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कान्हूपात्रा की मार्मिक कथा
कान्हूपात्रा की अधबुत कहानी - Full Story of कान्हूपात्रा (हिन्दी)

[भक्त चरित्र -भक्त कथा/कहानी - Full Story] [कान्हूपात्रा]- भक्तमाल


कान्हूपात्रा मंगलवेढा स्थानमें रहनेवाली श्यामा नानी वेश्याकी लड़की थी। माकी वेश्यावृत्ति देख-देखकर उसे ऐसे जीवनसे बड़ी घृणा हो गयी। जब वह पंद्रह वर्षकी हुई, तभी उसने यह निश्चय कर लिया कि मैं अपनी देह पापियोंके हाथ बेंचकर उसे अपवित्र और कलङ्कित न करूँगी। नाचना गाना तो उसने मन लगाकर सीखा और इस कलामें वह निपुण भी हो गयी। सौन्दर्यमें उसका वहाँ कोई जोड़ ही नहीं था। श्यामा इसे अपनीदुष्टवृत्तिके साँचेमें ढालकर रुपया कमाना चाहती थी। उसने इसे बहकानेमें कोई कसर नहीं रखी, पर यह अपने निश्चयसे विचलित नहीं हुई। आखिर श्यामाने इससे कहा कि यदि तुम्हें यह धंधा नहीं ही करना है तो कम-से-कम किसी एक पुरुषको तो वर लो। इसने कहा कि 'मैं ऐसे पुरुषको वरूँगी जो मुझसे अधिक सुन्दर, सुकुमार और सुशील हो।' पर ऐसा कोई पुरुष मिला ही नहीं। पीछे कुछ काल बाद वारकरी श्रीविट्ठलभक्तोंकेभजन सुनकर यह श्रीपण्ढरीनाथके दर्शनोंके लिये पण्ढरपुर गयी तथा पण्ढरीनाथके दर्शन करके, उन्हींको वरणकर, उन्हींके चरणोंकी दासी बनकर सदाके लिये वहीं रह गयी। इसके सौन्दर्यकी ख्याति दूर-दूरतक फैल चुकी थी। बेदरके बादशाहकी भी इच्छा हुई कि कान्हूपात्रा मेरे हरममें आ जाय। उसने उसे लानेके लिये अपने सिपाही भेजे। इन सिपाहियोंको यह हुक्म था कि कान्हूपात्रा यदि खुशीसे न आना चाहे तो उसे जबर्दस्ती पकड़कर ले आओ। सिपाही पण्ढरपुर पहुँचे और उसे पकड़कर ले जाने लगे। उसने सिपाहियोंसे कहा- 'मैं एक बार श्रीविट्ठलजीके दर्शन कर आऊँ।' यह कहकर वह मन्दिरमें गयी और अनन्य भावसे भगवान्‌को पुकारनेलगी। इस पुकारके पाँच अभङ्ग प्रसिद्ध हैं, जिनमें कान्हूपात्रा भगवान्से कहती है- 'हे पाण्डुरंग ! ये दुष्ट दुराचारी मेरे पीछे पड़े हैं; अब मैं क्या करूँ, कैसे तुम्हारे चरणोंमें बनी रहूँ? तुम जगत्की जननी हो, इस अभागिनीको अपने चरणोंमें स्थान दो । त्रिभुवनमें मेरे लिये और कोई स्थान नहीं! मैं तुम्हारी हूँ, इसे अब तुम ही उबार लो।' यह कहते-कहते कान्हूपात्राकी देह अचेतन हो गयी। उससे एक ज्योति निकली और वह भगवान्की ज्योतिमें मिल गयी, अचेतन देह भगवान्‌के चरणोंमें आ गिरी। कान्हूपात्राकी अस्थियाँ मन्दिरके दक्षिण द्वारमें गाड़ी गयीं । मन्दिरके समीप कान्हूपात्राकी मूर्ति खड़ी खड़ी आज भी पतितोंको पावन कर रही है।



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[Bhakt Charitra - Bhakt Katha/Kahani - Full Story] [kaanhoopaatraa]- Bhaktmaal


kaanhoopaatra mangalavedha sthaanamen rahanevaalee shyaama naanee veshyaakee lada़kee thee. maakee veshyaavritti dekha-dekhakar use aise jeevanase bada़ee ghrina ho gayee. jab vah pandrah varshakee huee, tabhee usane yah nishchay kar liya ki main apanee deh paapiyonke haath benchakar use apavitr aur kalankit n karoongee. naachana gaana to usane man lagaakar seekha aur is kalaamen vah nipun bhee ho gayee. saundaryamen usaka vahaan koee joda़ hee naheen thaa. shyaama ise apaneedushtavrittike saanchemen dhaalakar rupaya kamaana chaahatee thee. usane ise bahakaanemen koee kasar naheen rakhee, par yah apane nishchayase vichalit naheen huee. aakhir shyaamaane isase kaha ki yadi tumhen yah dhandha naheen hee karana hai to kama-se-kam kisee ek purushako to var lo. isane kaha ki 'main aise purushako varoongee jo mujhase adhik sundar, sukumaar aur susheel ho.' par aisa koee purush mila hee naheen. peechhe kuchh kaal baad vaarakaree shreevitthalabhaktonkebhajan sunakar yah shreepandhareenaathake darshanonke liye pandharapur gayee tatha pandhareenaathake darshan karake, unheenko varanakar, unheenke charanonkee daasee banakar sadaake liye vaheen rah gayee. isake saundaryakee khyaati doora-dooratak phail chukee thee. bedarake baadashaahakee bhee ichchha huee ki kaanhoopaatra mere haramamen a jaaya. usane use laaneke liye apane sipaahee bheje. in sipaahiyonko yah hukm tha ki kaanhoopaatra yadi khusheese n aana chaahe to use jabardastee pakada़kar le aao. sipaahee pandharapur pahunche aur use pakada़kar le jaane lage. usane sipaahiyonse kahaa- 'main ek baar shreevitthalajeeke darshan kar aaoon.' yah kahakar vah mandiramen gayee aur anany bhaavase bhagavaan‌ko pukaaranelagee. is pukaarake paanch abhang prasiddh hain, jinamen kaanhoopaatra bhagavaanse kahatee hai- 'he paandurang ! ye dusht duraachaaree mere peechhe pada़e hain; ab main kya karoon, kaise tumhaare charanonmen banee rahoon? tum jagatkee jananee ho, is abhaagineeko apane charanonmen sthaan do . tribhuvanamen mere liye aur koee sthaan naheen! main tumhaaree hoon, ise ab tum hee ubaar lo.' yah kahate-kahate kaanhoopaatraakee deh achetan ho gayee. usase ek jyoti nikalee aur vah bhagavaankee jyotimen mil gayee, achetan deh bhagavaan‌ke charanonmen a giree. kaanhoopaatraakee asthiyaan mandirake dakshin dvaaramen gaaड़ee gayeen . mandirake sameep kaanhoopaatraakee moorti khada़ee khada़ee aaj bhee patitonko paavan kar rahee hai.

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