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वैशाख,कार्तिक और माघ मास माहातम्य (मास माहातम्य)

Kartik,Vaishakh and Magh Mahatamya (Maas Mahatamya)

कथा 45 - Katha 45

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शूकरक्षेत्रका माहात्म्य तथा मासोपवास-व्रतकी विधि का वर्णन

महादेवजी कहते हैं— भक्तप्रवर कार्तिकेय ! अब माघस्नानका माहात्म्य सुनो। महामते! इस संसारमें तुम्हारे समान | विष्णु भक्त पुरुष नहीं हैं। चक्रतीर्थमें श्रीहरिका और मथुरामें श्रीकृष्णका दर्शन करनेसे मनुष्यको जो फल मिलता है, वही माघमासमें केवल स्नान करनेसे मिल जाता है। जो जितेन्द्रिय, शान्तचित्त और सदाचारयुक्त होकर माघमासमें स्नान करता है वह फिर कभी संसार - बन्धनमें नहीं पड़ता ।

इतनी कथा सुनाकर भगवान् श्रीकृष्णने कहा- सत्यभामा! अब मैं तुम्हारे सामने शूकरक्षेत्रके माहात्म्यका वर्णन करूँगा, जिसके विज्ञानमात्रसे मेरा सान्निध्य प्राप्त होता है। पाँच योजन विस्तृत शूकरक्षेत्र मेरा मन्दिर (निवासस्थान) है। देवि ! जो इसमें निवास करता है, वह गदहा हो तो भी चतुर्भुजस्वरूपको प्राप्त होता है। तीन हजार तीन सौ तीन हाथ मेरे मन्दिरका परिमाण माना गया है। देवि! जो अन्य स्थानोंमें साठ हजार वर्षोंतक तपस्या करता है, वह मनुष्य शूकरक्षेत्रमें आधे पहरतक तप करनेपर ही उतनी तपस्याका फल प्राप्त कर लेता है। कुरुक्षेत्रके सन्निहति* नामक तीर्थमें सूर्यग्रहणके समय तुला-पुरुषके दानसे जो फल बताया गया है, वह काशीमें दस गुना, त्रिवेणीमें सौगुना और गंगासागर-संगममें सहस्रगुना कहा गया है; किन्तु मेरे निवासभूत शूकरक्षेत्रमें उसका फल अनन्तगुना समझना चाहिये। भामिनि! अन्य तीर्थोंमें उत्तम विधानके साथ जो लाखों दान दिये जाते हैं, शूकरक्षेत्रमें एक ही दानसे उनके समान फल प्राप्त हो जाता है। शूकरक्षेत्र, त्रिवेणी और गंगासागर-संगममें एक बार ही स्नान करनेसे मनुष्यकी ब्रह्महत्या दूर हो जाती है। पूर्वकालमें राजा अलर्कने शूकरक्षेत्रका माहात्म्य श्रवण करके सातों द्वीपोंसहित पृथ्वीका राज्य प्राप्त किया था।

कार्तिकेयने कहा- भगवन्! मैं व्रतोंमें उत्तम मासोपवास व्रतका वर्णन सुनना चाहता हूँ। साथ ही उसकी विधि एवं यथोचित फलको भी श्रवण करना चाहता हूँ।

महादेवजी बोले- बेटा! तुम्हारा विचार बड़ा उत्तम है। तुमने जो कुछ पूछा है, वह सब बताता हूँ। जैसे देवताओंमें भगवान् विष्णु, तपनेवालोंमें सूर्य, पर्वतोंमें मेरु, पक्षियोंमें गरुड़, तीर्थोंमें गंगा तथा प्रजाओंमें वैश्य श्रेष्ठ है, उसी प्रकार सब व्रतों में मासोपवास-व्रत श्रेष्ठ माना गया है। सम्पूर्ण व्रतोंसे, समस्त तीर्थोंसे तथा सब प्रकारके दानोंसे जो पुण्य प्राप्त होता है, वह सब मासोपवास करनेवालेको मिल जाता है। वैष्णवयज्ञके उद्देश्य से भगवान् जनार्दनकी पूजा करनेके पश्चात् गुरुकी आज्ञा लेकर मासोपवास-व्रत करना चाहिये । शास्त्रोक्त जितने भी वैष्णवव्रत हैं, उन सबको तथा द्वादशीके पवित्र व्रतको करनेके पश्चात् मासोपवास-व्रत करना उचित है। अतिकृच्छ्र, पराक और चान्द्रायण व्रतोंका अनुष्ठान करके गुरु और ब्राह्मणकी आज्ञासे मासोपवास व्रत करे। आश्विनमासके शुक्लपक्षकी एकादशीको उपवास करके तीस दिनोंके लिये इस व्रतको ग्रहण करे। जो मनुष्य भगवान् वासुदेवकी पूजा करके कार्तिकमासभर उपवास करता है, वह मोक्षफलका भागी होता है। भगवान्‌के मन्दिरमें जाकर तीनों समय भक्तिपूर्वक सुन्दर मालती, नील-कमल, पद्म, सुगन्धित कमल, केशर, खस, कपूर, उत्तम चन्दन, नैवेद्य और धूप-दीप आदिसे श्रीजनार्दनका पूजन करे।

मन, वाणी और क्रियाद्वारा श्रीगरुडध्वजकी आराधनामें लगा रहे स्त्री, पुरुष, विधवा-जो कोई भी इस व्रतको करे, पूर्ण भक्तिके साथ इन्द्रियोंको काबूमें रखते हुए दिन-रात श्रीविष्णुके नामोंका कीर्तन करता रहे। भक्तिपूर्वक श्रीविष्णुकी स्तुति करे। झूठ न बोले। सम्पूर्ण जीवोंपर दया करे। अन्तःकरणकी वृत्तियोंको अशान्त न होने दे। हिंसा त्याग दे। सोया हो या बैठा, श्रीवासुदेवका कीर्तन किया करे। अन्नका स्मरण, अवलोकन, सूघना, स्वाद लेना, चर्चा करना तथा ग्रासको मुँहमें लेना- ये सभी निषिद्ध हैं। व्रतमें स्थित मनुष्य शरीरमें उबटन लगाना, सिरमें तेलकी मालिश कराना, पान खाना और चन्दन लगाना छोड़ दे तथा अन्यान्य निषिद्ध वस्तुओंका भी त्याग करे। व्रत करनेवाला पुरुष शास्त्रविरुद्ध कर्म करनेवाले व्यक्तिका स्पर्श न करे। उससे वार्तालाप भी न करे। पुरुष, सौभाग्यवती स्त्री अथवा विधवा नारी शास्त्रोक्त विधिसे एक मासतक उपवास करके भगवान् वासुदेवका पूजन करे। यह व्रत गिने-गिनाये तीस दिनोंका होता है, इससे अधिक या कम दिनोंका नहीं। मनको संयममें रखनेवाला जितेन्द्रिय पुरुष एक मासतक उपवासके नियमको पूरा करके द्वादशी तिथिको भगवान् गरुडध्वजका पूजन करे। फूल, माला, गन्ध, धूप, चन्दन, वस्त्र, आभूषण और वाद्य आदिके द्वारा भगवान् विष्णुको संतुष्ट करे। चन्दनमिश्रित तीर्थके जलसे भक्तिपूर्वक भगवान्‌को स्नान कराये। फिर उनके अंगोंमें चन्दनका लेप करके गन्ध और पुष्पोंसे श्रृंगार करे। फिर वस्त्र आदिका दान करके उत्तम ब्राह्मणोंको भोजन कराये, उन्हें दक्षिणा दे और प्रणाम करके उनसे त्रुटियोंके लिये क्षमा-याचना करे। इस प्रकार मासोपवासपूर्वक जनार्दनकी पूजा करके ब्राह्मणोंको भोजन करानेसे मनुष्य श्रीविष्णुलोकमें प्रतिष्ठित होता है। मण्डपमें उपस्थित ब्राह्मणोंसे बारम्बार इस प्रकार कहना चाहिये –'द्विजवरो! इस व्रतमें जो कोई भी कार्य मन्त्रहीन, क्रियाहीन और सब प्रकारके साधनों एवं विधियोंसे हीन हुआ हो वह सब आपलोगोंके वचन और प्रसादसे परिपूर्ण हो जाय।' कार्तिकेय ! इस प्रकार मैंने तुमसे मासोपवासकी विधिका यथावत् वर्णन किया है।

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वैशाख,कार्तिक और माघ मास माहातम्य को मास माहातम्य, Kartik,Vaishakh and Magh Mahatamya, Maas Mahatamya, वैशाख मास माहातम्य, कार्तिक मास माहातम्य, माघ मास माहातम्य, Kartik Mahatamya, Vaishakh Mahatamya और Magh Mahatamya आदि नामों से भी जाना जाता है।

वैशाख,कार्तिक और माघ मास माहातम्य
Index


  1. [कथा 1]भगवद्भक्तिके लक्षण तथा वैशाख स्नानकी महिमा
  2. [कथा 2]वैशाख माहात्म्य
  3. [कथा 3]वैशाख स्नानसे पाँच प्रेतोंका उद्धार तथा 'पाप-प्रशमन' नामक स्तोत्रका वर्णन
  4. [कथा 4]वैशाखमासमें स्नान, तर्पण और श्रीमाधव पूजनकी विधि एवं महिमा
  5. [कथा 5]यम- ब्राह्मण-संवाद - नरक तथा स्वर्गमें ले जानेवाले कर्मोंका वर्णन
  6. [कथा 6]तुलसीदल और अश्वत्थकी महिमा तथा वैशाख माहात्म्यके सम्बन्धमें तीन प्रेतोंके उद्धारकी कथा
  7. [कथा 7]वैशाख माहात्म्यके प्रसंगमें राजा महीरथकी कथा और यम- ब्राह्मण-संवादका उपसंहार
  8. [कथा 8]वैशाखमासकी श्रेष्ठता; उसमें जल, व्यजन, छत्र, पादुका और अन्न आदि दानोंकी महिमा
  9. [कथा 9]वैशाखमासमें विविध वस्तुओंके दानका महत्त्व तथा वैशाखस्नानके नियम
  10. [कथा 10]वैशाखमासमें छत्रदानसे हेमकान्तका उद्धार
  11. [कथा 11]महर्षि वसिष्ठके उपदेशसे राजा कीर्तिमान्‌का अपने राज्यमें वैशाखमासके धर्मका पालन कराना और यमराजका ब्रह्माजीसे राजाके लिये शिकायत करना
  12. [कथा 12]ब्रह्माजीका यमराजको समझाना और भगवान् विष्णुका उन्हें वैशाखमासमें भाग दिलाना
  13. [कथा 13]भगवत्कथाके श्रवण और कीर्तनका महत्त्व तथा वैशाखमासके धर्मोके अनुष्ठानसे राजा पुरुयशाका संकटसे उद्धार
  14. [कथा 14]राजा पुरुयशाको भगवान्‌का दर्शन, उनके द्वारा भगवत्स्तुति और भगवान्‌के वरदानसे राजाकी सायुज्य मुक्ति
  15. [कथा 15]शंख-व्याध-संवाद, व्याधके पूर्वजन्मका वृत्तान्त
  16. [कथा 16]भगवान् विष्णुके स्वरूपका विवेचन, प्राणकी श्रेष्ठता, जीवोंके
  17. [कथा 17]वैशाखमासके माहात्म्य-श्रवणसे एक सर्पका उद्धार और वैशाख धर्मके पालन तथा रामनाम-जपसे व्याधका वाल्मीकि होना
  18. [कथा 18]धर्मवर्णकी कथा, कलिकी अवस्थाका वर्णन, धर्मवर्ण और पितरोंका संवाद एवं वैशाखकी अमावास्याकी श्रेष्ठता
  19. [कथा 19]वैशाखकी अक्षय तृतीया और द्वादशीकी महत्ता, द्वादशीके पुण्यदानसे एक कुतियाका उद्धार
  20. [कथा 20]वैशाखमासकी अन्तिम तीन तिथियोंकी महत्ता तथा ग्रन्थका उपसंहार
  21. [कथा 21]कार्तिकमासकी श्रेष्ठता तथा उसमें करनेयोग्य स्नान, दान, भगवत्पूजन आदि धर्माका महत्त्व
  22. [कथा 22]विभिन्न देवताओंके संतोषके लिये कार्तिकस्नानकी विधि तथा स्नानके लिये श्रेष्ठ तीर्थोंका वर्णन
  23. [कथा 23]कार्तिकव्रत करनेवाले मनुष्यके लिये पालनीय नियम
  24. [कथा 24]कार्तिकव्रतसे एक पतित ब्राह्मणीका उद्धार तथा दीपदान एवं आकाशदीपकी महिमा
  25. [कथा 25]कार्तिकमें तुलसी-वृक्षके आरोपण और पूजन आदिकी महिमा
  26. [कथा 26]त्रयोदशीसे लेकर दीपावलीतकके उत्सवकृत्यका वर्णन
  27. [कथा 27]कार्तिक शुक्ला प्रतिपदा और यमद्वितीयाके कृत्य तथा बहिनके घरमें भोजनका महत्त्व
  28. [कथा 28]आँवलेके वृक्षकी उत्पत्ति और उसका माहात्म्य सूतजी कहते हैं-कार्तिकके शुक्लपक्षकी चतुर्दशीको आँवलेका
  29. [कथा 29]गुणवतीका कार्तिकव्रतके पुण्यसे सत्यभामाके रूपमें अवतार तथा भगवान्‌के द्वारा शंखासुरका वध और वेदोंका उद्धार
  30. [कथा 30]कार्तिकव्रतके पुण्यदानसे एक राक्षसीका उद्धार
  31. [कथा 31]भक्तिके प्रभावसे विष्णुदास और राजा चोलका भगवान्‌के पार्षद होना
  32. [कथा 32]जय-विजयका चरित्र
  33. [कथा 33]सांसर्गिक पुण्यसे धनेश्वरका उद्धार, दूसरोंके पुण्य और पापकी आंशिक प्राप्तिके कारण तथा मासोपवास- व्रतकी संक्षिप्त विधि
  34. [कथा 34]तुलसीविवाह और भीष्मपंचक-व्रतकी विधि एवं महिमा
  35. [कथा 35]एकादशीको भगवान्‌के जगानेकी विधि, कार्तिकव्रतका उद्यापन और अन्तिम तीन तिथियोंकी महिमाके साथ ग्रन्थका उपसंहार
  36. [कथा 36]कार्तिक-व्रतका माहात्म्य – गुणवतीको कार्तिक व्रतके पुण्यसे भगवान्‌की प्राप्ति
  37. [कथा 37]कार्तिककी श्रेष्ठताके प्रसंगमें शंखासुरके वध, वेदोंके उद्धार तथा 'तीर्थराज' के उत्कर्षकी कथा
  38. [कथा 38]कार्तिकमासमें स्नान और पूजनकी विधि
  39. [कथा 39]कार्तिक- व्रतके नियम और उद्यापनकी विधि
  40. [कथा 40]कार्तिक-व्रतके पुण्य-दानसे एक राक्षसीका उद्धार
  41. [कथा 41]कार्तिक माहात्म्यके प्रसंगमें राजा चोल और विष्णुदासकी कथा
  42. [कथा 42]पुण्यात्माओंके संसर्गसे पुण्यकी प्राप्तिके प्रसंगमें धनेश्वर ब्राह्मणकी कथा
  43. [कथा 43]अशक्तावस्थामें कार्तिक-व्रतके निर्वाहका उपाय
  44. [कथा 44]कार्तिकमासका माहात्म्य और उसमें पालन करनेयोग्य नियम
  45. [कथा 45]शूकरक्षेत्रका माहात्म्य तथा मासोपवास-व्रतकी विधि का वर्णन
  46. [कथा 46]शालग्रामशिलाके पूजनका माहात्म्य
  47. [कथा 47]भगवत्पूजन, दीपदान, यमतर्पण, दीपावली गोवर्धनपूजा और यमद्वितीयाके दिन करनेयोग्य कृत्योंका वर्णन
  48. [कथा 48]प्रबोधिनी एकादशी और उसके जागरणका महत्त्व तथा भीष्मपंचक व्रतकी विधि एवं महिमा
  49. [कथा 49]माघ माहात्म्य
  50. [कथा 50]मृगशृंग मुनिका भगवान्से वरदान प्राप्त करके अपने घर लौटना
  51. [कथा 51]मृगशृंग मुनिके द्वारा माघके पुण्यसे एक हाथीका उद्धार तथा मरी हुई कन्याओंका जीवित होना
  52. [कथा 52]यमलोकसे लौटी हुई कन्याओंके द्वारा वहाँकी अनुभूत बातोंका वर्णन
  53. [कथा 53]महात्मा पुष्करके द्वारा नरकमें पड़े हुए जीवोंका उद्धार
  54. [कथा 54]माघस्नानके लिये मुख्य-मुख्य तीर्थ और नियम
  55. [कथा 55]माघमासके स्नानसे सुव्रतको दिव्यलोककी प्राप्ति