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जो भजते मुझे भाव से, मैं उनका ही बन जाता

जो भजते मुझे भाव से, मैं उनका ही बन जाता

बिना भाव से खूब पुकारे, कभी नहीं मैं आता
सुन टेर भक्त की, मुझ से रहा न जाता॥॥

शुद्ध हृदय हो अनन्य मन से, मेरा ध्यान लगाता
उनके सारे योग क्षेम को, मैं ही स्वयं चलाता॥ ॥

सब कुछ करदें भेंट भाव विन, मैं नहीं नजर उठाता
करता मैं स्वीकार प्रेम से, जो एक पुष्प चढ़ाता॥ ॥

मुझे नहीं परवाह वस्त्र की, नहीं अन्नधन चाहता
जो मेरा बन गया हृदय से, मैं उनको अपनाता॥॥

कैसा भी दोषी हो मेरा, मैं नहिं कभी रिसाता
जो करता अपराध भक्त का, मुझको नहिं सुहाता॥॥

जो मेरे शरणागत आवे, आवागमन मिटाता
भागीरथ आश्रयले हरिका, क्यों इतउत भटकाता॥॥

जो भजते मुझे भाव से, मैं उनका ही बन जाता



jo bhajate mujhe bhaav se, mainunaka hi ban jaataa

jo bhajate mujhe bhaav se, mainunaka hi ban jaataa

bina bhaav se khoob pukaare, kbhi nahi mainaataa
sun ter bhakt ki, mujh se raha n jaataa....

shuddh haraday ho anany man se, mera dhayaan lagaataa
unake saare yog kshem ko, mainhi svayan chalaataa.. ..

sab kuchh karaden bhent bhaav vin, mainnahi najar uthaataa
karata mainsveekaar prem se, jo ek pushp chadahaataa.. ..

mujhe nahi paravaah vastr ki, nahi anndhan chaahataa
jo mera ban gaya haraday se, mainunako apanaataa....

kaisa bhi doshi ho mera, mainnahin kbhi risaataa
jo karata aparaadh bhakt ka, mujhako nahin suhaataa....

jo mere sharanaagat aave, aavaagaman mitaataa
bhaageerth aashryale harika, kyon itut bhatakaataa....

jo bhajate mujhe bhaav se, mainunaka hi ban jaataa



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