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वैशाख,कार्तिक और माघ मास माहातम्य (मास माहातम्य)

Kartik,Vaishakh and Magh Mahatamya (Maas Mahatamya)

कथा 8 - Katha 8

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वैशाखमासकी श्रेष्ठता; उसमें जल, व्यजन, छत्र, पादुका और अन्न आदि दानोंकी महिमा

नारायणं नमस्कृत्य नरं चैव नरोत्तमम् ।
देवीं सरस्वतीं व्यासं ततो जयमुदीरयेत् ॥


'भगवान् नारायण, नरश्रेष्ठ नर, देवी सरस्वती तथा महर्षि वेदव्यासको नमस्कार करके भगवान्‌की विजय कथासे परिपूर्ण इतिहास-पुराण आदिका पाठ करना चाहिये। '

सूतजी कहते हैं-राजा अम्बरीषने परमेष्ठी ब्रह्माके पुत्र देवर्षि नारदसे पुण्यमय वैशाखमासका माहात्म्य इस प्रकार पूछा 'ब्रह्मन्! मैंने आपसे सभी महीनोंका माहात्म्य सुना। उस समय आपने यह कहा था कि सब महीनोंमें वैशाखमास श्रेष्ठ है। इसलिये यह बतानेकी कृपा करें कि वैशाखमास क्यों भगवान् विष्णुको प्रिय है और उस समय कौन-कौन से धर्म भगवान् विष्णुके लिये प्रीतिकारक हैं ?'

नारदजीने कहा- वैशाखमासको ब्रह्माजीने सब मासोंमें उत्तम सिद्ध किया है। वह माताकी भाँति सब जीवोंको सदा अभीष्ट वस्तु प्रदान करनेवाला है। धर्म, यज्ञ, क्रिया और तपस्याका सार है । सम्पूर्ण देवताओं द्वारा पूजित है। जैसे विद्याओंमें वेद-विद्या, मन्त्रोंमें प्रणव, वृक्षोंमें कल्पवृक्ष, धेनुओंमें कामधेनु, देवताओं विष्णु, वर्णोंमें ब्राह्मण, प्रिय वस्तुओंमें प्राण, नदियोंमें गंगाजी, तेजोंमें सूर्य, अस्त्र-शस्त्रोंमें चक्र, धातुओंमें सुवर्ण, वैष्णवोंमें शिव तथा रत्नोंमें कौस्तुभमणि है, उसी प्रकार धर्मके साधनभूत महीनों में वैशाखमास सबसे उत्तम है। संसारमें इसके समान भगवान् विष्णुको प्रसन्न करनेवाला दूसरा कोई मास नहीं है। जो वैशाखमासमें सूर्योदयसे पहले स्नान करता है, उससे भगवान् विष्णु निरन्तर प्रीति करते हैं। पाप तभीतक गर्जते हैं, जबतक जीव वैशाखमासमें प्रातः काल जलमें स्नान नहीं करता। राजन्! वैशाखके महीने में सब तीर्थ आदि देवता (तीर्थके अतिरिक्त) बाहरके जलमें भी सदैव स्थित रहते हैं। भगवान् विष्णुकी आज्ञासे मनुष्योंका कल्याण करनेके लिये वे सूर्योदयसे लेकर छः दण्डके भीतरतक वहाँ मौजूद रहते हैं।

वैशाखके समान कोई मास नहीं है, सत्ययुगके समान कोई युग नहीं है, वेदके समान कोई शास्त्र नहीं है और गंगाजीके समान कोई तीर्थ नहीं है।* जलके समान दान नहीं है, खेतीके समान धन नहीं है और जीवनसे बढ़कर कोई लाभ नहीं है। उपवासके समान कोई तप नहीं, दानसे बढ़कर कोई सुख नहीं, दयाके समान धर्म नहीं, धर्मके समान मित्र नहीं, सत्यके समान यश नहीं, आरोग्यके समान उन्नति नहीं, भगवान् विष्णुसे बढ़कर कोई रक्षक नहीं और वैशाखमासके समान संसारमें कोई पवित्र मास नहीं है। ऐसा विद्वान् पुरुषोंका मत है। वैशाख श्रेष्ठ मास है और शेषशायी भगवान् विष्णुको सदा प्रिय है। सब दानोंसे जो पुण्य होता है और सब तीर्थोंमें जो फल होता है, उसीको मनुष्य वैशाखमासमें केवल जलदान करके प्राप्त कर लेता है। जो जलदानमें असमर्थ है, ऐसे ऐश्वर्यकी अभिलाषा रखनेवाले पुरुषको उचित है कि वह दूसरेको प्रबोध करे, दूसरेको जलदानका महत्त्व समझावे। यह सब दानोंसे बढ़कर हितकारी है। जो मनुष्य वैशाखमें सड़कपर यात्रियोंके लिये प्याऊ लगाता है, वह विष्णुलोकमें प्रतिष्ठित होता है। नृपश्रेष्ठ! प्रपादान (पौंसला या प्याऊ) देवताओं, पितरों तथा ऋषियोंको अत्यन्त प्रीति देनेवाला है। जिसने प्याऊ लगाकर रास्तेके थके-माँदे मनुष्योंको सन्तुष्ट किया है, उसने ब्रह्मा, विष्णु और शिव आदि देवताओंको सन्तुष्ट कर लिया है। राजन्! वैशाखमासमें जलकी इच्छा रखनेवालेको जल, छाया चाहनेवालेको छाता और पंखेकी इच्छा रखनेवालेको पंखा देना चाहिये। राजेन्द्र ! जो प्याससे पीड़ित महात्मा पुरुषके लिये शीतल जल प्रदान करता है, वह उतने ही मात्रसे दस हजार राजसूय यज्ञोंका फल पाता है। धूप और परिश्रमसे पीड़ित ब्राह्मणको जो पंखा डुलाकर हवा करता है, वह उतने ही मात्रसे निष्पाप होकर भगवान्‌का पार्षद हो जाता है। जो मार्गसे थके हुए श्रेष्ठ द्विजको वस्त्रसे भी हवा करता है, वह उतनेसे ही मुक्त हो भगवान् विष्णुका सायुज्य प्राप्त कर लेता है। जो शुद्ध चित्तसे ताड़का पंखा देता है, वह सब पापका नाश करके ब्रह्मलोकको जाता है। जो विष्णुप्रिय वैशाखमासमें पादुका दान करता है, वह यमदूतोंका तिरस्कार करके विष्णुलोक में जाता है। जो मार्गमें अनाथोंके ठहरनेके लिये विश्रामशाला बनवाता है, उसके पुण्य-फलका वर्णन किया नहीं जा सकता। मध्याह्नमें आये हुए ब्राह्मण अतिथिको यदि कोई भोजन दे, तो उसके फलका अन्त नहीं है। राजन्! अन्नदान मनुष्योंको तत्काल तृप्त करनेवाला है, इसलिये संसारमें अन्नके समान कोई दान नहीं है। जो मनुष्य मार्गके थके हुए ब्राह्मणके लिये आश्रय देता है, उसके पुण्यफलका वर्णन किया नहीं जा सकता। भूपाल! जो अन्नदाता है, वह माता-पिता आदिका भी विस्मरण करा देता है। इसलिये तीनों लोकोंके निवासी अन्नदानकी ही प्रशंसा करते हैं। माता और पिता केवल जन्मके हेतु हैं, पर जो अन्न देकर पालन करता है, मनीषी पुरुष इस लोकमें उसीको पिता कहते हैं।

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वैशाख,कार्तिक और माघ मास माहातम्य
Index


  1. [कथा 1]भगवद्भक्तिके लक्षण तथा वैशाख स्नानकी महिमा
  2. [कथा 2]वैशाख माहात्म्य
  3. [कथा 3]वैशाख स्नानसे पाँच प्रेतोंका उद्धार तथा 'पाप-प्रशमन' नामक स्तोत्रका वर्णन
  4. [कथा 4]वैशाखमासमें स्नान, तर्पण और श्रीमाधव पूजनकी विधि एवं महिमा
  5. [कथा 5]यम- ब्राह्मण-संवाद - नरक तथा स्वर्गमें ले जानेवाले कर्मोंका वर्णन
  6. [कथा 6]तुलसीदल और अश्वत्थकी महिमा तथा वैशाख माहात्म्यके सम्बन्धमें तीन प्रेतोंके उद्धारकी कथा
  7. [कथा 7]वैशाख माहात्म्यके प्रसंगमें राजा महीरथकी कथा और यम- ब्राह्मण-संवादका उपसंहार
  8. [कथा 8]वैशाखमासकी श्रेष्ठता; उसमें जल, व्यजन, छत्र, पादुका और अन्न आदि दानोंकी महिमा
  9. [कथा 9]वैशाखमासमें विविध वस्तुओंके दानका महत्त्व तथा वैशाखस्नानके नियम
  10. [कथा 10]वैशाखमासमें छत्रदानसे हेमकान्तका उद्धार
  11. [कथा 11]महर्षि वसिष्ठके उपदेशसे राजा कीर्तिमान्‌का अपने राज्यमें वैशाखमासके धर्मका पालन कराना और यमराजका ब्रह्माजीसे राजाके लिये शिकायत करना
  12. [कथा 12]ब्रह्माजीका यमराजको समझाना और भगवान् विष्णुका उन्हें वैशाखमासमें भाग दिलाना
  13. [कथा 13]भगवत्कथाके श्रवण और कीर्तनका महत्त्व तथा वैशाखमासके धर्मोके अनुष्ठानसे राजा पुरुयशाका संकटसे उद्धार
  14. [कथा 14]राजा पुरुयशाको भगवान्‌का दर्शन, उनके द्वारा भगवत्स्तुति और भगवान्‌के वरदानसे राजाकी सायुज्य मुक्ति
  15. [कथा 15]शंख-व्याध-संवाद, व्याधके पूर्वजन्मका वृत्तान्त
  16. [कथा 16]भगवान् विष्णुके स्वरूपका विवेचन, प्राणकी श्रेष्ठता, जीवोंके
  17. [कथा 17]वैशाखमासके माहात्म्य-श्रवणसे एक सर्पका उद्धार और वैशाख धर्मके पालन तथा रामनाम-जपसे व्याधका वाल्मीकि होना
  18. [कथा 18]धर्मवर्णकी कथा, कलिकी अवस्थाका वर्णन, धर्मवर्ण और पितरोंका संवाद एवं वैशाखकी अमावास्याकी श्रेष्ठता
  19. [कथा 19]वैशाखकी अक्षय तृतीया और द्वादशीकी महत्ता, द्वादशीके पुण्यदानसे एक कुतियाका उद्धार
  20. [कथा 20]वैशाखमासकी अन्तिम तीन तिथियोंकी महत्ता तथा ग्रन्थका उपसंहार
  21. [कथा 21]कार्तिकमासकी श्रेष्ठता तथा उसमें करनेयोग्य स्नान, दान, भगवत्पूजन आदि धर्माका महत्त्व
  22. [कथा 22]विभिन्न देवताओंके संतोषके लिये कार्तिकस्नानकी विधि तथा स्नानके लिये श्रेष्ठ तीर्थोंका वर्णन
  23. [कथा 23]कार्तिकव्रत करनेवाले मनुष्यके लिये पालनीय नियम
  24. [कथा 24]कार्तिकव्रतसे एक पतित ब्राह्मणीका उद्धार तथा दीपदान एवं आकाशदीपकी महिमा
  25. [कथा 25]कार्तिकमें तुलसी-वृक्षके आरोपण और पूजन आदिकी महिमा
  26. [कथा 26]त्रयोदशीसे लेकर दीपावलीतकके उत्सवकृत्यका वर्णन
  27. [कथा 27]कार्तिक शुक्ला प्रतिपदा और यमद्वितीयाके कृत्य तथा बहिनके घरमें भोजनका महत्त्व
  28. [कथा 28]आँवलेके वृक्षकी उत्पत्ति और उसका माहात्म्य सूतजी कहते हैं-कार्तिकके शुक्लपक्षकी चतुर्दशीको आँवलेका
  29. [कथा 29]गुणवतीका कार्तिकव्रतके पुण्यसे सत्यभामाके रूपमें अवतार तथा भगवान्‌के द्वारा शंखासुरका वध और वेदोंका उद्धार
  30. [कथा 30]कार्तिकव्रतके पुण्यदानसे एक राक्षसीका उद्धार
  31. [कथा 31]भक्तिके प्रभावसे विष्णुदास और राजा चोलका भगवान्‌के पार्षद होना
  32. [कथा 32]जय-विजयका चरित्र
  33. [कथा 33]सांसर्गिक पुण्यसे धनेश्वरका उद्धार, दूसरोंके पुण्य और पापकी आंशिक प्राप्तिके कारण तथा मासोपवास- व्रतकी संक्षिप्त विधि
  34. [कथा 34]तुलसीविवाह और भीष्मपंचक-व्रतकी विधि एवं महिमा
  35. [कथा 35]एकादशीको भगवान्‌के जगानेकी विधि, कार्तिकव्रतका उद्यापन और अन्तिम तीन तिथियोंकी महिमाके साथ ग्रन्थका उपसंहार
  36. [कथा 36]कार्तिक-व्रतका माहात्म्य – गुणवतीको कार्तिक व्रतके पुण्यसे भगवान्‌की प्राप्ति
  37. [कथा 37]कार्तिककी श्रेष्ठताके प्रसंगमें शंखासुरके वध, वेदोंके उद्धार तथा 'तीर्थराज' के उत्कर्षकी कथा
  38. [कथा 38]कार्तिकमासमें स्नान और पूजनकी विधि
  39. [कथा 39]कार्तिक- व्रतके नियम और उद्यापनकी विधि
  40. [कथा 40]कार्तिक-व्रतके पुण्य-दानसे एक राक्षसीका उद्धार
  41. [कथा 41]कार्तिक माहात्म्यके प्रसंगमें राजा चोल और विष्णुदासकी कथा
  42. [कथा 42]पुण्यात्माओंके संसर्गसे पुण्यकी प्राप्तिके प्रसंगमें धनेश्वर ब्राह्मणकी कथा
  43. [कथा 43]अशक्तावस्थामें कार्तिक-व्रतके निर्वाहका उपाय
  44. [कथा 44]कार्तिकमासका माहात्म्य और उसमें पालन करनेयोग्य नियम
  45. [कथा 45]शूकरक्षेत्रका माहात्म्य तथा मासोपवास-व्रतकी विधि का वर्णन
  46. [कथा 46]शालग्रामशिलाके पूजनका माहात्म्य
  47. [कथा 47]भगवत्पूजन, दीपदान, यमतर्पण, दीपावली गोवर्धनपूजा और यमद्वितीयाके दिन करनेयोग्य कृत्योंका वर्णन
  48. [कथा 48]प्रबोधिनी एकादशी और उसके जागरणका महत्त्व तथा भीष्मपंचक व्रतकी विधि एवं महिमा
  49. [कथा 49]माघ माहात्म्य
  50. [कथा 50]मृगशृंग मुनिका भगवान्से वरदान प्राप्त करके अपने घर लौटना
  51. [कथा 51]मृगशृंग मुनिके द्वारा माघके पुण्यसे एक हाथीका उद्धार तथा मरी हुई कन्याओंका जीवित होना
  52. [कथा 52]यमलोकसे लौटी हुई कन्याओंके द्वारा वहाँकी अनुभूत बातोंका वर्णन
  53. [कथा 53]महात्मा पुष्करके द्वारा नरकमें पड़े हुए जीवोंका उद्धार
  54. [कथा 54]माघस्नानके लिये मुख्य-मुख्य तीर्थ और नियम
  55. [कथा 55]माघमासके स्नानसे सुव्रतको दिव्यलोककी प्राप्ति