यह बात सुनते ही सब शिष्य एक-दूसरेकी ओर ताकने लगे। कोई भी इस कार्यके लिये आगे नहीं बढ़ा। अन्तमें 'कल्याण' नामक शिष्य उठे और उन्होंने स्वामीजीसे फोड़ेपर बँधी पट्टी खोलनेके लिये कहा। स्वामीजीने कहा-'पट्टी खोलनेमें मुझे असह्य वेदना होगी, इसलिये र पट्टी नहीं खोलनी है। हाँ, पट्टीमेंसे एक कोनेपर फोड़ेका काला-सा मुँह दिख रहा है; बस वहींसे चूसना आरम्भ कर दो।' कल्याणने सद्गुरु चरणपर सिर रखा और फोड़ेको मुँह में लेकर चूसना आरम्भ कर दिया। फोड़ेमेंसे चार-छः घूँट लेनेके बाद तो कल्याणने अपना मुँहफोड़ेपर सारी शक्तिसे लगा दिया और बड़े जोरसे चूसना आरम्भ किया। उसे बड़ा मधुर स्वाद मिल रहा था। स्वामीजी चिल्ला उठे–'अरे कल्याण! धीरे, अरे धीरे !' पर कल्याण कब माननेवाले थे। कल्याण बोले- 'महाराज ! आपके प्रतिदिन ऐसे ही फोड़े हुआ करें और मैं उन्हें चूसा करूँ।' इतना कहकर कल्याणने यथाशक्ति सारा फोड़ा चूस डाला। अन्तमें स्वामीजीने पट्टी खोली और पिंडलीपरसे तोतापुरी आमकी एक बड़ी गुठली और छिलका निकल पड़ा। यह देखकर सारे शिष्य लज्जित हो गये। पाठक समझ ही गये होंगे कि स्वामीजीने पके हुए मीठे लंबे तोतापुरी आमपर ही पट्टी बाँध ली थी।

आगे चलकर अपनी अनुपम गुरुभक्तिसे कल्याण श्रीसमर्थ रामदासस्वामी महाराजके प्रमुख शिष्य होकर 'कल्याण स्वामी' के नामसे प्रसिद्ध हुए और इन्होंने बड़ा कार्य किया।



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